लखनऊ। महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमाचल और उत्तराखंड समेत 22 राज्यों (22 States) में भाजपा (BJP) ने अपने प्रदेश अध्यक्षों (State Presidents) का ऐलान कर दिया है। अब भी देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अध्यक्ष पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। इस बीच चर्चा है कि यूपी के भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में और देरी होगी क्योंकि किसी एक नेता के नाम पर सहमति बन पा रही है। इसकी वजह सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण साधना भी है। भाजपा को लगता है कि एक ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाया जाए, जिससे सपा के पीडीए की काट हो सके। लेकिन एक चिंता यह भी है कि ब्राह्मण समाज सपा से नाराजगी का भी लाभ उठा लिया जाए, जो इटावा प्रकरण से आहत बताया जा रहा है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय अध्यक्ष तय होने के बाद भी प्रदेश यूनिट पर फैसला हो सकता है। इसकी वजह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के इलेक्शन के लिए कम से कम आधे राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो जाना चाहिए। कुल 37 प्रदेश यूनिट्स भाजपा ने देश भर में बना रखी हैं, जिनमें से 22 का चुनाव हो गया है। ऐसी स्थिति में कोरम पूरा है और कभी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कराया जा सकता है। इसीलिए यूपी अध्यक्ष चुनने के लिए नेतृत्व वक्त भी ले सकता है। इसमें एक पेच यह भी है कि यदि योगी आदित्यनाथ सरकार में शामिल किसी नेता को अध्यक्ष बनाया गया तो फिर सरकार में भी फेरबदल होगा।
केंद्रीय नेतृत्व चाहेगा कि यूपी सरकार में भी समय रहते फेरबदल करके 2027 से पहले कुछ समीकरण साध लिए जाएं। यही कारण है कि फिलहाल अध्यक्ष को लेकर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है। स्वतंत्रदेव सिंह, धर्मपाल सिंह लोधी जैसे नेताओं की चर्चा तेज है। फिलहाल मॉनसून सेशन से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने पर जोर है। दरअसल यूपी में भाजपा यदि तेजी से अध्यक्ष चुनना चाहे तो भी पहले वोटर लिस्ट घोषित करनी होगी। फिर नामांकन की तारीख तय होगी और उसे वापस लेने का समय देना होगा। अंत में एक ही कैंडिडेट होने पर नाम की घोषणा हो जाएगी, लेकिन इस प्रक्रिया में भी कम से कम 4 दिन का समय लगेगा।
हर विधानसभा से एक सदस्य देता है वोट
दरअसल भाजपा के आंतरिक चुनाव की नियमावली के अनुसार हर विधानसभा से एक सदस्य वोट करता है। इस तरह 403 विधानसभाएं हैं तो फिर बड़ी संख्या में मेंबर हो गए। इसके अलावा 20 फीसदी सांसद और विधायक भी वोटिंग में हिस्सा लेते हैं। जिलाध्यक्ष चुनाव में मौजूद रहते हैं, लेकिन उनके पास वोट का कोई अधिकार नहीं रहता। इस तरह इतने लोगों का नाम वोटर लिस्ट में डालना होगा और मतदान कराना एक लंबी प्रक्रिया होगी।
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