देश में 74 साल बाद अब जात पर बात होगी… अभी तक हम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई थे… अब शिया-सुन्नी अलग-अलग किए जाएंगे… उनमें भी अशराफ, अजफाल और अरमाल का वर्गभेद कराया जाएगा…सिख-ईसाई गिने जाएंगे…हिंदू भी कहां हिंदू रह जाएंगे…पहले अगड़े-पिछड़े गिने जाएंगे…फिर अगड़ों की जाति में ठाकुर, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के हिस्से किए जाएंगे…फिर ब्राह्मणों में शांडिल्य से लेकर कश्यप तक की सात गोत्रों के हिस्से नजर आएंगे…वैश्य समाज में जैन, माहेश्वरी से लेकर अग्रवाल, खंडेलवाल तक अपनी गिनती कराते नजर आएंगे… अगड़ों के बाद पिछड़ों को वर्गभेद में बांटा जाएगा… दलितों से लेकर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को गिना जाएगा…हैरत की बात है कि देश में 25 साल पहले 1646 जातियां थीं, जो बढक़र 4147 पर पहुंच गईं… इनमें भी 3148 जातियों की पहचान ओबीसी के रूप में की गई, जिनमें से 2633 जातियां तो दर्ज हैं और अब यह गिनती पटल पर आएगी…हर समाज को अपनी ताकत नजर आएगी तो हमारी सामाजिक समरसता छिन्न-भिन्न हो जाएगी…इस जनगणना से हमारा इस कदर नुकसान होगा कि हम तबाही के नए रास्ते पर चले जाएंगे…अब तक हिंदू होने का दावा करने वाले अब अपनी-अपनी तादाद की ताकत में उलझ जाएंगे…अपनी गिनती होने के बाद खुद को छोटा-बड़ा समझने लग जाएंगे…अभी तक तो हिंदू-मुसलमान लड़ रहे थे, लेकिन फिर हिंदू भी आपस में लड़ते नजर आएंगे… अगड़े अगड़े नहीं रह जाएंगे, वो जातिभेद में बंटकर अपनी भागीदारी मांगते नजर आएंगे… पिछड़े भी आरक्षण के नए दावे करने लग जाएंगे… देश एक नए संघर्ष से जूझता नजर आएगा…तबाही की यह सोच 74 साल से दबाई जा रही थी… 1931 की जनगणना के बाद 1941 में पिछड़े गिने गए, लेकिन आंकड़े नहीं बताए… 1951 में सरदार पटेल ने विरोध कर जातीय जनगणना के मंसूबे मिटाए… फिर 1991 में जातीय जनगणना की मांग गुंजाई गई… इसके बाद से राजनीतिक दलों में अनुमान के आधार पर प्रत्याशियों का चयन होता रहा… अब वो चाहते हैं कि उन आधारों को पुख्ता किया जाए…जातियों की जनगणना की जरूरत राजनीतिक दलों को है, हमारे समाजों को नहीं…वो जातियों की गणना करेंगे और उसी आधार पर टिकट देंगे…ऐसे में जिन जातियों की संख्या कम होगी वे दबाए जाएंगे, मिटाए जाएंगे…जिन जातियों की संख्या ज्यादा होगी वो अपना वर्चस्व चलाएंगे… इस गणना के बाद हर इलाका जाति में बंट जाएगा…हर क्षेत्र में संघर्ष बढ़ जाएगा…अगड़ों में ठाकुर, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के आधार पर टिकट बंटेंगे तो पिछड़ों में भी जाति समीकरण चलेंगे…सारे नेता भारत की अखंडता, एकता के नारे लगाएंगे, लेकिन करतूत देश के लोगों को बांटने की करते नजर आएंगे…हिंदू-मुसलमानों का संघर्ष पुरानी बात हो जाएगा…हिंदू हिंदू से लड़ता नजर आएगा…अगड़ों में जातिभेद हो जाएगा…पिछड़ों में भी संघर्ष नजर आएगा…पता नहीं इस जाति जनगणना से देश का कौन सा भला हो जाएगा…पता नहीं सरदार पटेल को पूजने वाला कांग्रेसी हो या भाजपाई उनकी भावनाओं को कब समझ पाएगा…देश की सामाजिक समरसता का आधार छिन्न-भिन्न हो जाएगा…
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