ब्‍लॉगर

यह `प्लास्टिक पॉलिटिक्स’ नहीं है

– मुकुंद

देश में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध पर सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट के सिद्धार्थ सिंह ने प्रतिक्रिया दी है। वह इसे ‘प्लास्टिक पॉलटिक्स’ कहते हैं। उन्होंने कहा है- ‘इस प्रतिबंध में प्लास्टिक स्ट्रॉ को चुना गया है। इसकी उपयोगिता का इंडेक्स 16 माना गया है, जबकि पर्यावरण पर उसका दुष्प्रभाव का अंक 87 है। समिति ने सिगरेट फिल्टर को हाथ नहीं लगाया है। इसकी उपयोगिता और पर्यावरण नुकसान के इंडेक्स को क्रमश: 20 और 93 पाया गया है।’ मगर सिद्धार्थ सिंह कहते हैं- ‘जहां से शुरुआत हो रही है उसका स्वागत किया जाना चाहिए।’ वह भी मानते हैं कि फिलहाल लागू की गई लिस्ट ‘लो हैंगिंग फ्रूट्स’ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सिंगल यूज प्लास्टिक के दुष्प्रभावों पर पहली बार अपनी चिंता व्यक्त की थी।

अब तीन साल बाद देश में सिंगल यूज प्लास्टिक की चीजों पर पहली जुलाई से प्रतिबंध प्रभावी हो गया है। यह प्रतिबंध प्लास्टिक स्टिक के साथ ईयरबड्स, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक की छड़ें, प्लास्टिक के झंडे, प्लास्टिक से बनी कैंडी स्टिक, प्लास्टिक से बनी आइसक्रीम स्टिक, सजावट के लिए थर्मोकोल (विस्तारित पॉलीस्टाइनिन), प्लास्टिक से बनी प्लेट, प्लास्टिक से बने कप, प्लास्टिक का चश्मा, प्लास्टिक से बने कांटे, प्लास्टिक के बने चम्मच, प्लास्टिक से बने चाकू, प्लास्टिक से बने स्ट्रा, प्लास्टिक से बनी ट्रे, प्लास्टिक से बने स्टिरर, मीठे बक्से के चारों ओर फिल्म का आवरण या पैकेजिंग, निमंत्रण कार्ड के चारों ओर फिल्म का आवरण या पैकेजिंग, सिगरेट के पैकेट के चारों ओर फिल्म का आवरण या पैकेजिंग, सौ माइक्रॉन मोटाई से कम प्लास्टिक या पीवीसी बैनर, 75 माइक्रॉन से कम मोटाई के प्लास्टिक कैरी बैग (इसे 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रॉन मोटाई में संशोधित किया जाएगा) और 60 जीएसएम (ग्राम प्रति वर्ग मीटर) से कम के साथ गैर बुना प्लास्टिक पर लगाए गए हैं।

अमेरिकी वैज्ञानिक 1997 में ही इसके दुष्प्रभाव को लेकर सारी दुनिया को आगाह कर चुके हैं। उन्होंने तब तक के अध्ययन से खुलासा किया था कि मौजूदा समय में प्लास्टिक की कुल मात्रा 8.3 अरब टन है। यह आंकड़ा करीब 100 करोड़ हाथियों के वजन के बराबर है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्लास्टिक को कचरे के तौर पर फेंकने से पहले उसका इस्तेमाल बेहद कम समय के लिए ही किया जाता है। कुल प्लास्टिक उत्पादन का 70 फीसदी से ज्यादा कचरे के रूप में है। यह कचरा अधिकतर जमीन में भरा जाता है या नालों में बहाया जाता है। यह नालों से बहकर नदियों में पहुंचता है। देश की सबसे पवित्र और लंबी नदी गंगा इसकी गवाह है। गंगा सफाई पर अब तक करोड़ों रुपये बह चुका है। फिर भी वो मैली है।

प्लास्टिक पर प्रतिबंध का दूसरा आयाम इसका विकल्प है। इसके विकल्पों का बाजार देश में अभी शुरुआती चरण में है। अगर हमें इस पर कामयाबी पानी है तो हिमाचल प्रदेश से सीख लेनी होगी। हिमाचल प्रदेश में यह अभियान 2009 में शुरू किया गया था। देवभूमि में प्लास्टिक और पॉलिथीन से बने थैलों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस अभियान के सफल होने के बाद थर्माकोल से बने कप, प्लेट, ग्लास और चम्मच आदि पर भी रोक लगा दी गई।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में विशेषज्ञ और हिमाचल प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के पूर्व सचिव डॉ. नगीन नंदा कहते हैं- “चूंकि हिमाचल प्रदेश हमेशा सैलानियों से भरा रहने वाला राज्य है। इसलिए हमें प्लास्टिक से निपटने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा। प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से पहले हमने मांग और आपूर्ति के पूरे जाल को ठीक से समझा। इसके बाद हमने इससे निपटने के लिए एक ढांचा तैयार किया। हिमाचल सरकार ने छोटे दुकानदारों को पॉलिथीन के ऐसे विकल्प दिए जो आसानी से उपलब्ध थे। जैसे दुकानदारों को प्रतिबंध लागू होने से पहले प्लास्टिक के उस स्टॉक को इस्तेमाल करने की अनुमति भी दी गई जो उनके पास पहले से उपलब्ध था।” यहां यह दिलचस्प है तत्कालीन मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रो. प्रेमकुमार धूमल ने प्लास्टिक के खिलाफ शुरू किए गए अभियान में अहम भूमिका निभाई।

अब गुजारिश यह है कि पर्यावरण के फिक्रमंद वैज्ञानिक और जागरूक नागरिक प्लास्टिक मुक्त भारत के सपने को पूरा करने के लिए भगीरथ प्रयास में शामिल हों। …और इस पुण्य उद्देश्य को ‘प्लास्टिक पॉलटिक्स’ न कहें। अगर यह आग्रह सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट के सिद्धार्थ सिंह को किसी भी तरह से आहत करे तो माफी की अपेक्षा।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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