ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे


तुलसी को हाथ लगाते से ही ताई की उपस्थिति दर्ज
सांवेर चुनाव से ताई नदारद हैं। वे अपनी गैरमौजूदगी का अहसास कराना चाहती हैं। ताई कोटे से ही राज्यमंत्री बनने वाले और गांवों में अच्छी पैठ रखने वाले देवराजसिंह परिहार भी सांवेर चुनाव में नजर नहीं आ रहे हैं। अब चूंकि ताई को भी अपनी मौजूदगी का अहसास कराना था, सो सांवेर में घर-घर तुलसी अभियान के बहाने महिला मोर्चा के हाथों में तुलसी थमा दी। फोटो भी हो गए और ताई की हाजिरी लग गई, लेकिन असल कहानी इसके पीछे ये है कि ताई नाराज हैं, इसलिए वे किसी भी उपचुनाव में नजर नहीं आ रही हैं। इसलिए बड़े नेताओं ने चुनाव प्रभारी को इशारा किया कि कैसे भी हो ताई के हाथ भी चुनाव में लगवा दो। बस जुगत भिड़ाई और घर-घर तुलसी पहुंचाने के बहाने ताई को घर से निकाल ही लिया।
इसलिए हारे विधायक की फोटो छपी
पिछले हफ्ते रेसीडेंसी कोठी में बैठक के बाद सांसद शंकर लालवानी मीडिया से बात कर रहे थे। मीडिया के लिए ठीक व्यवस्था नहीं होने के कारण कैमरामैन एक साथ खड़े नजर आ रहे थे। इस पर पूर्व विधायक मनोज पटेल वीडियो बनाने लगे कि देखो मीडिया ही सोशल डिस्टेंसिंग नहीं रख पा रहा है। इसी बीच एक मीडियाकर्मी ने कहा कि ये व्यवस्था तो आपको करना चाहिए, क्योंकि आपने मीडिया को बुलाया है। इसी बीच भीड़ से एक मीडियाकर्मी ने कह दिया कि इतना ध्यान अपनी विधानसभा पर रखते तो हारे हुए विधायक के रूप में आपका फोटो नहीं खिंचाता।
उषा को जमाना है अब नया सेटअप
तीन बार की विधायक और अब नई मंत्री उषा ठाकुर के आसपास कार्यकर्ताओं की भीड़ बहुत ही कम रहती है। दीदी का स्वभाव ही ऐसा है कि फालतू लोग आसपास फटक नहीं पाते। एक और कारण यह भी है उनके एक समर्थक का किसी दूसरे को फटकने नहीं देना। हालांकि अब दीदी मंत्री हैं और उनके आसपास भीड़ बढऩे लगी है। सभी को तवज्जो भी देना है, इसलिए अब उन्हें मंत्री के हिसाब से अपना सेटअप जमाना होगा। वैसे उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी है और लोगों का जमावड़ा लगना भी शुरू हो गया है।
संघी और भाजपाई आमने-सामने
इन दिनों पांच नंबर क्षेत्र में विधायक के एक नजदीकी नेता और संघ के एक पुराने नेता आमने-सामने हैं। इसका कारण एक कालोनी का बड़ा प्लाट है, जिस पर दोनों का कब्जा है। इस पर संघ के नेता ने मंदिर बनवा दिया था। पिछले दिनों इसे लेकर विवाद हुआ और नौबत मारपीट तक पहुंच गई, जिसमें एक को चोट भी आई है। नेताजी का दावा प्लाट पर है और वे इसकी रजिस्ट्री खुद के पास होने का दावा कर रहे हैं। इसमें उनका साथ क्षेत्रीय पार्षद भी दे रहे हैं। रजिस्ट्री सामने नहीं आई है और मामला बढ़ता नजर आ रहा है। हालांकि उनके विरोधी आईडीए तक पहुंच गए हैं और रजिस्ट्री की हकीकत पता कर रहे हैं।
मेंदोला की नजदीकियां क्यों बनी दूरियां
मेंदोला जो काम हाथ में ले लेते हैं, उसे पूरा करके ही मानते हैं। वे सांवेर उपचुनाव के प्रभारी हैं और लगातार बैठकों में भाग लेते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से वे गांवों में नहीं जा रहे हैं। ज्यादातर समय वे दीनदयाल भवन में नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि दादा ने फील्ड वर्क कर लिया है और अब रणनीति बनाने में जुटे हंै, लेकिन सुनी-सुनाई खबर ये है कि दादा का मन मंत्रिमंडल गठन के बाद नहीं लग रहा है और उनके समर्थक भी उनको मंत्रिमंडल में नहीं लिए जाने से नाराज हैं। वैसे दादा शनिवार को निपानिया मंडल की चौपाल में मंत्री सिलावट के साथ देखे गए थे।
लॉकडाउन हुआ तो अब भंडारा चलाना मुश्किल
शहर के नेताओं के सामने एक बड़ी समस्या आ रही है। सामने तो वे कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन अपने समर्थकों के बीच बतिया जाते हैं कि अगर अब लॉकडाउन हो गया तो भंडारा कैसे चलाएंगे? पहले तो जोश-जोश में एक महीने भंडारा चलाया। दूसरे महीने जैसे-तैसे चलाया और तीसरा महीना आते-आते दम फूलने लगा। आखिर दानदाता भी कितना देंगे, जब पूरे शहर में ही भंडारे चल रहे हों। अब नेता भी भगवान से हाथ जोड़ रहे हैं कि शहर में लॉकडाउन मत लगवा देना, क्योंकि अब लॉकडाउन लगा तो भंडारा कहां से चलाएंगे?
मंत्रीपुत्र का अधिकारियों की बैठक में होना
पिछले दिनों रेसीडेंसी में हुई एक बैठक में जिला पंचायत के अधिकारियों के साथ मंत्री पुत्र नितेश उर्फ चिंटू का होना चर्चा का विषय बना हुआ है। बैठक में क्या हुआ ये बाहर नहीं आया, लेकिन पिता फील्ड में अपने लिए वोट मांगने उतर पड़े हैं तो बेटे को भी अपना कत्र्तव्य पूरा करना है, लेकिन मंत्रीपुत्र किस हैसियत से अधिकारियों की बैठक ले रहे हैं? वैसे मंत्रीजी ने इन्हें सांसद का चुनाव लड़ाने का सपना देखा था और माहौल बनाना भी शुरू कर दिया था, लेकिन सियासत ही पलट गई। वैसे कहा जा रहा है कि अगली बार चिंटू ही सांवेर में चुनाव लड़ेंगे, इसलिए अभी उनकी ट्रेनिंग चल रही है।
… और अंत में
पिछले दिनों सांवेर के खजूरिया गांव में लालवानी और सोनकर चौपाल के दौरान घोड़े पर बैठकर घूमे थे। उसका चुनावी फायदा कितना मिलेगा यह अलग बात है, पर कोरोना की दूरी को लेकर अभी किरकिरी तो हो गई। वो तो गनीमत रही कि आगे चल रही घोड़ी, जिस पर सोनकर बैठे थे, को देखकर पीछे चल रहा घोड़ा बिदक सकता था। ये एक कार्यकर्ता ने महसूस किया और घोड़े को आगे निकाला। नहीं तो दोनों नेताओं का क्या हाल होता? ये बात अब समर्थक ही ठहाके लगाकर एक-दूसरे को सुना रहे हंै।

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