खरी-खरी

राहुल के अब तक चले कदमोंकी यही है कहानी…इवेंट मैनेजमेंट तो हो गया… जुमला मैनेजमेंट अभी बाकी है…

मोदीजी को समझने में ही दस साल लग गए राहुल गांधी को…देश के प्रधानमंत्री के अध्यादेश को फाडऩे वाले राहुल अब सयाने हो गए हैं…मोदीजी की प्रताडऩा और शाह के चक्रव्यूह में घिरे राहुल ने सर पर रखा कांग्रेस का ताज उतारा और ऐसी सरपट दौड़ लगाई कि आधा समय भाजपाइयों को नए राहुल को समझने और परखने में लग रहा है…अपने एक नए परिचय की खोज में पैदल हुए राहुल गांधी कहीं सडक़ नाप रहे हैं तो कहीं बैरागी का जीवन जीते हुए दाढ़ी बढ़ा रहे हैं… और समय से पहले ही उठकर कांग्रेसियों को जगा रहे हैं… बूढ़े नेताओं को अपने साथ दौड़ लगवाकर यह भी समझा रहे हैं कि जब शरीर थकने लग जाए तो नौजवानों को आगे लाएं… कांग्रेस को बूढ़ा न बनाएं.. और जवानों को समझा रहे हैं कि नेता जब थक जाएंगे तो वो खुद ही सत्ता की यात्रा से अलग होते चले जाएंगे और तब आप ही आगे आएंगे…कदमों की गति के इस इवेंट में राहुल कहीं बच्चों को गोद में उठा रहे हैं तो कहीं महिलाओं को हथेलियों पर बिठा रहे हैं…कहीं विकलांगों की साइकिल धका रहे हैं तो कहीं युवाओं से बतिया रहे हैं…मोदी पुराण गाने वाले चैनल भी अब मजबूरी में राहुल को गुल नहीं कर पा रहे हैं…यात्रा के कोई खास झगड़े-झांटे भी उन्हें मिल नहीं पा रहे हैं…भारी कंजूसी के साथ राहुल के लिए वक्त खरचने वाले चैनल यदि इस यात्रा से परहेज भी कर लें तो प्रिंट मीडिया और सोशल नेटवर्क पर राहुल गांधी हर दिन, हर घंटे नजर आ रहे हैं…सडक़ों पर निकले राहुल मोदीजी की मजबूरी का भरपूर लाभ उठा रहे हैं…मोदीजी विदेशों में मजमा जमाते हैं…भारी सुरक्षा में ही गंगा घाट पर जा पाते हैं…केदारनाथ से लेकर सोमनाथ के मंदिर तक अकेले ही पहुंच पाते हैं…सेना के कैम्पों में जाकर फौजियों के साथ दशहरा-दिवाली मनाते हैं… दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों से मिलकर अपनी छवि को मजबूत बनाते हैं, लेकिन वो सडक़ों पर जनता के लिए जनता के बीच पैदल नहीं आ सकते हैं…पैदल चल नहीं सकते हैं…आम लोगों से मिल नहीं सकते हैं…प्रधानमंत्री के कद और पद की गरिमा में घिरा उनका व्यक्तित्व केवल सभाओं तक सीमित होकर रह जाता है… वे मंच से जुबान की छलांग लगा सकते हैं, लेकिन सडक़ों पर कदम नहीं बढ़ा सकते हैं… जो राहुल कर सकते हैं वो मोदी नहीं…और जो मोदी कर सकते हैं वो राहुल नहीं…लेकिन अब जाकर राहुल को यह समझ में आया कि वो क्या कर सकते हैं… राहुल दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक पहुंच चुके हैं…कांग्रेस को लग रहा है उन्हें नेता मिल गया…और राहुल को लग रहा है उन्हें जनता मिल गई…राहुल ने भी ऐसी ही इवेंट कंपनी का हाथ थामा है, जैसी कंपनियां मोदीजी के लिए काम करती हैं…प्रोग्राम बनाती हैं… कब कहां जाना है बताती हैं…मजमा जुटाती हैं और उनका गौरव बढ़ाती हैं… इवेंट तक तो राहुल पहुंच गए, लेकिन मोदीजी की अपनी निजी संपत्ति उनकी अपनी शैली है…उनके अपने जुमले हैं…उनका व्यक्तित्व और कृतित्व है… मोदीजी इवेंट से नहीं, बल्कि जनता के सेंटीमेंट से जाने जाते हैं…बात को जन तक पहुंचाने और दिमाग में लाने के लिए शब्दों का चयन और जुबान की शैली बहुत जरूरी होती है…इतनी बड़ी भाजपा में अकेले अटलजी इसलिए लोकप्रिय थे, क्योंकि वे कवि थे… शब्दों को गढऩा और सादगी की माला में पिरोकर जनता को पहनाना उन्हें आता था… लेकिन वो राजनीतिज्ञ नहीं थे, इसलिए सत्ता पाकर गंवाना और दोबारा सत्ता में आकर उसे ज्यादा दिन नहीं चला पाना उनका कालांतर बनकर रह गया…लेकिन मोदीजी कहना ही नहीं, करना भी जानते हैं…राजनीति के चाणक्य की तरह सत्ता का वन मैन शो बनना, पूरी पार्टी को अपनी उंगली की नोंक पर रखना, जो कोई सोच नहीं सके वो निर्णय लेने की क्षमता रखना मोदीजी को आता है… लिहाजा राहुल को लोकप्रियता की प्राथमिक शाला से आगे निकलकर राजनीति की परीक्षा से गुजरना होगा… भाषा की शैली को समझना होगा…शब्दों को माला में पिरोना होगा और शातिर चालों के सहारे पैंतरों के लिए खुद को तैयार करना होगा… तब जाकर वो कांग्रेस का भविष्य बन पाएंगे…देर तो हो ही चुकी है, लेकिन अंधेर से बच पाएंगे…

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