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पिता का सरनेम चेंज कराने दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे दो भाई, ये आदेश नजीर पेश करेगा

नई दिल्ली: पिता का जो सरनेम (उपनाम) होता है वही लड़के का भी होता है. लेकिन अगर आप चाहते हैं तो इसको बदलाव सकते हैं. अब आपके दिमाग में कई सवाल आ रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है. या फिर बदलने की नौबत ही क्यों आई? क्या किसी भी तरह के सरकारी लाभ के लिए कोई अपनी जाति बदल सकता है? ऐसे कई सवाल हैं. दिल्ली हाई कोर्ट के सामने एक ऐसा मामले सामने आया. दो छात्रों ने अपने सीबीएसई 10वीं और 12वीं सर्टिफिकेट में पिता का नाम बदलने का आवेदन दिया था. CBSE बोर्ड ने इसे खारिज कर दिया. तब मामला कोर्ट पहुंचा.

दो भाइयों ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि सरनेम के कारण उनको समाज में उनको दिन-प्रतिदिन जातिगत दुराग्रहों का सामना करना पड़ा और आगे भी इसी तरह की दिक्कतें सामने आएंगी. 10वीं और 12वीं सर्टिफिकेट में पिता नाम लक्ष्मण मोची लिखा हुआ था. बेटों का कहना था कि इसे लक्ष्मण नायक कर दिया जाए. कोर्ट में सीबीएसई की ओर से दलील रखी गई कि इससे याचिकाकर्ता भविष्य में कई तरह के लाभ ले सकता है. उनका आशय आरक्षण को लेकर था.

दिल्ली हाईकोर्ट ने Article 21 का किया जिक्र
हालांकि दोनों पक्षों की हर दलील को सुनकर कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लेख किया. संविधान का आर्टिकल 21 (Protection of Life and Personal Liberty) जीने का अधिकार है. इसको उसी श्रेणी में रखा गया है कि जैसे मौलिक अधिकारों को. कोर्ट ने माना कि सीबीएसई को सरनेम में बदलाव करने से इनकार नहीं करना चाहिए. ये पूरी तरह से अनुचित था. कोर्ट ने भाइयों को राहत दी.


कोर्ट ने कहा- सम्मान से जीने का सभी को अधिकार
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को एक पहचान रखने का पूर्ण अधिकार है. आप इससे भी इनकार नहीं कर सकते कि जीवन के अधिकार (Article 21) में सम्मान से जीने का अधिकार शामिल है. इसमें किसी भी जाति से बंधा नहीं होना शामिल है. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति चाहता है कि लोग उसको उसकी जाति से न पहचानें तो ये उसकी आजादी है. वो ऐसा कर सकता है. लक्ष्मण मोची अब लक्ष्मण नायक हैं. वो कहते हैं कि अगर आपको कोई आपके सरनेम बोलकर बुलाये तो क्या आपको अच्छा लगेगा. लक्ष्मण मोची ने अपना सरनेम बदलकर नायक कर लिया. क्योंकि उनको पता था कि आज भी देश में अनुसूचित जाति के लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है.

CBSE को लगी कोर्ट से फटकार
2018 में दोनों भाइयों ने दिल्ली हाई कोर्ट से गुहार लगाई थी. पांच साल बाद कोर्ट ने CBSE के लेटर को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि दोनों भाइयों के पिता का सरनेम बदलना चाहिए. लक्ष्मण ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने हर जगह से अपना सरनेम बदल लिया था. इसके अनुसार उन्होंने न्यूज पेपर और भारत के राजपत्र में प्रकाशित करवाया था. लक्ष्मण का कहना है कि मेरा नाम तो लक्ष्मण है मगर कुछ लोगों ने मुझे सिर्फ मेरे सरनेम से बुलाया. लगता है लोगों को इसमें कुछ मजा आता है. लक्ष्मण ने आधार कार्ड, पैन कार्ड जैसे सार्वजनिक दस्तावेजों में अपना सरनेम चेंज करवा लिया था. केवल CBSE बोर्ड सर्टिफिकेट में दिक्कत आ रही थी.

आरक्षण या किसी लाभ के लिए नहीं होगा प्रयोग
कोर्ट ने इसके साथ स्पष्ट भी कर दिया कि इसका इस्तेमाल किसी प्रकार के रिजर्वेशन या अन्य किसी भी चीज के लिए नहीं होगा. ये आदेश सिर्फ सीबीएसई सर्टिफिकेट में सरनेम चेंज के लिए मान्य होगा. पिता लक्ष्मण का कहना था कि इसकी वजह बेटों को कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी. समाज में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था.भाइयों की तरफ से वकील थे टी सुधाकर. उन्होंने कहा कि ये ऐसा मामला नहीं था कि जहां ऊंची जाति के हों कुछ लाभ पाने के लिए अपना सरनेम चेंज करा रहा हों. ये मामला था समाज में सम्मान के साथ जीने का. हमने कोर्ट में यही तर्क दिया कि इसके कारण इनको नुकसान हो रहा है और इसे नहीं झेलना चाहिए.

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