ब्‍लॉगर

दो बच्चों की राजनीति

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए जो विधेयक प्रस्तावित किया है, उसकी आलोचना विपक्षी दल इस आधार पर कर रहे हैं कि यह मुस्लिम-विरोधी है। यदि वह सचमुच मुस्लिम-विरोधी होता तो वह सिर्फ मुसलमानों पर ही लागू होता यानी जिस मुसलमान के दो से ज्यादा बच्चे होते, उसे तरह-तरह के सरकारी फायदों से वंचित रहना पड़ता, जैसा कि मुगल-काल में गैर-मुस्लिमों के साथ कुछ मामलों में हुआ करता था लेकिन इस विधेयक में ऐसा कुछ नहीं है। यह सबके लिए समान है। क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख, क्या ईसाई और क्या यहूदी!

यह ठीक है कि मुसलमानों में जनसंख्या के बढ़ने का अनुपात ज्यादा है लेकिन उसका मुख्य कारण उनकी गरीबी और अशिक्षा है। हिंदुओं में भी उन्हीं समुदायों में बच्चे ज्यादा होते हैं, जो गरीब हैं, अशिक्षित हैं और मेहनतकश हैं। जो शिक्षित और संपन्न मुसलमान हैं, उनके भी परिवार आजकल प्रायः सीमित ही होते हैं लेकिन भारत में जो लोग सांप्रदायिक राजनीति करते हैं, वे अपने-अपने संप्रदाय का संख्या-बल बढ़ाने के लिए लोगों को उकसाते हैं। ऐसे लोगों को हतोत्साहित करने के लिए उत्तर प्रदेश का यह कानून बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है। इस विधेयक में एक धारा यह भी जोड़ी जानी चाहिए कि इस तरह से उकसानेवालों को सख्त सजा दी जाएगी।

इस विधेयक में फिलहाल जो प्रावधान किए गए हैं, वे ऐसे हैं जो आम लोगों को छोटा परिवार रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। जैसे जिसके भी दो बच्चों से ज्यादा होंगे, उसे सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, उसकी सरकारी सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी, उसे स्थानीय चुनावों में उम्मीदवारी नहीं मिलेगी। जिसका सिर्फ एक बच्चा है, उसे कई विशेष सुविधाएं मिलेंगी। नसबंदी करानेवाले स्त्री-पुरुषों को एक लाख और 80 हजार रु. तक मिलेंगे। ये सभी प्रावधान ऐसे हैं, जिनका फायदा पढ़े-लिखे, शहरी और मध्यम वर्ग के लोग तो जरूर उठाना चाहेंगे लेकिन जिन लोगों की वजह से जनसंख्या बहुत बढ़ रही है, उन लोगों को न तो सरकारी नौकरियों से कुछ मतलब है और न ही चुनावों से।

दो बच्चों की यह राजनीति मंहगी भी पड़ सकती है। लेकिन भाजपा यदि इस मुद्दे पर चतुराई से काम करे तो उत्तर प्रदेश ही नहीं, सारे देश में थोक वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है और लोकसभा में उसकी सीटें अब से भी काफी ज्यादा बढ़ सकती हैं। जनसंख्या-नियंत्रण का बेहतर तरीका तो यह है कि शादी की उम्र बढ़ाई जाए, स्त्री शिक्षा बढ़े, परिवार-नियंत्रण के साधन मुफ्त बांटे जाएं, शारीरिक श्रम की कीमत ऊँची हो, जाति और मजहब के वोटों की राजनीति का खात्मा हो।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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