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उज्जैन : बडऩगर के भिड़ावद गांव में अनोखी परंपरा, गायों के नीच लेटते हैं लोग…

October 22, 2025

उज्जैन. मध्य प्रदेश (MP) की धार्मिक नगरी उज्जैन (Ujjain) से करीब 75 किलोमीटर दूर बड़नगर (Badnagar) तहसील के भिडावद गांव (Bhidavad village) में गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) पर एक अद्वितीय और साहसिक परंपरा का निर्वहन किया जाता है, जिसे “मौत का खेल” भी कहा जाता है. यहां पर दीपावली के बाद पड़वा के दिन गायों की पूजा के बाद लोगों की आस्था के प्रतीक के रूप में यह अनोखी प्रथा निभाई जाती है. इस अनुष्ठान के अंतर्गत मन्नत मांगने वाले लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से सैकड़ों गायें दौड़ते हुए निकलती हैं. यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि गांववालों के लिए एक पुरानी मान्यता है जो पीढ़ियों से चली आ रही है.

बरसों से चली आ रही यह परंपरा
ग्रामीणों का कहना है कि इस अनूठी परंपरा की शुरुआत कब हुई, यह किसी को भी नहीं पता. यह परंपरा इस गांव और आसपास के इलाकों के लिए आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यहां के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक, सभी इस परंपरा को देखते हुए बड़े हुए हैं और इसे निभाते आ रहे हैं. दूर-दूर से लोग, जिन्हें अपनी मन्नतें पूरी करनी होती हैं या जिनकी मन्नतें पूरी हो चुकी होती हैं, यहां आते हैं. दीपावली के पांच दिन पहले से ही भक्त अपने घर छोड़कर मां भवानी के मंदिर में आकर रहने लगते हैं. यहां यह मेला दिवाली के अगले दिन लगता है, जिसमें मन्नत मांगने वाले लोग जमीन पर लेट जाते हैं ताकि उनके ऊपर से गायें गुजरें और उनकी इच्छाएं पूरी हों.


माता की पूजा
गांव वालों के लिए गौ माता देवी का स्वरूप है, जो सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक मानी जाती हैं. इस दिन गायों की पूजा को मां गौरी की पूजा का दर्जा दिया जाता है. पारंपरिक गीतों के माध्यम से मां गौरी का आह्वान किया जाता है, जिससे गौ माता गांव के चौक में आएं और उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद दें. इस पूजा के दौरान मन्नत मांगने वाले पूजा की थाली में गाय के गोबर सहित पूजा सामग्री रखते हैं. यह थाली देवी स्वरूपा गौरी को समर्पित होती है. गांव में ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ गायों का पूजन किया जाता है, फिर मां गौरी के आशीर्वाद के रूप में गायों को लोगों के ऊपर से दौड़ाया जाता है.

मन्नति रखते है व्रत फिर होता है शुरू मौत का खेल
इस परंपरा के तहत मन्नत मांगने वाले भक्तों को पांच दिन का उपवास रखना पड़ता है. वे सूर्योदय से पहले गांव के चौक पर एकत्रित होते हैं, अपनी मन्नत पूरी करने के लिए गायों के सामने लेट जाते हैं. गायों के ऊपर से गुजरने के इस साहसी कार्य को लोग पूरी श्रद्धा से निभाते हैं. उनकी आस्था है कि इस अनुष्ठान को निभाने से उनकी मुरादें पूरी होती हैं. ग्रामीणों के अनुसार, यह परंपरा उनके पूर्वजों से चली आ रही है, और इसलिए मन्नत मांगने वाले लोगों में यह दृढ़ विश्वास है कि पुरखों की यह परंपरा उन्हें देवी का आशीर्वाद और सफलता प्रदान करती है.

मौत का खेल या आस्था का प्रतीक?
यह अनोखी परंपरा भले ही देखने में खतरनाक प्रतीत होती है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह एक धार्मिक आस्था और संस्कृति का प्रतीक है. इस परंपरा को निभाते हुए उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं होता, बल्कि उन्हें यह पूरा विश्वास होता है कि गायों के कदमों से गुजरने से उनकी मन्नतें पूरी होंगी. इस वर्ष भी भिडावद गांव में गोवर्धन पूजा के अवसर पर इस परंपरा का आयोजन हुआ, जिसमें स्थानीय लोगों के साथ सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए. भक्तों का कहना है कि यह परंपरा उनकी धार्मिक आस्था का प्रतीक है और हर साल इसे निभाने से वे अपने देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

गाय निकलने के बाद जश्न
गाय जब उपवास रखने वाले युवकों के ऊपर से गुजरती है. इसके बाद सभी लोगों को उठाया जाता है. मन्नत धारियों को सुरक्षित देख गांव में ढोल बाजे के साथ जश्न शुरू होता है.इसके बाद पूरे गांव में उपवास रखने वाले युवकों के साथ ग्रामीण भी ढोल बाजे के साथ निकलते हैं.ग्रामीणों का कहना है कि गांव में ये परंपरा कब शुरू हुई किसी को याद नहीं। लेकिन गाय के पैर के नीचे आने के बाद भी आज तक कोई भी घायल नहीं हुआ है. ग्रामीण गाय को सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक मानते हैं.

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