ब्‍लॉगर

रॉबर्ट वाड्रा-फिरोज गांधी का फर्क समझिए

– आर.के. सिन्हा

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा का आजकल एक नया चेहरा सबके सामने आ रहा है। वे टोयोटा लैंड क्रूजर एसयूवी में लॉकडाउन के कारण सड़कों पर पैदल ही निकले प्रवासी मजदूरों के पास पहुंचते हैं। उन बेबस मजदूरों के साथ कुछ वक्त गप्पें लगाकर अपनी महंगी एसयूवी में निकल लेते हैं। उनका नाटक यहीं तक सीमित नहीं है। वे पेट्रोल और डीजल की कीमतों की वृद्धि पर भी 15 मिनट के लिए सड़कों पर उतरते हैं। इसबार वे एक महंगी साइकिल से लुटियन दिल्ली की मक्खन जैसी सड़कों पर सैर करते चलते हैं। फिर वे एक जगह रुक जाते हैं। वहां पहले से आमंत्रित मीडिया पहुंचा होता है। उनके सामने वे सरकार को कोसते हैं कि वह ईंधन के तेजी से बढ़े हुए दामों को कम नहीं कर पा रही है। यहां भी वे पत्रकारों को प्रवचन देकर अपनी चमचमाती टोयोटा लैंड क्रूजर एसयूवी में बैठकर फुर्र से निकल लेते हैं।

समझो वाड्रा का दर्द
रॉबर्ट वाड्रा की पीड़ा को समझा जा सकता है जिसके चलते वे दुखी हैं। सरकार ने उनकी पत्नी प्रियंका गांधी से उनका लोधी एस्टेट का आलीशान बंगला खाली करवा लिया। वे उसमें बिना किसी सरकारी पद के भरपूर मौज ले रहे थे। जाहिर है कि लोधी एस्टेट का बंगला खाली होने से वे अंदर तक निराश तो होंगे ही। अब जाहिर है कि वे अपनी भड़ास किसी न किसी रूप में निकालेंगे ही। उन्हें एक नागरिक होने के नाते सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की निंदा करने का अधिकार तो है ही। पर वे अपने को इस देश का सामान्य नागरिक मानते कब हैं। अगर मानते तो वे लगातार जनता के सवालों को उठाते। वे एकबार दिखाई दिए थे,किसी एक स्थान पर मजदूरों को मास्क, सैनेटाइजर उपलब्ध करवाते हुए। उसके बाद वे लगभग एक साल गायब हो गए। क्या कोरोना महामारी पर विजय पा ली गई? तो फिर वे मोर्चे से क्यों नदारद हुए। अगर वे ईंधन के दामों को लेकर सच में बहुत चिंतित हैं तो अपनी कारों के काफिले को बेचकर एक-दो छोटी कारें रख लें। वे दिल्ली में रहते हैं तो उन्हें मेट्रो रेल में भी सफर करने में दिक्कत नहीं होना चाहिए। इसकी सेवा भी शानदार है।

ससुराल के नाम को भुनाया
सारा देश जानता है कि रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी ससुराल के रसूख के चलते कथित रूप से आनन-फानन में मोटा पैसा कमाया। उनके काले कारनामों का चिट्ठा देश के सामने आ चुका है। उन्हें मालामाल करवाने में हरियाणा और राजस्थान की कांग्रेस सरकारों ने सारे नियम-कानूनों को ताक पर रखकर उनकी दिल खोलकर मदद की। गांधी-नेहरू परिवार में वाड्रा और फिरोज गांधी के रूप में दो बिल्कुल अलग ही तरह के दामाद आए हैं। रॉबर्ट वाड्रा पर रीयल एस्टेट क्षेत्र की बड़ी कंपनी डीएलएफ के सौजन्य से मोटा पैसा बनाने के आरोप लगते रहे हैं।

एक तो वाड्रा हैं, दूसरी तरफ इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी थे। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद करते ही रहे। वे बेहद स्वाभिमानी किस्म के इंसान थे। हालांकि उनके ससुर पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे, इसके बावजूद वे तीन मूर्ति स्थित प्रधानमंत्री आवास में कभी भी नहीं रहे। फिरोज गांधी का अपना खास व्यक्तित्व था। वे सिर्फ इंदिरा गांधी के पति और नेहरू जी के दामाद ही नहीं थे। उन्होंने सांसद रहते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की और 1955 में संसद में निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों की तरफ से की जाने वाली कथित धोखाधड़ी का मामला संसद में उठाया। उनकी मांग के बाद ही सरकार ने बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण किया। फिरोज गांधी ने सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनी में गड़बड़ी के लिए हरिदास मुंद्रा के खिलाफ संसद में आवाज उठाई। उनके अभियान के चलते नेहरू सरकार की छवि को ठेस भी पहुंची। फिरोज गांधी नेशनल हेरल्ड के प्रबंध निदेशक भी रहे। वे 1952 और 1957 में रायबरेली से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। नेहरू जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी तीन मूर्ति भवन में विशिष्ट अतिथियों का स्वागत करने लगीं, पर फिरोज अलग अपने सांसद वाले आवास में ही रहे। दिल्ली प्रेस क्लब उनका बैठकी वाला घर हुआ करता था। फिरोज गांधी को उनकी इन्हीं खूबियों के कारण देश उन्हें आज भी याद करता है।

दामाद बाकी प्रधानमंत्रियों के
अब बात कर लें लाल बहादुर शास्त्री के दोनों दामादों क्रमश: कौशल कुमार और विजयनाथ सिंह की भी। ये हमेशा विवादों से परे रहे। कौशल कुमार बड़े दामाद थे। उनकी पत्नी कुसुम का बहुत पहले निधन हो गया। कौशल कुमार आईएएस अफसर थे। उनका जीवन भी बेदाग रहा। विजयनाथ सिंह सरकारी उपक्रम में काम करते थे। लाल बहादुर शास्त्री ने कभीअपने बच्चों या दामादों को इस बात की इजाजत नहीं दी कि वे उनके नाम या पद का दुरुपयोग करें। क्या इस तरह का दावा वाड्रा या प्रियंका कर सकते हैं।

चौधरी चरण सिंह की भी चार बेटियां थीं। उनके सभी दामाद भी कभी विवादों में नहीं रहे। एक दामाद डॉ. जेपी सिंह राजधानी के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के प्रमुख भी रहे। पी.वी. नरसिंह राव के तीन पुत्र और पांच पुत्रियां थीं। राजनीति में आने के बाद उनका अपने बेटों या बेटियों से किसी तरह का घनिष्ठ संबंध नहीं था। वे जब प्रधानमंत्री बने तब भी उनके पास उनका कोई बेटा या बेटी नहीं रहते थे। राव साहब की पत्नी के 70 के दशक में निधन के बाद उनका अपने परिवार से कोई खास संबंध नहीं रहा। जब उनका कोई पुत्र या पुत्री उनके पास आते भी थे तो वे उनसे मिलने के कुछ देर के बाद ही उन्हें विदा कर देते थे। एच.डी.देवगौड़ा की दोनों पुत्रियों. डी.अनुसूईया और ए.डी. शैलेजा के पति डॉ. सी.एन.मंजूनाथ और डॉ. एच.एस.जयदेव मेडिकल पेशे से जुड़े हैं। इन पर भी कभी अपने ससुर के नाम का बेजा इस्तेमाल का आरोप नहीं लगा।

अगर बात डॉ. मनमोहन सिंह के दामादों की करें तो ये भी विवादों से बहुत दूर रहे। उनकी सबसे बड़ी पुत्री डॉ. उपिंदर सिंह के पति डॉ. विजय तन्खा दिल्ली यूनिवर्सिटी में अध्यापक रहे। दूसरी बेटी दमन सिंह के पति अशोक पटनायक आईपीएस अफसर थे। तीसरी बेटी अमृत सिंह अमेरिका में अटार्नी हैं। उसके पति अध्यापक हैं।

मतलब साफ है कि रॉबर्ट वाड्रा इन सबसे अलग हैं। उनमें कोई गरिमा नाम की चीज नहीं है। इसलिए उनके प्रति देश लेशमात्र भी सम्मान का भाव नहीं रखता है। वे इस देश के एक खास परिवार के दामाद हैं। भारतीय समाज में दामाद का बहुत अहम स्थान होता है। पर रॉबर्ट वाड्रा अपने कृत्यों से अपने सम्मान को तार-तार कर चुके हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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