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पेरिस समझौते पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने किया ये बड़ा ऐलान

वाशिंगटन। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की समस्या पर रविवार को अमेरिका (USA) से राहत देने वाली खबर आई है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने कहा है कि उनकी सरकार जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के मुद्दे को लेकर गंभीर है। अमेरिका दोबारा पेरिस समझौते (Paris Agreement) में शामिल होगा।

अमेरिका (USA) नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने कहा कि अमेरिका (USA) एक बार फिर से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के मुद्दे पर दुनिया का नेतृत्व करेगा। डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते (Paris Agreement) को मानने से इंकार कर दिया था और इससे अलग होने का फैसला किया था।

राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) ने ट्वीट में लिखा कि पहले दिन ही, मेरी सरकार पेरिस समझौते (Paris Agreement) में दोबारा शामिल होगी। अमेरिका (USA) एक बार फिर से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर दुनिया का नेतृत्व करेगा। साल 2019 के नवंबर महीने में अमेरिका (USA) ने पेरिस समझौते (Paris Agreement) से अलग होने के लिए औपचारिक रूप से नोटिस दिया था। फिर सालभर चली प्रक्रिया के बाद 4 नवंबर, 2020 को अमेरिका (USA) जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की समस्या से निपटने के लिए हुए पेरिस समझौते (Paris Agreement) से बाहर हो गया था।

चीन (China) के बाद अमेरिका (USA) कार्बन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। अगर प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात करें तो इसमें अमेरिका दुनियाभर में पहले नंबर पर है। चीन 30 प्रतिशत, अमेरिका 13.5 प्रतिशत और भारत 6.8 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का जिम्मेदार है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं। पेरिस समझौते (Paris Agreement) के मुताबिक, अमेरिका को 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 26-28 प्रतिशत तक कमी लानी थी।

फ्रांस की राजधानी पेरिस में दिसंबर, 2015 में 190 से ज्यादा देशों ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। पेरिस समझौते का उद्देश्य पृथ्वी पर बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग पर काबू पाना है, जिससे 21वीं सदी खत्म होने तक पृथ्वी के तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक रोका जा सके। पेरिस समझौता 5 साल के चक्र में काम करता है। पेरिस समझौते के मुताबिक, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के लिए विकसित देश विकासशील और अल्प विकसित देशों को वित्तीय मदद भी देते हैं।

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