ब्‍लॉगर

अवकाश के लिए हिंसा पर उतरती पुलिस ?

– प्रभुनाथ शुक्ल

उत्तर प्रदेश के बदायूं की घटना हमारे लिए विचारणीय है। एक सिपाही ने एसएसआई को इसलिए गोली मार दी कि वह 10 दिनों का अवकाश चाहता था लेकिन एसआई सिपाही को सिर्फ़ चार दिनों का अवकाश दे रहा था। सिपाही इसी बात से झल्ला गया और एसआई को गोली मारने के बाद ख़ुद को भी गोली मार ली। दोनों को इलाज के लिए भर्ती कराया गया है। निश्चित रूप से यह बुरी ख़बर है। सिपाही को ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योंकि अगर उसी का अनुसरण यूपी पुलिस करने लगे तो स्थिति कितनी खतरनाक होगी यह समझा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में बदायूं की घटना सिर्फ़ उदारहण है। इस तरह की अनगिनत घटाएँ सेना, सीआरपीएफ और दूसरी जगह भी आए दिन मीडिया की सुर्ख़ियां बनती हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस में ही बदायूं सरीखे अनगिनत उदारहण हैं। हालांकि यह घटना जाँच का विषय है। क्योंकि सिपाही से अधिक एसआई का भी गुनाह हो सकता है। कभी- कभी ओहदे के अहम या अनबन की वजह से भी इस तरह की घटनाएं होती हैं। फिलहाल जाँच के बाद यह स्थिति साफ होगी। हम उस बहस में नहीं पड़ना चाहते हैं लेकिन यह घटना हुई क्यों यह जानना आवश्यक है।

देश के सशस्त्र बल में अवकाश की बड़ी समस्या है। यह समस्या सिर्फ यूपी पुलिस की नहीं बल्कि सभी राज्यों की है। पुलिसकर्मियों में काम के अधिक बोझ की वजह से मानसिक तनाव, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और दूसरी बीमारियाँ पैदा होती हैं। पुलिसवालों को हमेशा ऑन ड्यूटी रहना पड़ता है। जिसका नतीजा होता है कि कई पुलिसकर्मी अपनी औसत दैनिक नींद भी पूरी नहीं कर पाते हैं। दिनरात नौकरी की वजह से स्थिति विकट हो जाती है। छुट्टी न मिलने की वजह से परिवार को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। बीबी और बच्चों, बुजुर्ग माँ- बाप की देखभाल नहीं कर पाते। परिजनों के बीमार होने या किसी विषम परिस्थिति में फंसने पर अपना पारिवारिक दायित्व नहीं निभा पाते हैं।

अधिकांश पुलिस के लोग अपने बाल-बच्चों को भी साथ नहीं रख पाते हैं क्योंकि पुलिस विभाग के पास तैनाती स्थल पर पर्याप्त आवासीय सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। पुलिस थानों में बैरक उस हिसाब से नहीं होते जितने पुलिसकर्मी हैं। जहाँ होते भी हैं वह जीर्ण और सुविधाविहीन होते हैं। पुलिसकर्मी और अफसर निजी किराए के कमरों में रहते हैं। मेस की भी उचित सुविधा नहीं होती क्योंकि अधिकांश थानों पर फालोवर की तैनाती नहीं है। पुलिस निजी फालोवर यानी रसोईया रखकर काम चलाती है। कोरोना संक्रमण काल में पुलिसवालों के लिए गम्भीर स्थिति है। पुलिस के लोग कई-कई महीनों तक संक्रमण के डर से अपने परिजनों से नहीं मिल पाए हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस में ‘साप्ताहिक अवकाश’ पर अभीतक फैसला नहीं हो पाया है। योगी सरकार ‘वीकली ऑफ’ को लेकर गम्भीर है। राज्य की पुलिस और अफसरों से इसपर राय माँगी गई थी लेकिन अभीतक इसपर कोई फैसला नहीं हो पाया है। हर इंसान का सार्वजनिक जीवन से इतर उसकी अलग जिंदगी होती है। उसके लिए उसे वक्त ज़रूरी है। फ़िर पुलिस कोई मशीन नहीं होती है, वह भी हमारे आपके बीच के होते हैं। पुलिस वालों से अगर बेहतर काम लेना है तो उनके लिए अच्छी सुख- सुविधाओं के साथ उनकी निजी जिंदगी का ख़याल रखना होगा। पुलिस को जितनी बेहतर सुविधाएं मिलेगी उसके काम का तरीका उतना अच्छा और प्रभावशाली होगा। हम दबाव में ‘गुडवर्क’ की उम्मीद नहीं पाल सकते। देश के कई राज्यों में वीकली ऑफ और आठ घंटे की ड्यूटी का नियम है। जबकि यूपी पुलिस चौबीस घंटे ‘ऑन ड्यूटी’ रहती है।

पुलिस को और अधिक क्रियाशील बनाने के लिए अधिक भर्ती करनी होगी। राज्य की आबादी के अनुपात में पुलिस की संख्या कम है। हालांकि यह स्थिति पूरे भारत और राज्यों की है, लेकिन फ़िर भी गम्भीरता से विचार करना होगा। देश में औसतन 732 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी की व्यवस्था है। जबकि संयुक्त राष्ट्र ने हर 450 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी की सिफारिश की है। 2017 तक दस हजार आबादी पर सिर्फ़ 148 पुलिस की उपलब्धता थी। जबकि विश्वस्तर की रेटिंग 222 पुलिस की है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरडी) के सर्वे के अनुसार देश के 90 फीसदी पुलिस हर रोज आठ घंटे से ज्यादा काम करती है। 73 फीसदी पुलिस वालों को एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिलती।

देश और राज्यों में पुलिस सुधार की लम्बे समय से मांग उठ रही थी, लेकिन आजतक उसपर अमल नहीं किया गया। 1977 में धर्मवीर की अध्यक्षता में राष्ट्रीय पुलिस आयोग गठित किया गया था। आयोग ने केंद्र सरकार को आठ रिपोर्टें सौंपी थीं, लेकिन सभी पर सरकारों ने अमल नहीं किया। बदायूं की घटना के बाद वरिष्ठ आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने अपने फ़ेसबुक वॉल पर लिखा है कि 28 साल पहले जब मैं यूपी पुलिस में आया उस दौरान भी छुट्टी एक बहुत बड़ी समस्या थी। शुरू से ही इस मामले में उदार रहा था। हर किसी को तत्काल छुट्टी देने पर डांट भी खाता था। आईआईएम लखनऊ में किये गए अपने रिसर्च में पाया कि यदि कर्मियों को सही ढंग से छुट्टी मिलती रहे तो पुलिस का प्रदर्शन दोगुना बढ़ सकता है।

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनोज तिवारी मानते हैं कि पुलिस वालों के लिए अवकाश बेहद ज़रूरी है। बदायूं की घटना की मूल वजह यही है। समय पर छुट्टी न मिलने पर काम का बोझ बढ़ जाता है। 74 फीसदी पुलिसकर्मियों का माना है कि उनपर काम का अधिक दबाव है। जबकि 84 फीसदी पुलिस वालों ने यह माना है कि वे अपने परिवार को समुचित समय नहीं दे पाते हैं। ‘स्टेट ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट’ में कहां गया है कि भारत में औसतन पुलिसकर्मी 14 घंटे से अधिक काम करते हैं। जबकि 44 फीसदी पुलिस के लोग 12 घंटे से अधिक काम करते हैं। जबकि 24 फीसद पुलिस वाले 16 घंटे से अधिक काम करते हैं। पुलिस की अनियमित दिनचर्या की वजह से हृदय, मांसपेशी, डायबिटीज और आँख की बीमारियाँ अधिक पायी जाती हैं। काम की अधिकता की वजह से अनिद्रा और मानसिक तनाव अधिक बढ़ रहा है।

राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर पुलिस बल तैयार करने के लिए उनकी समस्याओं और मनोभावों को समझना ज़रूरी होगा। काम का समय निर्धारित किया जाए और सप्ताह में एकदिन छुट्टी प्रदान की जाए। परिवार को साथ रखने की व्यवस्था की जाए। बाहरी दबावों से पुलिस बल को मुक्त किया जाए। स्थानांतरण की स्थाई नीति बनाई जाए। पुलिस बलों की पर्याप्त नियुक्ति कर उनके काम के बोझ को कम किया जाए। समय-समय पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराया जाए ताकि जिनमें उच्च स्तर का तनाव या अन्य किसी प्रकार की मानसिक समस्या दिखाई पड़े। राज्य सरकार को पुलिस कि स्थिति पर गम्भीरता से विचार करते हुए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। व्यक्तिगत समस्याओं को लेकर पुलिस का हिंसा पर उतर आना अच्छा संकेत नहीं है। हमें बदायूं की घटना को गम्भीरता से लेकर उस पर विचार करना चाहिए। राज्य स्तर पर पुलिस आयोग गठित कर विभाग में उनकी व्यक्तिगत समस्याओं पर रिपोर्ट तैयार कर समस्या का उचित समाधान करना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Share:

Next Post

शिक्षक दिवस : राष्ट्रपति ने 18 महिलाओं सहित 47 शिक्षकों को दिए 'राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार'

Sat Sep 5 , 2020
नई दिल्ली । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को 18 महिलाओं और दो दिव्यांगों सहित कुल 47 उत्कृष्ट शिक्षकों को ‘राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार’ प्रदान किए। कोविड-19 के कारण पहली बार शिक्षक दिवस के मौके पर शिक्षकों को वर्चुअल माध्यम से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होने वालों में दिल्ली के माउंट आबू स्कूल, […]