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Varuthini Ekadashi 2023 : कब है वरुथिनी एकादशी का व्रत? जानें तिथि, मुहूर्त व पूजा विधि

नई दिल्ली (New Delhi) । हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का काफी खास महत्व (Importance) बताया गया है. एकादशी का व्रत रखने से चंद्रमा के बुरे प्रभावों से बचा जा सकता है. यहां तक कि ग्रहों के असर को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है, क्योंकि एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है. हिंदू पंचांग के मुताबित, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार वरुथिनी एकादशी का व्रत 16 अप्रैल 2023 को रखा जाएगा.

वरुथिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त (Varuthini Ekadashi Shubh Muhurat)
वरुथिनी एकादशी रविवार, अप्रैल 16, 2023 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 15, 2023 को रात 08 बजकर 45 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त – अप्रैल 16, 2023 को शाम 06 बजकर 14 मिनट पर खत्म
पारण (व्रत तोड़ने का) समय- अप्रैल 17, 2023 को सुबह 05 बजकर 54 मिनट से सुबह 08 बजकर 28 मिनट तक

वरुथिनी एकादशी पर खास योग (Varuthini Ekadashi Shubh Yog)
इस बार वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi ) के दिन त्रिपुष्कर योग बनने जा रहा है. यह योग 17 अप्रैल सुबह 4 बजकर 7 मिनट से लेकर 17 अप्रैल सुबह 5 बजकर 54 मिनट तक रहेगा. वरुथिनी एकादशी के दिन इस योग का बनना काफी शुभ माना जाता है.


वरुथिनी एकादशी पर कैसे करें पूजा? (Varuthini Ekadashi Puja Vidhi)
इस दिन उपवास रखना बहुत उत्तम होता है. अगर उपवास न रख पाएं तो कम से कम अन्न न खाएं. भगवान कृष्ण के मधुसूदन स्वरूप की उपासना करें. उन्हें फल और पंचामृत अर्पित करें. उनके समक्ष “मधुराष्टक” का पाठ करना सर्वोत्तम होगा. अगले दिन सुबह अन्न का दान करके व्रत का पारायण करे.

एकादशी पर स्तुति का पाठ करें (Varuthini Ekadashi Stuti)
वरुथिनी एकादशी पर प्रेम, आनंद और मंगल के लिए मधुराष्टक का पाठ करें. कठिन से कठिन समस्या के निवारण के लिए गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करें. संतान संबंधी समस्याओं के लिए गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करें. भक्ति और मुक्ति के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. पापों के प्रायश्चित के लिए भगवद्गीता के 11वें अध्याय का पाठ करें.

वरुथिनी एकादशी का महत्व (Varuthini Ekadashi Importance)
वैसे तो हर एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण है. फिर भी हर एकादशी की अपने आप में कुछ अलग महिमा भी है. इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को सर्वदा समृद्धि औरसौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान के मधुसूदन स्वरूप की उपासना की जाती है. रात्रि में जागरण करके उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में मंगल ही मंगल होता है. इस दिन श्री वल्लभाचार्य का जन्म भी हुआ था. पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है.

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