ब्‍लॉगर

आप कब शुरू करेंगे मोटे अनाज का भोजन

– आर.के. सिन्हा

पिछले सप्ताहांत हिन्द महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के त्रिवेणी संगम पर स्थित कन्याकुमारी के स्वामी विवेकानंद परिसर के सभागार में आयुष मंत्रालय के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय ‘इंटरनेशनल आयुष समिट’ में ‘की नोट स्पीच’ मैंने दी।समारोह केरल के राज्यपाल आरिफ मोहमम्द खान मौजूद रहे। मेरा पूरा व्याख्यान रोगों से बचाव में मोटे अनाज की उपयोगिता को लेकर रहा। मैंने उपस्थित सैकड़ों डॉक्टरों और विभिन्न मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों से यही कहा कि आप अच्छे डॉक्टर मात्र अच्छी दवाइयां लिखने भर से नहीं कहे जायेंगे बल्कि अच्छे डॉक्टर बनने के लिए आपको अपने मरीजों को यह भी बताना होगा कि वे जिस रोग से ग्रसित हैं, उससे बचा कैसे जा सकता है। यदि डॉक्टर रोगों की प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने वाले मोटे अनाजों के गुण को समझ लें तो उनका, उनके मरोजों का और पूरे समाज को भारी फायदा होगा।


मोटे अनाज सिर्फ प्रोटीन और फाइबर ही नहीं देते बल्कि, खाने वाले को शरीर में उत्पन्न हो रहे रोगों का निदान भी करते हैं। यदि आप हाल के दिनों में दिल्ली गए हों तो देखेंगे कि राष्ट्रीय राजधानी में भारत सरकार के बहुत से बड़े-बड़े दफ्तर निर्माण भवन, शास्त्री भवन, कृषि भवन के भवनों वगैरह से चलते हैं। जाहिर है, जहां पर हजारों मुलाजिम काम करेंगे और रोज सैकड़ों बाहरी लोगों का भी आना-जाना लगा रहेगा, वहां पर कैंटीन तो होगी ही। इस लिहाज से निर्माण भवन की कैंटीन ने अपने को बदला है। वहां पर अब मोटे अनाज से तैयार होने वाले पकवान भी परोसे जाते हैं। हालांकि पिछले सात दशकों से मात्र गेहूं और मैदे की डिशेज ही मिला करती थीं।

यह एक तरह से यह वर्तमान मोदी सरकार की संकल्प शक्ति और दृढ़ इच्छा का ठोस संकेत है कि चालू वर्ष 2023 को चूंकि विश्वस्तर पर अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। अतः इस वर्ष खान-पान में एक व्यावहारिक बदलाव आये और अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष नाम भर का नहीं रह जाये। इसका प्रस्ताव भारत ने दिया और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसका अनुमोदन किया। भारत के इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 मार्च 2021 को अपनी स्वीकृति दी थी। इसका उद्देश्य विश्व स्तर पर मोटे अनाज के उत्पादन और खपत के प्रति जागरुकता पैदा करना है।

दरअसल मोटे अनाजों में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि से भरपूर इन अनाजों को सुपरफूड भी कहा जाता है। ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), मक्का, जौ, कोदो, सामा, सांवा, कंगनी, कुटकी चीना आदि जिसे लघु घान्य या श्री धान्य भी कहा जाता है मोटे अनाज की श्रेणी में आते हैं। लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज मिलेट्स यानी मोटा अनाज होते हैं। इनका सेवन करने से हड्डियों को मजबूती मिलती है। कैल्शियम की कमी से बचाव होता है। ज्यादा फाइबर होने से पाचन दुरुस्त होता है। वजन कंट्रोल होने लगता है। दुबले-पतलों का वजन कुछ बढ़ जाता है तो ज्यादा वजन वालों का घाट जायेगा। एनीमिया का खतरा कम होता है। यह डायबिटीज तथा दिल के रोगियों के लिए भी यह उत्तम माना जाता है। जब इन दोनों रोगों की चपेट में लगातार लोग आ रहे हैं तब मोटे अनाज का सेवन संजीवनी बूटी का काम कर सकता है।

आजकल तो शादियों का सीजन चल रहा है। हर रोज भारी संख्या में विवाह हो रहे हैं। आपको भी विवाह समारोहों में भाग लेने के निमंत्रण मिल ही रहे होंगे। अगर विवाह के कार्यक्रमों में भी मोटा अनाज से तैयार कुछ व्यंजन अतिथियों को परोसा जाए तो यह एक शानदार पहल होगी। आखिर हम कब तक वही खाएंगे जो खाते आ रहे हैं और बीमार पड़ते चले जा रहे हैं। आप विश्व भर में सारी बीमारियों की जड़ गेहूं है। मैं सलाह देता हूं कि पाठक गूगल पर सर्च करके एक पुस्तक “वीट बेली” यानी “गेहूं की तोंद” नामक पुस्तक को डाउनलोड कर लें जिसने पूरे अमेरिका और यूरोप में तहलका मचाया हुआ है। “वीट बेली” अमेरिकी वैज्ञानिकों के शोध के उपरांत तैयार एक ऐसी पुस्तक है जिसमें यह सिद्ध किया गया है कि गेहूं में पाया जाने वाला “ग्लूटेन” नाम का रसायन डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग, मानसिक बीमारियों के साथ-साथ मोटापे की भी मुख्य वजह है। गेहूं छोड़िये और वजन घटाइए। अभी हम जिस गेहूं से पका हुआ भोजन कर रहे हैं, उससे हमारी सेहत बिगड़ रही है। देखिए अब देशवासियों को अपनी जुबान से ज्यादा अपनी सेहत पर ध्यान देना होगा। वह तब ही संभव है जब हम मोटा अनाज को अपने भोजन का हिस्सा बनाने लगेंगे। अब इस लिहाज से देरी करने का समय नहीं रह गया है। देरी से नुकसान ही होगा। देरी छोड़िये, अपना स्वास्थ्य सुधारिये।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी चाहते हैं कि भारत मोटे अनाज का वैश्विक केंद्र बने और अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 को ‘जन आंदोलन’ का रूप दिया जाए। बेशक, भारत दुनिया को मोटा अनाज के लाभ बताने-समझाने में अहम भूमिका निभा रहा है। हमारे देश में एशिया का लगभग 80 प्रतिशत और विश्व का 20 प्रतिशत मोटा अनाज पैदा होता है। चूंकि, यह असिंचित भूमि पर आसानी से हो सकता है अतः यदि मांग बढ़ेगी तो भारत में इसकी पैदावार कई गुना बढाई जा सकती है। अभी तो गरीब किसान खुद के खाने भर ही मोटे अनाज को उगाते हैं। जब उनका मोटा अनाज बाजार में बिकने लगेगा तो वे क्यों न अपना उत्पादन बढ़ाएंगे ? एक अनुमान के मुताबिक, 100 से अधिक देशों में मोटे अनाज की खेती होती है।

आपको बुजुर्ग बता सकते हैं कि मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदों आदि) पहले खूब खाया जाता था। हम गेहूं के आटा के आदी हो चुके हैं तो मिलेट्स और गेहूं का आटा मिलाकर भी खा सकते हैं। अगर हम गेहूं के साथ कई तरह के अनाज या चने आदि को पिसवा लें तो मल्टीग्रेन आटा बन जाता है। जैसे गेहूं में प्रोटीन कम होता है लेकिन चने में ज्यादा। मिस्सी रोटी भी ऐसे ही तैयार होती है। पारंपरिक तौर पर दाल-चावल, दाल-रोटी की जोड़ी भी ऐसी है जिसमें अलग-अलग तरह के एमिनो एसिड होते हैं जो एक-दूसरे की कमी दूर करते हैं। गेहूं की एलर्जी से बचने के लिए अनाज को बदल-बदलकर खाना चाहिए। मल्टीग्रेन आटा तैयार करने का पहला तरीका है कि पहले महीने 10 किलो गेहूं के आटे में दूसरे अनाज 10 फीसदी ही मिलवाएं। तीन महीने बाद 25 फीसदी मिला लें। फिर तीन महीने बाद आधा गेहूं और आधा दूसरा आटा कर दें। वैसे बाजार में मिलनेवाले पैकेट के आटे में सिर्फ 10 फीसदी ही मल्टीग्रेन होता है। आटा को 15 दिन से ज्यादा पुराना होते ही उसकी पौष्टिक क्षमता कम होती जाती है।

इस बीच, अभी भी देश के उत्तरी राज्यों में जाड़े मौसम चल रहा है। जाड़े में मोटा अनाज खाना बेहद मुफीद रहता है। ठंड के दिनों में शरीर को गर्म रखने में भोजन की अहम भूमिका रहती है। मोटा अनाज खाने से जाड़े से बचाव होता है। इसलिए मोटा अनाज अवश्य खाना चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं मोटे अनाज में जौ, बाजरा, मक्का आदि शामिल होता है। इस अनाज की तासीर गर्म होती है। ये शरीर में पहुंचकर गर्माहट देते हैं। सर्दी में मोटा अनाज खाने की सबसे बड़ी वजह यही है। इनमें कई तरह के पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को फायदा पहुंचाते हैं। उदाहरण के रूप में भारी मात्रा में फाइबर। यह पेट के लिए सबसे बेहतर है। मोटे अनाज से आप दलिया, रोटी और डोसा बना सकते हैं। बाजरे की रोटी और भात (चावल) या खिचड़ी भी खानपान में शामिल की जा सकती है।

एक बात को जान लेना जरूरी है कि मोटे अनाज की खेती में कम मेहनत लगती है और पानी की भी कम ही जरूरत होती है। यह ऐसा अन्न है जो बिना सिंचाई और बिना खाद के पैदा किया जा सकता है। भारत की कुल कृषि भूमि में मात्र 25-30 फीसद ही सिंचित या अर्धसिंचित है। अत: लगभग 70-80 कृषि भूमि वैसे भी धान (चावल) या गेहूं नहीं उगा सकते। चावल (धान) और गेहूं के उगाने के लिये लगभग महीने में एकबार पूरे खेत को पानी से भरकर फ्लड इरीगेशन करना पड़ता है। इतना पानी अब बचा ही नहीं कि पीने के पानी को बोरिंग कर पम्पों से निकाल कर खेतों को भरा जा सके। धान और गेहूं में भयंकर ढंग से रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे इंसानों के स्वास्थ्य पर बुरा असर तो पड़ता ही है, जमीन बंजर होती जाती है वह अलग।

एक बात समझनी होगी कि जब मोटा अनाज की मांग बढ़ेगी तो बाजार में इनका दाम बढ़ेगा तभी असंचित भूमि वाले गरीब किसानों की आय भी बढेगी। कृषि विशेषज्ञ मानते हैं कि पूरे विश्व के मोटा अनाज का बड़ा उत्पादक भारत है, इसलिए भारत के पास यह अनुपम अवसर है अपने मोटा अनाज का निर्यात तेजी से बढ़ाने का। उस स्थिति में भारत का विदेशी मुद्रा का भंडार भरने लगेगा और गरीब किसानों का पेट भी।

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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