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पारसी फिरोज गांधी का हिंदू रीति-रिवाज से क्यों हुआ था अंतिम संस्कार? फ्रैंक की किताब में खुलासा

नई दिल्‍ली (New Delhi)। फिरोज गांधी (Firoz Gandhi) को करीब हफ्ते भर से सीने में दर्द की शिकायत थी. 7 सितंबर 1960 को जब दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उन्होंने अपने दोस्त डॉ. एचएस खोसला (Dr. HS Khosla) को फोन किया. इसके बाद खुद गाड़ी चलाकर दिल्ली के वेलिंगटन हॉस्पिटल पहुंचे. उस वक्त उनकी पत्नी इंदिरा गांधी दिल्ली से करीब 3 हजार किलोमीटर दूर, त्रिवेंद्रम में थीं। इंदिरा को जब खबर मिली तो फौरन दिल्ली के लिए रवाना हो गईं। पालम हवाई अड्डे से सीधे हॉस्पिटल पहुंचीं।

इंदिरा गांधी रात भर, फिरोज के बगल में बैठी रहीं. वो बेहोश थे. 8 सितंबर की सुबह चंद मिनट के लिए होश में आए, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। अपने 48वें जन्मदिन से महज 4 दिन पहले फिरोज गांधी का निधन हो गया। 7.45 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली. बर्टिल फाक अपनी किताब ‘फिरोज- द फॉरगॉटेन गांधी’ (The Forgotten Gandhi) में लिखते हैं कि फिरोज गांधी का पार्थिव शरीर वेलिंगटन हॉस्पिटल से तीन मूर्ति भवन लाया गया. इंदिरा उनके साथ-साथ थीं।



इंदिरा ने सबको कमरे से क्यों निकाल दिया था? तीन मूर्ति भवन पहुंचने पर इंदिरा ने कहा कि वह खुद फिरोज गांधी के पार्थिव शरीर को नहलाकर अंतिम संस्कार के लिए तैयार करेंगी और इस दौरान वहां पर कोई मौजूद नहीं रहेगा। सबको कमरे से बाहर जाने को कह दिया. तीन मूर्ति भवन की निचली मंजिल से सारे फर्नीचर वगैरह हटवा दिए गए और वहीं सफेद चादर पर फिरोज गांधी का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया.

दामाद को आखिरी बार देख नेहरू ने क्या कहा था? बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक उन दिनों ब्रिटिश एक्ट्रेस और फ़िल्म क्रिटिक मैरी सेटॉन (Marie Seton) जवाहरलाल नेहरू की मेहमान थीं और तीन मूर्ति भवन में ही ठहरी हुई थीं. मैरी लिखती हैं कि जवाहरलाल नेहरू, संजय गांधी के साथ उस कमरे में पहुंचे, जहां फिरोज गांधी का पार्थिव शरीर रखा था.

नेहरू का चेहरा एकदम पीला पड़ गया था. इंदिरा गांधी भी अंदर से बुरी तरह हिली नजर आ रही थीं. फिरोज गांधी के अंतिम दर्शन के लिए लोगों की भीड़ देख नेहरू ने कहा- ‘मुझे पता नहीं था कि फिरोज को लोग इतना पसंद करते थे…’।

हिंदू रीति-रिवाज से क्यों हुआ अंतिम संस्कार? 9 सितंबर की सुबह फिरोज गांधी का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए निगमबोध घाट की तरफ रवाना हुआ. फिरोज गांधी को जब पहली बार दिल का दौरा पड़ा था तभी उन्होंने अपने दोस्तों से कह दिया था कि वह अपना अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाज से नहीं कराना चाहते हैं. पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार की परंपरा हिंदू, मुस्लिम या ईसाइयों से बहुत अलग है. न तो शव को जलाया जाता है और न तो दफनाया जाता है. बल्कि ‘टावर आफ साइलेंस’ में रख दिया जाता है, जहां चील-कौवे और जानवर अपना भोजन बनाते हैं.
कैथरीन फ्रैंक अपनी किताब ‘द लाइफ ऑफ इंदिरा गांधी’ में लिखती हैं कि ‘भले ही फिरोज गांधी का अंतिम संस्कार हिंदू तौर-तरीकों से हुआ लेकिन इंदिरा ने सुनिश्चित किया कि फिरोज के शव को जलाने से पहले कुछ फारसी रीति रिवाजों का भी पालन किया जाए. ‘अहनावेति’ का पूरा अध्याय पढ़ा गया. इसके बाद 18 साल के राजीव गांधी ने अपने पिता को मुखाग्नि दी.

फिर कहां से आई कब्र? फिरोज गांधी का परिवार लंबे वक्त तक सूरत में रहा था. बाद में फिरोज इलाहाबाद आ गए थे. अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियों के तीन हिस्से किये गए. एक हिस्सा पंडित नेहरू की मौजूदगी में इलाहाबाद के संगम में प्रवाहित कर दिया गया. दूसरा इलाहाबाद में ही दफना दिया गया, जहां उन्होंने अपने जीवन के ज्यादातर वक्त बिताए थे. तीसरा हिस्सा सूरत ले जाया गया और वहां उनकी पुश्तैनी कब्रगाह में दफनाया गया.

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