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10 लाख जीव-जंतुओं की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर, जाने क्‍या है इसके पीछे की वजह ?

नई दिल्‍ली । दुनिया भर के वैज्ञानिकों (scientists) ने 19 दिसंबर 2022 को यह फैसला किया है कि वो प्रकृति और जीव-जंतुओं (nature and animals) के संरक्षण के लिए आगे बढ़कर और ज्यादा काम करेंगे. क्योंकि पिछले एक करोड़ साल में जो नहीं हुआ, वो अब हो रहा है. इस समय 10 लाख से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं. क्योंकि जब किसी जानवर की प्रजाति खत्म होती है, तब उसके जीन्स, व्यवहार, कार्य और पौधों के साथ उनके संबंधों का खात्मा हो जाता है.

एक जानवर के मरने का असर उसके आसपास मौजूद पर्यावरण पर भी पड़ता है. क्योंकि किसी भी जीव को विकसित होने करोड़ों-अरबों साल लगते हैं. खत्म होने में कुछ साल ही लगते हैं. क्योंकि कई जानवर पौधों के पॉलीनेशन के लिए जिम्मेदार होते हैं. मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने में मदद करते हैं. जंगलों को फर्टिलाइज करने में मदद करते हैं. साथ ही अपने ऊपर और नीचे के जानवरों की आबादी को नियंत्रित करता है. अगर ज्यादा प्रजातियां खत्म होंगी तो ये बड़ा नुकसान होगा.

पिछले पांच सदियों यानी 500 सालों में सैकड़ों दुर्लभ जीव दुनिया से खत्म हो गए. साल 1600 के अंत तक मॉरिशस से न उड़ने वाले डोडो (Dodo) पक्षी खत्म हो गए. ज्यादातर जीवों के खत्म होने के पीछे इंसानों का हाथ है. जैसे अफ्रीका में जेब्रा की एक उप-प्रजाति थी, जिसका नाम था क्वाग्गा (Quagga). 19वीं सदी के अंत तक इंसानों ने इनका इतना शिकार किया ये खत्म हो गए. इसके अलावा प्रदूषण, घर बर्बाद करना या फिर जंगलों को खत्म करना बड़ी वजह है.


मौत की वजह शिकार और लालच
दुनिया का इकलौता राब्स फ्रिंज-लिंब्ड ट्री फ्रॉग टफी (Rabb’s Fringe-Limbed tree frog Toughie) साल 2016 में मर गया. उसे अटलांटा बॉटैनिकल गार्डेन में रखा गया था. लेकिन उसके पास प्रजनन के लिए उसकी प्रजाति का कोई फ्रॉग नहीं था. अब उसकी पीढ़ी धरती पर नहीं है. पैसेंजर पिजन यानी कबूतर मार्था (Martha) की कहानी भी ऐसी ही है. 1914 में इसकी मौत सिनसिनाटी चिड़ियाघर में हुई. 1850 में लाखों पैसेंजर कबूतर थे. लेकिन मार्था अपनी प्रजाति की आखिरी कबूतर थी. अब उसकी प्रजाति खत्म हो चुकी है.

1971 में इक्वाडोर के में खोजा गया पिंटा आइलैंड टॉरटॉयस यानी कछुआ भी खत्म हो चुका है. उसका नाम लोनसम जॉर्ज था. 17वीं सदी में जॉर्ज की प्रजाति के 2 लाख से ज्यादा कछुए मौजूद थे. इन कछुओं का शिकार उनकी मीट के लिए इंसान करते थे. बाद में जब इक्वाडोर में बकरियां लाई गईं, तो कछुओं का खाना कम पड़ने लगा. ये बात 1950 के आसपास की है. दुनिया का आखिरी थाइलेसीन जिसे तस्मानियन टाइगर कहते थे. वो भी 1936 में मर गया. इसका नाम बेंजामिन था.

अब इन प्रजातियों को है बड़ा खतरा
मेक्सिको में मौजूद दुनिया का सबसे छोटा पॉरपॉयज़ (World’s Smallest Porpoise) यानी गंभीर रूप से खतरे में पड़ी प्रजाति वाकिता अब सिर्फ 18 बचे हैं. इनकी संख्या मछलियों को पड़ने वाले जाल में फंसने की वजह से कम हुई. हाथी के बाद दुनिया का सबसे बड़ा जानवर नॉर्दन व्हाइट गैंडा की प्रजाति बहुत जल्द खत्म हो जाएगी. क्योंकि इसका आखिरी नर 2018 में मर गया. अब सिर्फ एक मादा और उसकी बेटी बची है.

किसी भी जीव के विलुप्त होने को लेकर कुछ भी सटीक नहीं कहा जा सकता. ईओ विल्सन बायोडायवर्सिटी फाउंडेशन की सीईओ पॉउला एरलिच कहती हैं कि हमारी इंसानियत के केंद्र में इन जीवों के लिए प्रेम है. हम उनके खत्म होने की कहानी सुनकर दुखी होते हैं. लेकिन हमें इस दुख को नैतिकता और फिर इसके बाद प्रैक्टिकैलिटी में लाना होगा. प्रैक्टिस में लाना होगा. सफेद गैंडा हमारी ही दुनिया का हिस्सा है. यही खाता-पीता है. तो उसके बारे में बुरा कैसे सोचें.

अनगिनत विलुप्त प्रजातियां तो गिन ही नहीं सके
वैज्ञानिकों ने गिनती की है कि साल 1500 से अब तक जानवरों की 881 प्रजातियां खत्म हो गई. इनका तो रिकॉर्ड हैं. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के मुताबिक ये तो गिनी हुई प्रजातियां है. लेकिन कई ऐसी प्रजातियां होंगी जिनके बारे में हमें नहीं पता है. लेकिन संभावना है कि 1473 से ज्यादा जीवों की प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं. जिन उभयचरी जीवों को नमी पसंद है, उनके लिए ज्यादा सूखा या प्रदूषण दोनों ही खतरनाक है.

1993 से साल 2020 तक पूरी दुनिया से जंगलों के खत्म होने की वजह से कई जीवों को पकड़कर रखना पड़ा. उनकी कैप्टिव ब्रीडिंग करानी पड़ी ताकि प्रजाति बची रहे. पक्षियों की ऐसी 32 प्रजातियां हैं. इसके अलावा 16 स्तनधारी जीव हैं. इन्हें इस तरह से बचाया जा रहा है कि ये आगे बचे रहें.

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