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विश्व क्षय रोग दिवस विशेष : टीबी उन्मूलन पर देना होगा विशेष ध्यान

– रमेश सर्राफ धमोरा

टीबी एक संक्रामक बीमारी है। जो संक्रमित लोगों के खांसने, छींकने या थूकने से फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है। लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में फैल सकती है। इस बीमारी का इलाज तो है बशर्ते लोग नियमित रूप से दवा लें। हर वर्ष 24 मार्च को पूरे विश्व में टीबी दिवस मनाया जाता है। इस दिन टीबी यानि तपेदिक रोग के बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है। भारत में बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजार रही है। देश में जब तक गरीबी दूर नहीं होगी तब तक टीबी पर पूर्णतया रोक नहीं लग पायेगी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्वास्थ्य सेवा का ढांचा कमजोर है और स्वास्थ्य कर्मचारियों की भारी कमी है। इसके अलावा बीमारी का शुरुआती दौर में पता लगने में दिक्कत और सही इलाज का मिलना चुनौती बनी हुई है। विश्व में भारत पर टीबी का बोझ सबसे अधिक है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में टीबी उन्मूलन को प्राथमिकता के तौर पर लिया है। इसका उद्देश्य टीबी के नए मामलों में 95 प्रतिशत की कमी करना और टीबी से मृत्यु में 95 प्रतिशत की कमी लाना है। देश में जिन टीबी रोगियों का इलाज चल रहा है उन्हें सरकार द्वारा 500 रुपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं।

टी.बी माइक्रोबैक्टीरियम नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। यह बैक्टीरिया फेफड़ों में उत्पन्न होकर उसमें घाव कर देते हैं। यह कीटाणु फेफड़ों, त्वचा, जोड़ों, मेरूदण्ड, कण्ठ, हड्डियों, अंतडियों आदि पर हमला कर सकते हैं। दुनिया में छह-सात करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं और हर वर्ष 25 से 30 लाख लोगों की इससे मौत हो जाती है। दुनिया में बीमारियों से मौत के 10 शीर्ष कारणों में टीबी को प्रमुख बताया गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक टीबी रोग रिपोर्ट 2020 जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के कारण दुनिया भर में टीबी से होने वाली मौत में वृद्धि हो सकती है। भारत में अप्रैल 2020 में लॉकडाउन के समय क्षय रोग के मामलों में 85 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। विश्व में टीबी के वैश्विक मामलों का 44 प्रतिशत फिलीपींस, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका में है। जबकि भारत, चीन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, नाइजीरिया, बांग्लादेश और रूस में टीबी के दो-तिहाई मामले दर्ज किये गए हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट दर्शाती है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण टीबी के खिलाफ लड़ाई में वर्षों से दर्ज की जा रही प्रगति को एक बड़ा झटका लगा है। एक दशक से ज्यादा समय में पहली बार टीबी से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है। हाल ही में जारी रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में ज्यादा लोगों की मौत हुई है और अपेक्षाकृत कम लोगों में इस बीमारी का पता चल पाया है। रिपोर्ट के अनुसार टीबी के कारण पिछले वर्ष करीब 15 लाख लोगों की मौत हुई थी। इनमें से अधिकतर मौतें मुख्य रूप से उन 30 देशों में हुई हैं जहाँ टीबी एक बड़ी समस्या है।

संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने अनुमान जताया है कि टीबी से पीड़ित लोगों और मृतक संख्या 2022 में और भी अधिक होने की आशंका है। 2019 में नए मरीजों की संख्या 71 लाख थी। लेकिन 2020 में 58 लाख नए मरीजों का ही पता चला। संगठन का अनुमान है कि फिलहाल टीबी के 41 लाख मरीज ऐसे हैं। जिन्हें या तो अपनी बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है या फिर सरकारी एजेंसियों को इसकी सूचना नहीं है।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में रोजाना करीब आठ सौ लोगों की मौत टीबी की वजह से हो जाती है। भारत में टीबी के करीब 10 प्रतिशत मामले बच्चों में हैं। लेकिन इसमें से केवल छह प्रतिशत मामले ही सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में टीबी के केवल 58 प्रतिशत मामले ही दर्ज होते हैं। एक तिहाई से ज्यादा मामले या तो दर्ज ही नहीं होते हैं या उनका इलाज नहीं हो पाता है। इसका बड़ा कारण यह है कि गैर सरकारी सेक्टर के अस्पतालों में टीबी को दर्ज किए जाने का अब तक कोई सिस्टम नहीं बना पाना है। संगठन का ऐसा अनुमान है कि ऐसे तकरीबन दस लाख और टीबी मरीज देश में है जिन्हें पहचाना ही नहीं जा सका है। इसलिए माना यह जाना चाहिए कि हम 2025 तक टीबी को जड़ से मिटा देने की बात कर रहे हैं मगर वह इतना आसान नही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि भारत टीबी से निपटने को लेकर गंभीर नहीं है। अपनी ग्लोबल टीबी रिपोर्ट में उसने हमारे आंकड़ों पर भी सवाल उठाया है। उसके मुताबिक भारत ने टीबी के जितने मामले बताए हैं। वास्तव में मरीज उससे कहीं ज्यादा रहे हैं। भारत के गलत आंकड़ों की वजह से इस रोग का विश्वस्तरीय आकलन सही ढंग से नहीं हो पाया है। पिछले कुछ समय से टीबी के कई नए रूप सामने आ गए हैं। कई मानसिक बीमारियां टीबी का बड़ा कारण बनकर उभरी हैं। इस बीमारी को लेकर हमे नजरिया बदलने की जरूरत है। सरकार को परम्परागत तौर-तरीके से बाहर निकलना होगा। टीबी से निपटने के लिए सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर व्यापक योजना बनानी होगी।

कुछ वर्षों पूर्व तक टीबी की बीमारी को लाइलाज रोग माना जाता था। टीबी के मरीजों को घर से अलग रखा जाता था व उससे अछूत जैसा व्यवहार किया जाता था। मगर अब टीबी की बीमारी का देश में पर्याप्त उपचार व दवा उपलब्ध है। टीबी के रोगियों द्वारा नियमित दवा के सेवन से नो माह में ही टीबी का रोगी पूर्णतः स्वस्थ हो जाता है। सरकार को टीबी रोग की प्रभावी रोकथाम के लिये बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिये और अधिक राशि का प्रावधान करना होगा। टीबी के प्रति लोगों को सचेत करने के लिये देश भर में टीबी जागरूकता कार्यक्रम चलाने होंगे। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या बढ़ाकर ही टीबी पर काबू पाया जा सकता है।

टीबी का संबंध पोषण से जुड़ा रहता है। भूखे पेट रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। इसलिए टीबी के शिकार गरीब तबके के लोग ज्यादा होते हैं। पोषण से मतलब संतुलित भोजन से माना जाना चाहिए। इसलिए यहां केवल टीबी का इलाज मुहैया करा भर देने से टीबी का खात्मा संभव नहीं है। यह तब मुमकिन होगा जबकि देश में लोगों को रोग प्रतिरोधक ताकत बनाए रखने के लिए संतुलित आहार भी मिले।

विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को इस क्षेत्र में एक ठोस अभियान शुरू करना होगा और साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस जानलेवा बीमारी पर काबू पाने की राह में पैसों की कमी आड़े नहीं आए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो इससे मरने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होगी। सरकार ने टीबी को मिटाने के लिये जो प्रतिबद्धता जतायी है उस पर तुरन्त अमल करने की जरूरत है। तभी विश्व क्षय रोग दिवस 2022 की थीम ‘टीबी को खत्म करने के लिए निवेश करें, जीवन बचाए‘ सार्थक हो पायेगी।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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