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World yoga day: भारतीय जीवन शैली, अनुसंधान और स्वास्थ्य

World yoga day: भारत में प्राचीन काल से ही स्वास्थ के प्रति चेतना और जागरूकता रही है। विश्व के अनेक हिस्सों में जब सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, भारत में आयुर्वेद की रचना हो चुकी थी। पातंजलि ने योगशास्त्र (Patanjali’s Yoga) की रचना की थी। धन्वंतरि और चरक का चिकित्सा शास्त्र भी प्रिसिद्ध था।

यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य जागरूकता भारतीय जीनव शैली (indian lifestyle) में समाहित थी। समय के साथ यह जीवन जीवन शैली बदलती रही। कुछ दशक पहले तक मोटा अनाज प्रचलित था। ये सब छूटता गया। अब तो पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव बढ़ रहा है। उनके यहां प्रचलित खाद्य सामग्री को अपनाना फैशन की पहचान बनता जा रहा है। भारत और यूरोप की जलवायु में बहुत अंतर है। लेकिन इस बात पर विचार नहीं किया गया कि हमारे लिए क्या उचित है।



अंधानुकरण अनेक समस्याएं बढा रहा है। कम उम्र में अनेक बीमारियां हो रही है। मानसिक तनाव और एकाकी परिवार व्यवस्था के भी नुकसान हो रहे है। इन सबके बीच अंतरराष्ट्रीय योग दिवस एक महत्वपूर्ण पहल थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में योग दिवस का प्रस्ताव किया। इस पर सबसे कम समय में सर्वाधिक देशों के समर्थन का रिकार्ड बन गया। इक्कीस जून अब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बन गया। विश्व इसकी वैज्ञानिकता को स्वीकार किया गया है। हृदय रोग से भी बड़ी संख्या लोग परेशान हो रहे है। ऐसे में उचित आहार व योग से लेकर स्वास्थ सेवाओं और अनुसंधान की आवश्यकता है।

हृदय रोग के रोगी न सिर्फ बढ़ रहे हैं बल्कि हृदय रोग विकसित देशों के साथ साथ विकासशील देशों में भी फैल रहा है। हृदय रोग के कारण निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के लोगों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ रहा है। पहले लोगों का मानना था कि हृदय रोग केवल सम्पन्न एवं धनी लोगों का रोग है पर आज ग्रामीण क्षेत्र में भी आम आदमी हृदय रोग से पीड़ित है। हमें इलाज के साथ-साथ लोगों को रोग से बचाव के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। जीवन की आपा-धापी और भाग दौड़ से होने वाला मानसिक तनाव भी रोग का कारण है। उन्होंने कहा कि योग मन को शान्ति देता है। विशेषज्ञों एवं चिकित्सकों को नवोन्वेषण और अद्यतन ज्ञान के माध्यम से रोगियों को निदान दिलाने का प्रयास करना चाहिए।

इंटरवेंशन कार्डियोलॉजी के विकास के चलते आज दिल की करीब अस्सी प्रतिशत बीमारियों का इलाज बिना सर्जरी संभव हुआ है। एंजियोप्लास्टी तो हम लोग ढाई दशक से प्रचलन में है। अब वॉल्व रिप्लेसमेंट भी इस तकनीक से होने लगा है। वॉल्व रिप्लेसमेंट अभी मंहगा है भविष्य में इसकी कीमत कम हो सकती है।

दिलीप अग्निहोत्री

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