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चंपारण सत्याग्रह के 106 साल, जिसने दिखाई आजादी की राह

– आनंद प्रकाश

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चंपारण सत्याग्रह का प्रमुख महत्व है। यही वह सत्याग्रह है, जिसने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बना दिया। और यही वो सत्याग्रह है जिसने भारत को आजादी की राह दिखाई। 15 अप्रैल, 1917 को गांधी के मोतिहारी आगमन के बाद बिना किसी धरना, प्रदर्शन व अस्त्र- शस्त्र के प्रयोग के अंग्रेजों के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध शुरू किया गया किसानों का यह सत्याग्रह पूरी तरह सफल रहा। यह उन दिनों की बात है जब प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था। फिरंगियों के अत्याचार और शोषण से पूरे देश के साथ बिहार के चंपारण (बेतिया और मोतिहारी) जिले के किसान त्रस्त थे। उनकी जमीन पर जबरन नील की खेती करवाई जा रही थी। नील की खेती से न सिर्फ किसानों की उपजाऊ कृषि भूमि की उर्वरता नष्ट हो रही थी, अपितु किसान अपने भोजन के लिए आवश्यक खाद्यान भी पैदा नही कर पा रहे थे।तीनकठिया प्रथा यानी एक बीघे जमीन में तीन कठ्ठा नील की खेती के साथ ही मनमाने करों की वसूली की जा रही थी। शोषण, पीड़ा और अत्याचार के विरुद्ध भीतर ही भीतर चिंगारी भी सुलग रही थी।

चंपारण की पीड़ा पर गणेश शंकर विधार्थी के प्रताप अखबार में अग्रलेख छपने लगे । इसी बीच चंपारण के एक साधारण किसान राजकुमार शुक्ल ने पत्रकार पीर मोहम्मद मुनीस, लोमराज सिंह, संता राउत सहित अपने जैसे अन्य कई और किसानों को लामबंद करना शुरू किया। अंग्रेजों को इसकी भनक लगी तो इन लोगों को जेल में डाल दिया गया। लेकिन इन लोगों ने हार नहीं मानी। बाहर आने पर फिर अपने अभियान में शुरू हो गए। इनके पास कोई रास्ता नहीं बचा तो देश के किसी बड़े नेता को चंपारण लाने की ठानी गई। पहले वे बाल गंगाधर तिलक और फिर मदन मोहन मालवीय के पास भी गए। आखिर में राजकुमार शुक्ल इस संबंध में महात्मा गांधी से मिले और उनसे चंपारण में आंदोलन का नेतृत्व करने का आग्रह किया। इसके बाद जो हुआ, वो भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक के रूप में दर्ज है।


गांधी ने चंपारण को सत्य और अहिंसा का प्रयोगशाला बनाया। गांधी अपनी जीवनी ”सत्य के प्रयोग” में लिखते है- वहां जाने से पहले मैं चंपारण का नाम भी नहीं जानता था। नील की खेती होती है, यह सोचा भी नहीं था। राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने उनका पीछा किया और वकील बाबू (उस वक्त बिहार के नामी वकील और जयप्रकाश नारायण के ससुर ब्रजकिशोर प्रसाद) के बारे में कहते कि वे सब हाल बता देंगे। साथ ही चंपारण आने का निमंत्रण देते। यह क्रम चलता रहा और आखिर में मुझे चंपारण जाना ही पड़ा।

गांधी के चंपारण पहुंचते ही अंग्रेज अफसरों के होश उड़ने लगे। उन्होंने महात्मा गांधी को जिला छोड़ने का आदेश दे दिया, लेकिन गांधी किसानों को इंसाफ दिलाने की ठान चुके थे। गांधी ने जिला छोड़ने से मना कर दिया। इसके बाद उन्हें हिरासत में लेकर 18 अप्रैल को कोर्ट में पेश किया गया। गांधी ने मजिस्ट्रेट के सामने बेहद निडर व विनम्र सुर में कहा कि वह चंपारण में किसानों की हालत जानने आए हैं, जब तक हालत से वाकिफ नहीं हो जाते, वे चंपारण नहीं छोड़ेंगे। अगर इस बात की उन्हें सजा भी मिले तो वो भुगतने को तैयार हैं। गांधी की सच्चाई और निडरता देख मजिस्ट्रेट चकरा गया। कुछ समझ नहीं आया तो उसने तारीख आगे बढ़ा दी। …और यह चंपारण सत्याग्रह की पहली जीत थी।

इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत एक ओर विश्व युद्ध और दूसरी ओर रूस में लेनिन बोल्शेविक क्रांति के बीच गांधी जैसे शख्ससियत से बैर नहीं मोल लेना चाह रही थी, अंतत:गांधी के आगे नतमस्तक अंग्रेजों ने मुकदमा वापस ले लिया और जांच में सहयोग करने का आदेश दिया। और यह चंपारण में सत्य की बड़ी जीत थी। अब गांधी चंपारण के गांव-गांव में घूमने लगे और वहां बड़ी संख्या में जुटने वाले किसान अपना बयान दर्ज कराने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन प्रांतीय सरकार ने गांधी को शामिल करते हुए किसानों पर अत्याचार के खिलाफ जांच के लिए एक समिति बना दी। इसकी अनुशंसा पर सालों से चली आ रही तिनकठिया प्रथा कानूनी तौर पर खत्म हुई। साथ ही किसानों से वसूले गए धन का 25 प्रतिशत हिस्सा भी लौटाया गया। चंपारण के इस अहिंसक सत्याग्रह का असर देशव्यापी हुआ। इसके बाद जगह-जगह इसका प्रयोग होने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि हम सब आज आजाद हैं।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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