भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

नईदुनिया को नईदुनिया बनाने वाले अभय छजलानी का इंदौर में निधन

भय छजलानी नहीं रहे। आज सुबह इंदौर में उनका इंतक़ाल हो गया। पुराने नई दुनिया के केसरबाग रोड स्थित घर पे उन्होंने प्राण त्यागे। अभय छजलानी को नईदुनिया के पुराने लोग और इंदौर में उनके हज़ारों चाहने वाले अब्बूजी के नाम से पुकारते थे। अब्बूजी 89 बरस के थे। बेशक उनके वालिद बाबू लाभचंद छजलानी ने 5 जून 1947 को इंदौर में नई दुनिया अखबार शुरु किया था…बाकी नई दुनिया को नईदुनिया बनाने में अब्बूजी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। अभय छजलानी गुजिश्ता तीन बरसों से अल्ज़ाइमर नामक याददाश्त खोने वाली बीमारी से जूझ रहे थे। 2 साल पहले उनकी शरीके हयात पुष्पा छजलानी का इंतक़ाल हुआ था। घर मे उनके एकलौते पुत्र विनय छजलानी हैं। उनकी दो बेटियां इंदौर से बाहर रहती हैं। अब्बूजी के इंतक़ाल की खबर इंदौर में जिसने भी सुनी वो अफसोस में डूब गया। अब्बूजी दरअसल अपने पिता बाबू लाभचंद छजलानी, राहुल बारपुते उर्फ बाबा, नरेंद तिवारी,विष्णु चिंचालकर, बसंती लाल सेठिया जैसे नई दुनिया के फाउंडरों जैसी हस्तियों के बाद की पीढ़ी के थे। अब्बूजी को उनके पिता ने पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेजा था। बाइस तेईस साल की उमर से अब्बूजी ने जब नईदुनिया में बैठना शुरु किया तब ये अखबार हैंड कंपोजि़ंग और ट्रेडिल मशीन पे छपता था। अभय जी को हम नईदुनिया को मॉडर्न रूप देने वाला सहाफी कह सकते हैं। अब्बूजी नई दुनिया को ऑफसेट मशीन पर लाये। नई दुनिया सूबे का पहला अखबार था जो ऑफसेट पर छपा।


इन्हीं के दौर में यानी पचास से सत्तर की दहाई में नई दुनिया से राजेन्द्र माथुर उर्फ रज्जू बाबू, डॉ. रणवीर सक्सेना, शरद जोशी, प्रभु जोशी, प्रो. सरोज कुमार जैसी हस्तियां नईदुनिया अखबार से जुड़ी। नईदुनिया को टेक्निकली साउंड करने और अखबार को प्रभावी और मक़बूल बनाने में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वो इंदौर से जुड़ा एक साप्ताहिक कालम भी लिखते थे। उनके दौर में अखबार की जो संपादकीय टीम थी उसका शहर की नब्ज पे हाथ रहा। अभय छजलानी ने ही नईदुनिया के भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर एडिशन को शुरू किया था। उन्होंने ही अखबार में पत्रकारों की सीधी भर्ती शुरु की थी। वो बाकायदा पत्रकारों की लिखित परीक्षा लेते थे। उन्हीं के समय मशहूर पत्रकार उमेश त्रिवेदी, शाहिद मिजऱ्ा, प्रकाश हिंदुस्तानी, राजेश बादल, शिवनुराग पटेरिया विभूति शर्मा, पंकज पाठक, अजय बोकिल की सहाफत शुरु हुई। राजेन्द्र माथुर के नईदुनिया छोडऩे के बाद उन्होंने नईदुनिया के मूल स्वरूप को जि़ंदा रखा। इंदौर शहर को खेल प्रशाल जैसी सौगात देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। खेलों में उनकी दिलचस्पी के चलते ही उन्हें क्रीड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था। वे टेबल टेनिस एसोसिएशन के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे। उन्हें केंद्र सरकार ने पद्मश्री से नवाजा था। अब्बूजी ने 1983 में होलकर स्टेडियम में लता मंगेशकर का कार्यक्रम करवाया था। उन्हीं की कोशिश से सूबाई सरकार ने लता मंगेशकर अवार्ड शुरु किया था। अब्बूजी ने नईदुनिया का उरूज और ज़वाल दोनो देखे। जब ये अखबार बिखर गया तब उन्होंने साल 2012 में नईदुनिया को जागरण समूह को बेच दिया। नईदुनिया से गहरे जुड़े रीडरों को नईदुनिया बेचने का उनका फैसला पसंद नहीं आया था। उन्हीं के दौर में नईदुनिया ऐसा प्रतिष्ठित अखबार बना जिससे निकले पत्रकार की अलग ही पहचान बनी। नईदुनिया की लाइब्रेरी टाइम्स ग्रुप से भी बेहतर मानी जाती थी। अब्बूजी अपने साथ पत्रकारिता की ईमानदारी और कमिटमेंट को भी ले गए। आज शाम 5 बजे इंदौर के रीजनल सेक्टर मुक्तिधाम पे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। सहाफत की इस अज़ीमुश्शान हस्ती को अग्निबाण परिवार की तरफ से तहेदिल से खिराजे अक़ीदत।

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