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इलाहाबाद हाई कोर्ट का अडॉप्शन को लेकर अहम फैसला

प्रयागराज। एक अंतरराष्ट्रीय बच्चों के चैरिटी द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि भारत की बाल आबादी के 4 प्रतिशत अनाथ हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अनाथ को गोद लेने को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार अगर पत्नी से तलाक नहीं लिया तो बच्चे को गोद लेने के लिए उसकी अनुमति जरूरी होगी। वही अगर किसी विवाहित हिन्दू की पत्नी परित्यक्ता के रूप में बिना तलाक लिए पति से अलग रह रही है तो भी हिन्दू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस कानून के तहत दत्तक बच्चे के लिए पत्नी की पूर्वानुमति जरूरी है। इसके बिना इसे वैध दत्तक ग्रहक नहीं माना जा सकता है।

क्या है पूरा मामला?
निर्णय न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने मऊ के भानु प्रताप सिंह की याचिका खारिज करते हुए दिया है।

मामला एसा है कि याचिकाकर्ता के चाचा राजेंद्र सिंह वन विभाग में नौकरी करते थे, सेवाकाल मेंं उनकी मृत्यु हो गई। याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए नियुक्ति की मांग की थी कि उसके चाचा ने उसे गोद लिया था। उनका अपनी पत्नी फूलमनी से संबंध विच्छेद हो गया परंतु दोनों ने तलाक नहीं लिया था। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए चाचा ने उसे गोद ले लिया।

वन विभाग के प्रत्यावेदन को खारिज करने पर हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता का दत्तक ग्रहण वैध तरीके से नहीं हुआ है क्योंकि हिंदू दत्तक ग्रहण कानून के मुताबिक संतान गोद लेने के लिए पत्नी की सहमति आवश्यक है। यदि पत्नी जीवित नहीं है या किसी सक्षम न्यायालय द्वारा उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित कर दिया गया हो सिवाए उस स्थिति में पत्नी के जीवित रहते उसकी मंजूरी के बिना दत्तक ग्रहण वैधानिक नहीं कहा जा सकता है।’ 

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