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हिंदी दिवस: तेलुगू भाषी ने बना दिया हिंदी का ऐसा संस्‍थान, जहां विदेशी भी आते हैं पढ़ने

नई दिल्ली: कहते हैं भाषा किसी की मोहताज नहीं होती, न देश, न परदेस, न जात-पात, न धर्म और न कोई समुदाय. कौन सी भाषा कब किसकी जुबान पर चढ़ जाए कोई नहीं जानता. कुछ ऐसी ही कहानी है हिन्‍दी का प्रचार प्रसार करने वाली संस्‍था केंद्रीय हिंदी संस्‍थान और उसके संस्‍थापक की. जी हां, केंद्रीय हिंदी संस्‍थान आज देश के अलावा विदेशियों को भी हिंदी भाषा की शिक्षा देता है. इसकी स्‍थापना के पीछे किसी हिंदीभाषी साहित्यकार या हिंदी-सेवक का नहीं, बल्कि एक तेलगू भाषी आंध्रप्रदेश के निवासी डॉ. मोटूरि सत्यनारायण का योगदान रहा.

डॉ. मोटूरि सत्यनारायण का जन्‍म आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के दोंडपाडु गांव में 15 अगस्त, 1902 को हुआ था. आजादी के आंदोलन में उन्‍होंने बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया. महात्मा गांधी ने जब वर्ष 1918 से हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आंदोलन शुरू किया, तो मोटूरि सत्यनारायण भी उसमें प्रमुखता से जुड़े. डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्री जमनालाल बजाज, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ. गोपाल रेड्डी, आंध्र-केसरी श्री टंगहूरि प्रकाशन पंतुलु आदि के सहयोग से उन्होंने गांधीजी का संदेश गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाया. इसके लिए उन्‍हें जेल की सजा भी काटनी पड़ी.

और ऐसे बन गया केंद्रीय हिंदी संस्‍थान
वर्ष 1951 में मोटूरि सत्यनारायण ने उत्तर प्रदेश के आगरा में अखिल भारतीय हिंदी परिषद की स्‍थापना की. यह संस्‍था एक हिंदी शिक्षक-प्रशिक्षण संस्था थी. इसके बाद परिषद ने वर्ष 1960 में अखिल भारतीय हिंदी महाविद्यालय भी शुरू किया. आगे के वर्षों में महाविद्यालय के कार्यों का विस्‍तार होता चला गया. इसे अनेक हिंदी विद्वानों, मनीषियों और शिक्षाविदों का सान्निध्य मिला. बाद में केंद्र सरकार ने इस महाविद्यालय के संचालन का दायित्‍व केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल को दे दिया, जिसका प्रमुख उद्देश्य था अखिल भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण, शैक्षणिक अनुसंधान, बहुआयामी विकास और प्रचार प्रसार करना. बाद में इसी महाविद्यालय का नामकरण केंद्रीय हिंदी संस्थान के रूप में कर दिया गया.


कई भाषाओं के ज्ञाता थे डॉ. मोटूरि
डॉ. मोटूरि सत्यनारायण कई भाषाओं के जानकार थे. वह अपनी मातृभाषा तेलुगू के साथ-साथ तमिल, अंग्रेजी, उर्दू, हिंदी और मराठी में भी दक्ष थे. वे सभी भारतीय भाषाओं के पक्षधर थे. उन्‍होंने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रधानमंत्री का पद भी संभाला. साथ ही वह तेलुगू भाषा समिति के प्रधान सचिव भी रहे. इसके साथ ही वह मद्रास विधान परिषद तथा राज्यसभा के सदस्य भी रहे. बाद में उनके कार्यों के लिए पद्मभूषण से भी सम्‍मानित किया गया.

2022 में 16 देशों के 82 स्टूडेंट्स
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस साल केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी सीखने के लिए 16 देशों के 82 स्टूडेंट्स का चयन किया गया. इसमें सबसे ज्यादा श्रीलंका के छात्र हैं. चयन समिति ने चीन से आठ, कोलंबिया से तीन, कजाकिस्तान से एक, मंगोलिया से तीन, नाइजीरिया से चार, रोमानिया से तीन, रूस से तीन, दक्षिण कोरिया से पांच, स्लोवाक से एक, श्रीलंका से 21, स्वीडन से एक, तजाकिस्तान से 13, थाईलैंड से पांच, त्रिनिदाद एवं टौबेगो से एक और उज्बेकिस्तान से सात अभ्यर्थियों का चयन किया है.

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