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असम में मदरसा और संस्कृत की सरकारी शिक्षा होगी बंद, विधानसभा में बिल पेश

गुवाहाटी । असम विधानसभा का तीन दिवसीय सत्र सोमवार से आरंभ हुआ। पहले दिन राज्य के शिक्षा, वित्त, स्वास्थ्य आदि मामलों के मंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने सदन में असम रिपिल-2020 बिल को पेश किया। जिसको लेकर ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और कांग्रेस ने इसका जमकर विरोध किया। ज्ञात हो कि भाजपानीत गठबंधन ने इस बिल के जरिए राज्य में सरकारी मदद से जारी मदरसा और संस्कृत टोल (संस्कृत विद्यालय) को बंद करने का कदम उठाया है।

बिल को सदन में पेश करते हुए शिक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार का काम धार्मिक शिक्षा देना नहीं है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, हमारे देश के हिंदू, क्रिश्चियन एवं अन्य धर्मों के विधायकों को आज बधाई देना चाहिए, क्योंकि आज तक किसी ने अपने धर्म की शिक्षा को सरकारी फंड के जरिए मुहैया कराने की मांग नहीं उठायी। उन्होंने कहा कि मदरसा और संस्कृत विद्यालयों के जो भी शिक्षक हैं, उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। उनकी नौकरी पूर्व की तरह बहाल रहेगी। उन्होंने कहा कि इन दोनों तरह के विद्यालयों को सामान्य विद्यालय के रूप में तब्दील किया जाएगा।

ज्ञात हो कि एआईयूडीएफ के विधायकों ने बिल के पेश होने का विरोध करते हुए जमकर हंगामा किया। उन्होंने अध्यक्ष से बिल को सलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग की। लेकिन, अध्यक्ष ने जब उनकी बात नहीं मानी तो एआईयूडीएफ के विधायक सदन से वॉकआउट कर गए। इस पर संसदीय कार्यमंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि आज तक सदन में ऐसा नहीं हुआ जब सदन में दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि दी जा रही हो और विपक्ष सदन से वॉकआउट किया हो। यह बेहद निंदनीय है।

असम रिपिल बिल को लेकर विपक्ष द्वारा उठाये जा रहे बिंदुओं पर शिक्षा मंत्री ने कहा कि जब बिल पर चर्चा होगी तो वे इसका विस्तार से उत्तर देंगे।

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