ब्‍लॉगर

मानवाधिकारों से वंचित बांग्लादेशी हिन्दू

– डॉ. समन्वय नंद

पिछले दिनों सोशल मीडिया में लेटर्स फ्रॉम बांग्लादेश नामक एक ट्विटर हैंडल से एक वीडियो साझा किया गया था जो काफी वायरल हो रहा है। इस वीडियो में एक ब्राह्मण पंडाल में मां दुर्गा की पूजा करता हुआ दिख रहा है। लेकिन सामने जो मां दुर्गा की मूर्ति है उसे तोड़ दिया गया है। वही तोड़ दिये गये प्रतिमूर्ति के सामने बैठकर ब्राह्मण दुर्गा पूजा की आवश्यक रीति नीति को संपन्न कर रहा है। इस वीडियो के साथ जो बातें लिखी गई है, यदि उसका हिदी में अनुवाद किया जाए तो कुछ इस तरह का होगा-

“मैं बांग्लादेश का अल्पसंख्यक हिन्दू हूं। दुर्गा पूजा मेरा सबसे बड़ा त्योहार है। मैं हर साल दुर्गा पूजा की प्रतीक्षा में रहता हूं, जब मैं जगद्जननी मां दुर्गा की उपासना करूंगा। लेकिन मेरी मूर्ति को इस्लामी गुंडों ने तोड़ दिया है। इसके बावजूद मैं मौन हूं। मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैं इसका विरोध नहीं कर सकता। इस मामले में यदि मैं कुछ बोलता हूं तो वे मेरे परिवार पर हमला कर देंगे। मेरे घर को जला देंगे। हमारी संख्या यहां काफी कम है इसलिए मुझे इसे सहना होगा। यही कारण है कि मैं तोड़ी गयी मूर्ति के सामने ही मेरी पूजा संपन्न कर दी है।”

वास्तव में सोशल मीडिया में प्रसारित यह पोस्ट व वीडियो बांग्लादेश में हिन्दुओं की स्थिति को दर्शाती है। एक इस्लामिक देश में हिन्दुओं की स्थिति को समझने के लिए यह पोस्ट व वीडियो पर्याप्त है। बांग्लादेश में केवल पूजा पंडालों को ही नहीं तोड़ा गया, मंदिरों पर भी हमला किया गया है। हिन्दुओं के घर फूंक दिये गए। नोआखाली से लेकर कोक्स बाजार, कोमिला, फेणी आदि अनेक स्थानों से हिन्दुओं पर सुनियोजित हमले किये गये हैं। अनेक हिन्दुओं की हत्या कर दी गई है। हिदु महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया है। हिंसा का सिलसिला लगातार कई दिनों तक बिना रुके चलता रहा। दशहरे के बाद भी हिंसा जारी रहने की सूचनाएं मिल रही हैं।

दशहरे के दिन इस्लामी कट्टरपंथियों ने नोआखाली के प्रसिद्ध इस्कान मंदिर पर हमला किया। इस्कान मंदिर से जुडे लोगों का कहना है कि शुक्रवार की नमाज के बाद लोगों की भीड़ ने अचानक आकर हमला बोल दिया। इस्कान के साधु-भक्तों ने इसका प्रतिरोध किया। मंदिर की मूर्तियां तोड़ी गई, धर्मग्रंथ जला दिया गया। प्रभुपाद की मूर्ति तक को नहीं छोड़ा गया। एक भक्त पार्थ दास का शव अगले दिन पास के तालाब से मिला। काफी नृशंस तरीके से उनकी हत्या की गई थी। उनके शरीर के कई हिस्से काट दिये गये थे। जिस तरह से हिंसा हुई मानो नोआखाली में 1946 की हिंसा को दोहराया जा रहा हो। दशहरे के बाद भी रंगपुर जिले से दो गांवों में हिन्दुओं के घरों व मंदिरों में आग लगाने की सूचना मिल रही है। हिन्दुओं की संपत्ति के साथ गाय-बैलों को भी जला दिया गया है।

बांग्लादेश की राजधानी ढाका से प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्र डेली स्टार ने अपने अखबार में चार साल के बच्चे आदित्य शाह की खबर प्रकाशित की है। अखबार का संवाददाता उसके घर में जाकर बातचीत करने के बाद खबर प्रकाशित की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चार साल का मासूम आदित्य अपनी मां से बार-बार पूछ रहा है- मां, पिताजी कब आयेंगे। आदित्य के पिताजी जतन शाह दशहरे के दिन मंदिर में गये थे। जिहादियों ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला था। आदित्य की मां लकी कहती हैं कि ‘मुझे में इतना साहस नहीं है कि मैं बेटे को बता सकूं कि तुम्हारे पिता अब कभी नहीं आयेंगे।’ जतन ही परिवार के एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति थे। उनकी हत्या के बाद आगे कैसे उनका परिवार चलेगा, इसे लेकर परिवार को चिंता सता रही है।

ये केवल एक आदित्य की बात नहीं है या फिर एक लकी की बात नहीं है। हाल ही में बांग्लादेश में हुई हिन्दू विरोधी हिंसा में ऐसे अनेक आदित्य अनाथ हो गये और ऐसे अनेक लकी हैं जो विधवा हो गई हैं। लेकिन उन्हें न्याय देने या फिर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमला कई नई बात नहीं है। बांग्लादेश को हिन्दू विहीन करने के लिए इस्लामी शक्तियां इस तरह के काम लगातार करती आ रही हैं। इसके कारण बांग्लादेश में हिन्दू आबादी केवल आठ प्रतिशत ही बची है। इस मामले को लेकर इस्कान ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिख कर अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की टीम भेजने का अनुरोध किया था।

बांग्लादेश की मेनस्ट्रीम मीडिया में इन हिन्दू विरोधी हिंसा की सही रिपोर्टिंग नहीं हो रही थी । ऐसे में बांग्लादेश हिन्दू युनिटी काउंसिल व इस्कान बांग्लादेश अपने अपने ट्वीटर हैंडल से हिन्दू विरोधी हिंसा से जुड़े फोटो, वीडियो व अन्य सूचनाएं जारी कर रहे थे। इससे शेष विश्व में जानकारी मिल पा रही थी। लेकिन ट्विटर ने इन दोनों संस्थानों के ट्विटर अकाउंट को सस्पेंड कर दिया। बांग्लादेश का सच पूरे विश्व के सामने लाने वाले इन हैंडलों को बंद कर दिया गया।

ट्विटर हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बातें करता है लेकिन वास्तव में उसकी सच्चाई क्या है, उसने इस कदम से स्पष्ट कर दिया। इससे एक बात और प्रमाणित हो गई कि हिन्दुओं का मानवाधिकार नहीं होता। हिन्दुओं पर अत्याचार हो, उसे रोकने के लिए कार्रवाई नहीं होगी। यदि कोई वास्तविकता को सामने लाने का प्रयास करेगा तो उसका ट्विटर हैंडल को बंद कर उस चुप करा दिया जाएगा।

फिलिस्तीन में सामान्य तौर पर कुछ होने पर तख्तियां लेकर सड़कों पर आ जाने वाले लोग भी बांग्लादेश के हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार पर मौन हैं। बांग्ला अस्मिता की बात करने वाली ममता भी चुप हैं। अपने आप को मानवाधिकारों के ठेकेदार बताने वाले भी लगता है गहरी निद्रा में हैं। बांग्लादेशी हिन्दुओं की चीखें राष्ट्र संघ के मानवाधिकार संगठन को भी सुनाई नहीं दे रही है। बांग्लादेशी हिन्दुओं की शायद यही नियति है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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