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MP में विधानसभा चुनाव के पहले पॉलिटिकल पार्टी वर्गों को टटोलने में जुटी, वादे-घोषणाएं


भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी भले ही सवा एक साल का समय है लेकिन पॉलिटिकल पार्टीज वर्गों के आधार पर वोट बैंक को टटोलने में लगी हैं। एक सर्वे के आधार पर यह माना जाता है कि आज भी मध्य प्रदेश में चुनावी राजनीति में जातीय समीकरण को महत्व दिया जाता है। आरक्षित वर्गों के बाद भाजपा ने परशुराम जयंती के बहाने मंगलवार को ब्राह्मण वोट पर निशाना साधा है और ईद की वजह इस आयोजन से राजनीति के ध्रुवीकरण का प्रदर्शन भी दिखाई दिाय।

2013 में भाजपा को सवर्णों के 54 वोट की वजह से तीसरी बार सरकार बनाने का मौका मिला था। विधानसभा चुनाव 2023 के लिए राजनेताओं ने अभी से कमर कसना शुरू कर दिया है। वोटर को प्रभावित करने के लिए वादे-घोषणाएं की जा रही हैं। भाजपा ने जहां छह महीने पहले से इसकी नींव डालना शुरू कर दिया था तो कांग्रेस सरकार गिरने के बाद संभलते हुए तैयारियों में जुट चुकी है। भाजपा ने परशुराम जयंती के बहाने मंगलवार को ब्राह्मण वोट पर अपना टारगेट रखा लेकिन अपने हिंदू कार्ड को वह भूली नहीं।

परशुराम जयंती पर आयोजन के मुख्य सूत्रधार पूर्व महापौर आलोक शर्मा ने सभी धर्मों के प्रतिनिधियों को आयोजन में बुलाकर ब्राह्मण समुदाय के इस कार्यक्रम तो हिंदू रंग देने का भरपूर प्रयास किया। मंच से भी कई बार वे इस बात को दोहराते रहे और जूनापीठाधीश्वर महांडलेश्वर अवधेशानंद गिरी जी ने भी उनकी बात को यह कहकर आगे बढ़ा दिया कि सभी जातियां महान हैं, पर सबसे पहले हम हिंदू हैं।


भाजपा ने ओबीसी, एससी-एसटी पर काम किया
भाजपा ने अब तक ओबीसी, एससी, एसटी वर्गों के लिए काम किया है जिसमें ओबीसी के आरक्षण को लेकर कांग्रेस को दोषी ठहरा चुकी है। इस वर्ग के लिए उसने पंचायत चुनाव तक को निरस्त कर दिया है क्योंकि परिस्थितियां ऐसी बन रही थीं कि इस वर्ग के आरक्षण के बिना चुनाव हो रहे थे। एसटी वर्ग के लिए पिछले साल से ही भाजपा कई तरह की घोषणाएं करने में लगी है जिसमें पेसा एक्ट से लेकर वन भूमि अधिकार, राशन व तेंदूपत्ता मजदूरी वृद्धि आदि शामिल हैं। इसी तरह पार्टी ने हाल ही में एससी वर्ग का बड़ा आयोजन किया था। गौरतलब है कि भाजपा को 2013 में 54 फीसदी सवर्ण वोट मिले थे और यह वोट उसे अपना होने का भरोसा है इसलिए वह एसटी और एससी वोट पर विशेष ध्यान दे रही है।

कांग्रेस कर रही विशेष तैयारी
कांग्रेस की विधानसभा चुनाव की तैयारियों का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि उसने ओबीसी वर्ग के आरक्षण के मुद्दे की लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा है। वह 27 फीसदी आरक्षण के अपने फैसले को भाजपा सरकार द्वारा अमलीजामा नहीं देने के आरोप लगा रही है। एससी और एसटी वर्ग के सहारे ही कांग्रेस ने 2018 में सरकार बनाई थी जिसके चलते अब वह इन वर्गों के वोटों को किसी भी कीमत पर अपने दूर नहीं होने देना चाहती है। कांग्रेस के पास सवर्ण वोट भाजपा की तुलना में करीब पचास फीसदी है जिससे उसका टारगेट एससी-एसटी, मुस्लिम वर्ग पर ज्यादा रहता है।

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