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ममता के INDIA गठबंधन से किनारा करने के पीछे बड़ा कारण, कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक हड़पने की चिंता

कोलकाता (Kolkata) । आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत एनडीए को टक्कर देने के लिए बनाए गए विपक्षी गठबंधन INDIA में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही है। खासतौर से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamata Banerjee) के सख्त तेवरों को देखते हुए इंडिया गठबंधन की एकता पर ही सवाल उठने लगे हैं। बंगाल में सीट-बंटवारे पर गतिरोध के बाद कांग्रेस टीएमसी के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रही है। इसके बावजूद ममता बनर्जी कांग्रेस को सीट देने को तैयार नहीं हैं। ममता बनर्जी पहले ही अपनी पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने के इरादे की घोषणा कर चुकी हैं।

मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़
कांग्रेस पर लगातार दीदी के हमले बंगाल में टीएमसी के चुनावी समीकरणों की ओर इशारा कर रहे हैं। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन कोलकाता के मुस्लिम बहुल पार्क सर्कस इलाके में ममता ने ‘सर्ब धर्म’ रैली निकाली थी और कांग्रेस पर कटाक्ष किया। दरअसल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी राज्य में अपने महत्वपूर्ण मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए सभी प्रयास कर रही हैं। वे इसके लिए विपक्षी इंडिया गठबंधन को दाव पर लगाने के लिए भी तैयार दिख रही हैं।


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र से राज्य के बकाया भुगतान की मांग को लेकर कोलकाता में एक धरने के दौरान ममता बनर्जी ने दोहराया कि उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की इच्छुक थी, लेकिन उसने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। ममता बनर्जी ने तीखा हमला करते हुए शुक्रवार को कांग्रेस को हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा से मुकाबला करने की चुनौती दी और कहा कि उन्हें संदेह है कि क्या सबसे पुरानी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में “40 सीट भी” हासिल कर पाएगी।

‘क्या वे 40 सीट भी जीत पाएंगे’
बनर्जी ने कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ की भी आलोचना की, जो राज्य के छह जिलों से होकर गुजरी। उन्होंने इसकी तुलना राज्य में आए “प्रवासी पक्षियों” के लिए “महज फोटो खींचने के अवसर” से की। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने कहा, “मैंने प्रस्ताव दिया कि कांग्रेस 300 सीट पर चुनाव लड़े (देश भर में जहां भाजपा मुख्य विपक्ष है), लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान देने से इनकार कर दिया। अब, वे मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए राज्य में आए हैं। मुझे संदेह है कि यदि वे 300 सीट पर चुनाव लड़ते हैं, तो क्या वे 40 सीट भी जीत पाएंगे।”

कांग्रेस के खिलाफ ममता की बयानबाजी इस ओर इशारा कर रही है कि उनकी पार्टी अपने अल्पसंख्यक वोटों का विभाजन नहीं चाहती है। 2011 से बंगाल की सत्ता पर काबिज ममता दीदी की पार्टी की अल्पसंख्यक वोटों पर मजबूत पकड़ है। दीदी को डर है कि कांग्रेस इसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। 22 जनवरी की रैली में ममता ने खुलेतौर पर मुस्लिम मतदाताओं से कहा था कि टीएमसी के अलावा किसी अन्य पार्टी का समर्थन करके “अपना वोट बर्बाद” न करें।

दीदी ने अल्पसंख्यक वोटों को और मजबूत किया
2011 में सत्ता में आने के बाद, टीएमसी सरकार ने इमामों के लिए भत्ते और मुस्लिम छात्रों के लिए स्कॉलरशिप की घोषणा की है। इसके अलावा, कल्याण बोर्ड के निर्माण और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मदरसों के लिए 50 करोड़ रुपये के अनुदान की घोषणा करके अल्पसंख्यक वोटों को और मजबूत किया है। ममता ने सीएए-एनआरसी के खिलाफ दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच जारी आंदोलन को भी अपना समर्थन दिया था।

अपनी इन्हीं नीतियों पर सवार होकर दीदी की पार्टी बंगाल में चुनाव दर चुनाव जीतती आ रही है। 2018 और 2023 के पंचायत चुनावों और 2021 के विधानसभा चुनावों में, अल्पसंख्यक मतदाताओं ने टीएमसी का खुलकर समर्थन किया। 2021 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन बनाने के बावजूद कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों 294 विधानसभा सीटों में से एक भी जीतने में विफल रहे। इससे साफ हो गया कि मुस्लिम मतदाता दीदी का कट्टर समर्थक है।

दीदी की पहली चुनावी हार
हालांकि, 2023 में, टीएमसी ने 2021 के चुनावों के बाद राज्य में अपनी पहली चुनावी हार देखी। वाम समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार बायरन बिस्वास ने फरवरी 2023 में सागरदिघी विधानसभा उपचुनाव जीता। यह उपचुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मुर्शिदाबाद जिले में हुआ था, जहां राज्य में सबसे अधिक 66.28% मुस्लिम आबादी है। नतीजे को टीएमसी के घटते अल्पसंख्यक वोट बैंक के संकेत के रूप में देखा गया। हार के बाद ममता ने पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के नेतृत्व में बदलाव का आदेश दिया था। हालांकि मई 2023 में बिस्वास भी टीएमसी में चले गए।

अब ममता के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से त्रिकोणीय मुकाबले का मंच तैयार हो गया है। अल्पसंख्यक वोट टीएमसी और वाम-कांग्रेस गठबंधन के बीच विभाजित हो सकते हैं। भाजपा राज्य में प्रमुख विपक्ष है। भाजपा की हिंदुत्व राजनीति का मुकाबला करने के लिए टीएमसी को मुस्लिम समुदाय के समर्थन की सख्त जरूरत होगी। मुस्लिम आबादी राज्य की आबादी का 27% है। अल्पसंख्यक वोट टीएमसी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं क्योंकि भाजपा हिंदुत्व और राम मंदिर पर सवार होकर अपने हिंदू वोट बैंक को और मजबूत करना चाहती है। बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 7 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और अन्य 6 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक वोट निर्णायक कारक हो सकते हैं। 2019 के चुनावों में, टीएमसी ने 7 मुस्लिम बहुल सीटों में से 3 और बड़ी मुस्लिम आबादी वाली सभी 6 सीटों पर जीत हासिल की थी।

इन जिलों में कांग्रेस की यात्रा से भड़कीं दीदी
सूत्रों के अनुसार, उत्तरी बंगाल के छह जिलों, विशेष रूप से उत्तर दिनाजपुर, मालदा और मुर्शिदाबाद, जो महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक आबादी और पारंपरिक रूप से कांग्रेस के समर्थन के लिए जाने जाते हैं। इन जिलों से कांग्रेस की यात्रा ने बनर्जी के रुख को जन्म दिया होगा। बनर्जी ने कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने की चुनौती दी। उन्होंने कहा, “अगर आपमें हिम्मत है तो यूपी, बनारस, राजस्थान, मध्य प्रदेश में भाजपा को हराएं। जब मणिपुर जल रहा था तो आप (कांग्रेस) कहां थे? हमने एक टीम भेजी थी।”

कांग्रेस की यात्रा और “प्रवासी पक्षियों” के बीच तुलना करते हुए बनर्जी ने इस कार्यक्रम को “फोटो खिंचवाने के लिए महज तमाशा” करार दिया और कहा कि इसमें वास्तविक इरादे की कमी है। बंगाल से गुजरने वाली यात्रा के बारे में बनर्जी ने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें इसके बारे में सूचित नहीं किया। उन्होंने कहा, “इंडिया गठबंधन के सहयोगी होने के बावजूद, उन्होंने मुझे सूचित नहीं किया। मुझे प्रशासनिक स्रोतों के माध्यम से पता चला। उन्होंने डेरेक ओ’ब्रायन को फोन करके अनुरोध किया था कि रैली को अनुमति दी जाए। फिर बंगाल क्यों आए?”

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