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मौत के तूफान के बीच कालाबाजारी का धंधा

डाॅ. रमेश ठाकुर
नवनीत कालरा संकटकाल में कालाबाजारी का बड़ा नाम है। कहने को तो यह दिल्ली का प्रसिद्व व्यवसायी है, पर इसके रूप दो हैं और दोनों एक-दूसरे से जुदा। व्यवसाय के अलावा दूसरा धंधा कालाबाजारी का है जिसे कोरोना संकट में उसने और विस्तार दे दिया है। राजधानी में बीते कुछ दिनों से ऑक्सीजन की भारी किल्लत है जिसका वह जमकर फायदा उठा रहा है। मोटे दामों पर ऑक्सीजन को ब्लैक करता था। लेकिन अब पुलिस ने उसके काले साम्राज्य को फिलहाल उजाड़ दिया है। दिल्ली के पाॅश इलाके खान मार्केट में इसका ‘खान चाचा’ नाम से रेस्टोरेंट है जहां से पुलिस ने तकरीबन दो करोड़ के कंसंट्रेटर बरामद किए हैं। जब छापेमारी हो रही थी तो कालरा पिछले दरवाजे से फरार हो गया। फरार खुद हुआ या करवाया गया फिलहाल इसकी चर्चा जोरों पर है। मौत के इस खेल में वह इकलौता नहीं था, कई और भी सहयोगी हैं। अगर उनका भी नाम उजागर हो जाए जो दिल्ली की सियासत में भूचाल आ जाएगा।
मौत का सौदागर कालरा 15-20 हजार का ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 50 से 70 हजार में बेचता था। एकदिन पहले ही पुलिस ने दिल्ली के शास्त्रीनगर में भी ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की कालाबाजारी करने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया था। वहां भी तकरीबन करोड़ों के कंसंट्रेटर बरामद हुए थे। लेकिन कालरा का मामला कुछ अलग है। पुलिस ने कालरा के रेस्टोरेंट से भारी मात्रा में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बरामद किए हैं। कालरा के काले कारनामों की जब परतें खुली तो पता चला उसे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। वह हमेशा पेज थ्री पार्टियों में दिखता है। दिल्ली के कई बड़े राजनेताओं से उसके मधुर संबंध हैं, सबके यहां उठना-बैठना है। बिना समय लिए धड़ल्ले से किसी मंत्री या नेता के घर या कार्यालय में पहुंच जाता है। भला ऐसे लोगों का कोई क्या बिगाड़ लेगा?
सवाल सीधा है, कालरा जैसे लोग आपदा के वक्त अवसर तलाशने के लिए भूखे जानवर की तरह मैदान में उतरते हैं जिनके पीछे गुप्त रूप से सियासी संरक्षण शामिल होता है। ऐसे लोग बेधड़क अपने मंसूबों को अंजाम देते हैं। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि आपदाएं इंसानों को पुण्य कमाने का मौका देती हैं। मुसीबत के वक्त एक-दूसरे के काम आना, संकट में भागीदारी निभाकर दुखों को बांटना। संकट में कमाया यह एक ऐसा पुण्य होता है जिसका लेखा-जोखा सीधे भगवान के दरबार में दर्ज होता है। लेकिन शायद अब ऐसे मौकों से इंसानों का कोई लेना देना नहीं। पुण्य कमाने की जगह लोग आपदा में अवसर खोजते हैं।
वक्त ऐसा है जब जिंदगी सस्ती और मौत महंगी हो गई है। ऐसा ही कुछ कोरोना संकट में चारों ओर दिखाई भी पड़ता है। अंतिम संस्कार के लिए कतारों में लगी शवों की लाइनों को कम करने के लिए भी लोग दलाली खा रहे हैं। दिल्ली के तकरीबन श्मशान घाटों में मृतकों के परिजनों को टोकन देकर घंटों इंतजार कराया जा रहा है। ऐसे में शव तस्कर मृतकों के परिजनों से जल्दी संस्कार कराने के नाम पर अवैध वसूली कर रहे हैं। इसके अलावा अस्पतालों में कोरोना मरीजों को भर्ती कराने की जो जद्दोजहद है वह भी किसी से छिपी नहीं है। वहां भी दलाल सक्रिय हैं, अस्पतालों में बेड दिलवाने के नाम पर मोटा पैसा वसूल रहे हैं। इस खेल में अस्पताल और दलाल दोनों की संयुक्त भूमिका है। दलाल एक मरीज को भर्ती कराने के लिए 25 हजार से लेकर एक लाख तक ले रहे हैं। अपने मरीजों की जान बचाने के लिए परिजन भी मुंहमांगी कीमत दलालों को दे रहे हैं। इस क्रूर काल के भुक्तभेगी हम सभी हैं।
दरअसल, मरीजों की चुनौतियां यहीं खत्म नहीं होती, आगे और बढ़ती हैं। भर्ती के बाद ऑक्सीजन को भी अरेंज स्वयं मरीजों को ही करना होता है। उसकी भरपाई के लिए भी दलाल मौजूद होते हैं। ऑक्सीजन दिलवाने के लिए भी दलालों की फौज खड़ी होती है, बस आपको पैसा बरसाना होता है। ऑक्सीजन के लिए भी बोली लगती है। ऑक्सीजन के लिए दलाल मरीजों को खुलेआम ब्लैकमेल करते हैं और उनसे लाखों रुपए लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर चंद मिनटों में मुहैया करा देते हैं। इसके बाद भूमिका शुरू होती है डॉक्टरों की, जो डरावनी ही नहीं, बल्कि अस्वीकार्य भी होती है। मरीजों के लिए रेमडेसिवीर इंजेक्शन की डिमांड करते हैं जिसे कुछ ही घंटों में उपलब्ध कराने की शर्त रखते हैं, वरना कुछ भी हो सकता है। इंजेक्शन के लिए परिजन भागते हैं तब भी उनका टकराव दलालों से ही होता है। चिकित्सक छह इंजेक्शनों की मांग करते हैं। दलाल इंजेक्शनों के लिए एक से लेकर पांच लाख तक वसूल रहे हैं और ये भी जरूरी नहीं कि वह इंजेक्शन असली हैं या नकली? क्योंकि इस समय नकली रेमडेसिवीर इंजेक्शन बेचने वाले भी खूब सक्रिय हैं। रोजाना कोई न कोई पुलिस प्रशासन के हत्थे चढ़ रहा है।
अभूतपूर्व आपदा के बीच ऐसे दलालों को शायद ही भगवान माफ करे। अस्पतालों के बाहर दलालों का तांडव है। दलालों की कालाबाजारी रोकने के लिए सिस्टम पूरी तरह से फेल है। ये तस्वीरें दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी देख रहे हैं। खैर, बुरा वक्त एक न एक दिन बीतेगा, लेकिन इस बुरे समय का जवाब हुकूमत के रखवालों को आज नहीं तो कल जरूर देना पड़ेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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