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सीबीआई ने 209 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में 18 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की


नई दिल्ली। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने बुधवार को कहा कि उसने 209 करोड़ रुपये (Rs 209 crore) के बैंक धोखाधड़ी मामले (Bank fraud case) में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) सहित 18 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की (Files chargesheet) है।


सीबीआई के एक प्रवक्ता ने यहां बताया कि एजेंसी ने 18 लोगों, सिंडिकेट बैंक के तत्कालीन एजीएम आदर्श मनचंदा, सिंडिकेट बैंक के तत्कालीन प्रबंधक महेश गुप्ता, चार्टर्ड अकाउंटेंट भारत, निजी व्यक्ति पवित्रा कोठारी, अनूप बरटारिया और अन्य कई लोगों के खिलाफ चार्जशीट (आरोप पत्र) दायर की है।
अधिकारी ने कहा कि एजेंसी ने राजस्थान के जयपुर की एक अदालत के समक्ष आरोप पत्र दायर किया। सीबीआई ने 23 मार्च, 2017 को सिंडिकेट बैंक की शिकायत पर चार्टर्ड अकाउंटेंट सहित छह निजी व्यक्तियों और कई अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
शिकायत में यह आरोप लगाया गया था कि सिंडिकेट बैंक की तीन शाखाओं द्वारा 118 ऋण खातों को स्वीकृत और वितरित किया गया था। उन्होंने कहा कि 118 ऋण खाते आवास ऋण खाते, डब्ल्यूटीपी की वाणिज्यिक संपत्ति की खरीद के लिए सावधि ऋण खाते, ओडी सीमा और विदेशी लेटर ऑफ क्रेडिट्स से संबंधित थे।

उन्होंने आगे कहा कि उदयपुर स्थित चार्टर्ड एकाउंटेंट भारत ने अपने कर्मचारियों और अन्य लोगों के साथ मिलकर जयपुर में बैंक की दो शाखाओं और उदयपुर में एक शाखा के अधिकारियों के साथ साजिश रची और विभिन्न क्रेडिट सुविधाओं को मंजूरी दी। यह भी आरोप लगाया गया था कि कई उधारकर्ता सीए और अन्य के स्वामित्व वाली फर्मों में सामान्य कर्मचारी पाए गए और वे उक्त उच्च मूल्य के ऋण के लिए पात्र नहीं थे।

अधिकारी ने यह भी बताया कि जांच के दौरान, यह पाया गया कि उक्त साजिश को आगे बढ़ाने में सीए, एक निजी व्यक्ति और अन्य ने जयपुर में सिंडिकेट बैंक के शाखा अधिकारियों से कथित तौर पर जयपुर में वल्र्ड ट्रेड पार्क लिमिटेड में स्थित व्यावसायिक संपत्तियों या इकाइयों की खरीद के लिए सावधि ऋण प्राप्त करने के लिए संपर्क किया। जाली आयकर रिटर्न के आधार पर उधारकतार्ओं की बढ़ी हुई आय दिखाई गई थी, जबकि जाली कोटेशन, चालान, खरीद ऑर्डर और कार्य के लिए ऑर्डर के अलावा जाली सीए प्रमाण पत्र का भी पता चला है।
यह भी आरोप लगाया गया है कि सिंडिकेट बैंक के तत्कालीन प्रबंधक ने सिफारिश की थी और बैंक के तत्कालीन एजीएम या शाखा प्रमुख ने बैंक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करके और उचित परिश्रम किए बिना विभिन्न क्रेडिट सुविधाओं को मंजूरी दी थी।

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