ब्‍लॉगर

श्रीलंका पर चीनी घेरा

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

चीन के विदेश मंत्री वांग यी पिछले दिनों कुछ अफ्रीकी देशों के साथ-साथ श्रीलंका भी गए। वहां उन्होंने भारत का नाम तो नहीं लिया लेकिन जो बयान दिया, उसमें उन्होंने साफ़-साफ़ कहा कि चीन-श्रीलंका संबंधों में किसी तीसरे देश को टांग नहीं अड़ानी चाहिए। यही बात उनके राजदूतावास ने उनके कोलंबो पहुंचने के पहले अपने एक बयान में कही थी।

श्रीलंका किसी भी राष्ट्र के साथ अपने संबंध अच्छे बनाए, इसमें भारत को क्या आपत्ति हो सकती है लेकिन चीन की नीति यह रही है कि वह भारत के आस-पड़ोस में जितने भी राष्ट्र हैं, उनमें भारत-विरोध भड़काए। उसकी हरचंद कोशिश होती है कि वह भारत का कूटनीतिक घेराव कर ले। उसने पाकिस्तान के साथ इसीलिए ‘इस्पाती दोस्ती’ की घोषणा कर दी है।

भारत के अन्य पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान के रास्ते पर तो नहीं चल रहे हैं लेकिन उनकी भी कोशिश रहती है कि भारत-चीन प्रतिस्पर्धा को वे अपने लिए जितना दुह सकते हैं, दुहें। श्रीलंका इसका सबसे ठोस उदाहरण है। श्रीलंका के अनुरोध पर उसके आतंकवादियों से लड़ने के लिए भारत ने अपनी सेना वहां भेजी थी। हमारे लगभग 200 सिपाही भी कुरबान हुए थे। लेकिन श्रीलंका के वर्तमान राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्ष और उनके भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंद राजपक्ष ने सत्तारूढ़ होते ही चीन के साथ इतनी पींगे बढ़ा लीं कि अब श्रीलंका चीन का उपनिवेश बनता जा रहा है। चीन की रेशम महापथ की महत्वाकांक्षी योजना का श्रीलंका अभिन्न अंग बन गया है। उसने अपने सुदूर दक्षिण के हंबनटोटा नामक बंदरगाह को अब चीन के हवाले ही कर दिया है, क्योंकि उसके लिए उधार लिये गए चीनी पैसे को वह चुका नहीं पा रहा था।

चीनी विदेश मंत्री ने अपनी इस यात्रा के दौरान समुद्री तटों पर बसे देशों के एक क्षेत्रीय संगठन का आह्वान किया है। इसका उद्देश्य भारत द्वारा शुरू किए गए ‘सागर’ नामक क्षेत्रीय संगठन को टक्कर देना है। कोई आश्चर्य नहीं कि इस खेल में श्रीलंका को चीन अपना मोहरा बना लेगा। इस समय श्रीलंका की आर्थिक स्थिति दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा खराब है। चीनी संसद में विपक्ष के नेता डि सिल्वा ने कहा है कि श्रीलंका बिल्कुल दिवालिया हो गया है। अकेले अमेरिका का उसे 7 अरब डालर का कर्ज चुकाना है। चीन के सवा तीन बिलियन डाॅलर के कर्जे में दबे श्रीलंका ने अपनी कई लंबी-चौड़ी जमीनें चीन के हवाले कर दी हैं। वह उसे ब्याज भी ठीक से नहीं दे पा रहा है। भारत से कई गुना ज्यादा पैसा चीन वहां खपा रहा है।

वांग यी से राष्ट्रपति गोटबाया ने खुलेआम रियायतें मांगी हैं। चीन की सैन्य मदद भी कई रूपों में श्रीलंका को मिल रही है। हथियार, पनडुब्बियां, प्रशिक्षण आदि क्या-क्या है, जो चीन नहीं दे रहा है। 20-20 लाख चीनी नागरिक हर साल श्रीलंका-यात्रा करते हैं। प्राचीन बौद्ध-संपर्क का फायदा दोनों देश उठाना चाहते हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय इन सब प्रवृत्तियों से सतर्क है लेकिन उसे यह भी पता है कि चीन की तरह वह भारत का पैसा अंधाधुंध तरीके से लुटा नहीं सकता। श्रीलंका को भारत का आभारी होना चाहिए कि भारत के डर के मारे ही उसे चीन की इतनी मदद मिल रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)

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