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कांग्रेसी नेताओं के अलगाववादी बयान और नागरिक चिंताएं

– डॉ. विश्वास चौहान

भारत के किसी राज्य के स्थाई निवासी के नाते अपमान क्या है? आज यूपी या बिहार के किसी भी स्थाई निवासी से पूछ लें, जो एक राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के स्वयम्भू नेताओं के यूपी या बिहार के लोगों के लिए अपमानजनक अलगाववादी बयान दे रहे हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बयानों से अपमानित यूपी और बिहार के लोगों से कोई पूछे तो वे अपने प्रति कांग्रेसी नेताओं का अनमनापन, प्रयोजनशून्यता, दिशाहीनता, रिक्तता, अलगाववाद एवं अपमान को अच्छे से समझ चुके आक्रोशित ही मिलेंगे। इन बयानों से क्षुब्ध यूपी बिहार के बन्धु-बहिने मौजूदा समय में कांग्रेसी राजनीति में अपने आप को पूरी तरह से अप्रासंगिक और तिथिबाह्य पा रहे हैं।

पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का चुनावी मंच से दिया गया यह बयान कि यूपी-बिहार के भय्यों का पँजाब में क्या काम ? और लड़की हूं लड़ सकती हूं नारे की प्रणेता प्रियंका वाड्रा द्वारा तालियां बजा-बजाकर चन्नी के बयान पर प्रसन्नता और समर्थन से यूपी बिहार मूल के लोग दुखी और आक्रोशित हैं। मोदी विरोधी कांग्रेस के सहयोगी विपक्ष की चुप्पी से विभिन्न राज्यों में रह रहे यूपी और बिहार के लोगों में इन राज्यों में अपने रोजगार के अस्तित्व का संकट घर कर गया है, वे ऐसी मनोदशा में हैं मानो किसी परग्रही को अन्य ग्रह पर लगता होगा।

विगत दिनों संसद में कांग्रेसी नेता राहुल गांधी का यह बयान कि “भारत राष्ट्र नहीं है” से पीड़ित देशभक्त नागरिकों को प्रधानमंत्री मोदी के उक्त विषय में प्रत्युत्तर से सांत्वना अवश्य मिली है, जिसमें उन्होंने राष्ट्रत्व के उस साझे तत्व को परख कर उसमें राहुल के वक्तव्य से उपजी नागरिकों की पीड़ा को उदाहरणों सहित एक एकात्मक अखण्ड अटूट राष्ट्रत्व लय में रखा था।

बीते लोकसभा चुनाव के समय भी केरल के वायनाड में यूपी-बिहार के लोगों को राहुल गांधी ने गंवार कहा था, जिसे आज भी किसी दिन सोशल मीडिया पर अपलोड किसी वीडियो में सुनने के बाद यूपी-बिहार के लोगो के भीतर एक स्तब्ध सूनापन गूँजने लगता है। आज भी कांग्रेस शासित राज्यों में यूपी-बिहार के लोग इन बयानों के मद्देनजर अपने आपको सुरक्षित नहीं पाते तथा असुरक्षित भविष्य से शंकित होकर कुछ नया उद्यम या रोजगार भी आरम्भ नहीं कर सकते।

मेरी राजस्थान, पँजाब, छतीसगढ़, महाराष्ट्र में रह रहे कुछ लोगों से इस विषय पर चर्चा हुई। बकौल उनके वे कांग्रेसी शासन में एक अधूरेपन, अलगाववादी भयग्रस्तता के अंतर्भाव से ग्रसित थे। रोजगार की दृष्टि से वे अवकाश की भावमुद्रा में हैं। वह अवकाश वैसे ही अनमनेपन और प्रयोजनहीनता से भरा था- जो दो राष्ट्रों के नागरिकों के बीच रहता है। यूपी और बिहारी के बन्धु कांग्रेस शासित राज्यों में इन नेताओं के बयानों के बाद कारावास और निर्वासन की भाव मुद्रा में आ गए हैं। राष्ट्रतात्विक मनोविज्ञान के संवैधानिक अर्थों में देश की एकरूपता व सांस्कृतिक राष्ट्रत्व की भावमुद्रा को कांग्रेसी बयानों के स्वर ने अशांत और अस्वीकार्यता के स्तर पर लाकर राष्ट्रद्रोह जैसा पाप किया है।

भारत एक राष्ट्र है, इसके समस्त नागरिक संविधान द्वारा समान मौलिक विधिक अधिकार रखते हैं। कांग्रेस अपनी विदेशी मूल की अध्यक्षा एवं उनके पुत्र-पुत्रियों की मूर्खतापूर्ण बयानबाजी से जितनी जल्दी निजात पा लेगी उतना ही नागरिकों के बीच एकता का एक रूपक फिर से राष्ट्र जीवन में निर्मित होगा। राष्ट्र के सर्वांगीण, समन्वयित, समरस, सर्वसमावेशी विकास के एकमेव लक्ष्य से गूंथा हुआ, सर्वपंथ समभाव से बँधा हुआ राष्ट्र जीवन फिर से निर्मित हो जाएगा।

अपमानित और अवमानित यूपी और बिहार के भाइयों के लिये कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के लिए यही सही प्रायश्चित होगा। शेष बची कमजोर कांग्रेस के लिए अब भी यह सम्भव है, उसमें अवसान की चेतना चाहे जितनी सघन हो, लोकतांत्रिक राष्ट्र में एक शक्तिशाली विपक्ष सुदीप्त क्षितिज सदैव सुदूर कौंधता रहेगा। वैसे वर्तमान में चुनावी क्षेत्रों में रह रहे यूपी और बिहार के मतदाता बन्धु कांग्रेसी नेताओं के इन बयानों एवं सहयोगी राजनीतिक दलों की चुप्पी के आलोक में अपनी राजनीतिक समझ का परिचय, वर्तमान निर्वाचन में कांग्रेस को अवश्य करा देंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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