ब्‍लॉगर

प्रशासन की लापरवाही से आफत की बरसात

– डॉ. अनिल कुमार निगम

विगत कुछ दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही बारिश से हाहाकार मचा हुआ है। अब तक करीब सौ लोगों को मौत हो चुकी है। अनेक पुल पानी के बहाव में बह गए हैं। देश की राजधानी सहित अनेक स्मार्ट शहरों में जल का भारी जमाव हो रहा है। मानसून में बारिश होना पूरी तरह से स्वाभाविक प्रक्रिया है। शहरों और घरों में पानी का सैलाब जो उमड़ रहा है, वह प्राकृतिक आपदा कम बल्कि मानव निर्मित आपदा ज्यादा है। भूजल का संकट झेल रहे भारत में बारिश का पानी अभी भी नालों, नालियों और नदियों में बह रहा है। अधिसंख्य शहरों में ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से पंगु है और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कागजों में चल रहा है। यही कारण है कि तेज बारिश के चलते अरबों रुपये का संपत्ति और लोगों की जान का नुकसान हो चुका है।

दिलचस्प बात यह है कि हर प्रदेश सरकार और स्थानीय नगर निकाय वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और नालों के निर्माण और उनकी सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च करते हैं,लेकिन यह काम धरातल पर कम और कागजों पर ज्यादा सरपट दौड़ लगाते हैं। इस समय बारिश का पानी संचय होने की जगह सीधे नालों और नदियों में जा रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि राज्य सरकारें, स्थानीय निकाय और प्रशासन बरसात के पहले इसकी तैयारी क्यों नहीं करते? और अगर शहरों का प्रशासन इसमें हीलाहवाली करता है अथवा संबंधित लोग वाटर हार्वेटिंग सिस्टम को लगाने और उसे चालू रखने में लापरवाही बरतता है तो उनसे सख्ती से क्यों नहीं निपटता? क्या, शासन और प्रशासन ऐसे ही लापरवाही करता रहेगा और जनता समस्याओं से जूझती रहेगी?


देश की राजधानी दिल्ली में अत्यंत खराब स्थिति है। बरसाती नालों की सफाई न होना भी जलभराव का एक छोटा सा कारण है, लेकिन इसकी असली समस्या कुछ और है। दिल्ली में इस समस्या की मूल वजह ड्रेनेज की समुचित व्यवस्था न होना है। वास्तविकता तो यह है कि दिल्ली का 65 फीसदी हिस्सा अनियोजित तरीके से बसा है। इस क्षेत्र में सुनियोजित तरीके से ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाया गया है। चौंकाने की बात यह है कि यहां पर 1700 अनियमित कॉलोनियां हैं, जहां ड्रेनेज सिस्टम ही नहीं है।

उत्तर प्रदेश में दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की स्थिति कमोवेश एक जैसी है। प्रयागराज और वाराणसी का ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त करने के लिए करोड़ों रुपये बहाए गए, लेकिन व्यवस्था आज ठीक नहीं सकी। मेरठ शहर में भी जरा सा पानी बरसा और सड़कें लबालब। यही हाल अलीगढ़, बरेली, आगरा, मुरादाबाद व अन्य शहरों का है।

जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू की आबादी 16 लाख से अधिक है। बरसात का पानी नालों के जरिए तवी नदी में जाता है। आबादी बढ़ने के साथ पक्के मकान भी बढ़ते गए। चौदह बड़े नाले शहर के बीच आ गए। तब ये नाले 50 से 60 फीट चौड़े थे जो अतिक्रमण के कारण अब 10-20 फीट ही रह गए हैं। जम्मू पश्चिम में सीवरेज शुरू होने से शहर के करीब 20 प्रतिशत हिस्से में जल निकासी में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन निचले क्षेत्र आज भी तेज बारिश में जलभराव समस्या झेलते हैं। पांच हजार साल पहले बसे श्रीनगर की आबादी इस समय 14 लाख से ऊपर पहुंचने के बावजूद यहां 60 फीसद क्षेत्र में ड्रेनेज व्यवस्था ही नहीं है।

प्रदेश में दस लाख से अधिक आबादी वाले दो बड़े शहर गुरुग्राम और फरीदाबाद हैं। नई ड्रेनेज लाइन 1970 के दौरान नए सेक्टरों में तो डाली गई, मगर यह लाइन कहां से शुरू हुई और किस नदी-नाले में मिलेगी, इसका छोर या अंत किसी को नहीं पता। 2010 में पुराना फरीदाबाद में 30.64 करोड़ रुपये की लागत से जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन के तहत ड्रेनेज लाइन डाली गई थी मगर यह लाइन भी बरसाती पानी की निकासी के लिए कभी कारगर साबित नहीं हुई। वहीं, पूरा गुरुग्राम निचले क्षेत्र में बसा है। शहर के अनुरूप ड्रेनेज सिस्टम विकसित नहीं किया गया।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में नवाब के समय स्विट्जरलैंड की तर्ज पर तालाबों को लिंक कर ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया था। यह सिस्टम अब पूरी तरह खत्म हो गया है। नालों पर अतिक्रमण होते गए, पानी रुकने लगा। यही हाल इंदौर का भी है। यहां तीन हजार किलोमीटर लंबी सड़कें हैं, लेकिन 10 फीसद में भी बारिश के पानी की निकास की व्यवस्था नहीं है। देश के विभिन्न शहरों में भी बहुत अच्छी स्थिति नहीं है।

वास्तविकता तो यह है कि जिस तरीके से भारत में भूजल का स्तर नीचे जा रहा है, बरसाती पानी का संचय करना बहुत आवश्यक है। ज्यादातर सरकारी और गैर सरकारी भवनों में वर्ष जल संरक्षित करने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में सरकारी और गैर सरकारी भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम समुचित तरीके से काम नहीं करते हैं। यही कारण है कि राजधानी दिल्ली के द्वारका की कई सोसाइटियों में वर्षा जल संचयन प्रणाली के बंद होने की शिकायत पर एनजीटी ने दिल्ली सरकार से इस संबंध में रिपोर्ट मांग थी। वर्षा जल संचयन प्रणाली को लेकर लापरवाही करने वालों पर पांच लाख रुपये तक जुर्माना लग सकता है। जुर्माना से बचने के लिए आवासीय व व्यवसायिक परिसरों में वर्षा जल संचयन प्रणाली लगाने के बाद उसके रखरखाव पर ध्यान नहीं देते हैं।

इस संबंध में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) में दिल्ली सरकार द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में वर्षा चल संचयन के चालू स्थिति में नहीं होने पर पांच लाख रुपये तक पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा गया था। द्वारका की कई सोसाइटियों में वर्षा जल संचयन प्रणाली के बंद होने की शिकायत पर एनजीटी ने दिल्ली सरकार से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी थी। कुछ दिनों पहले सरकार ने उसे रिपोर्ट दी है। उसने कहा है कि नियम का उल्लंघन करने वाले गैर आवासीय इकाइयों के लिए 50 प्रतिशत जुर्माना बढ़ाया जा सकता है।

कहने का आशय है कि भारी बारिश के बाद देश के विभिन्न शहरों में जलभराव से पैदा स्थिति के लिए शासन और प्रशासन की योजना में चूक के साथ-साथ उसके क्रियान्वयन में भारी लापरवाही है। अगर समय रहते इस समस्या के समाधान पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में समस्या और गहरा सकती है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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