ब्‍लॉगर

दिल भी मिलें तो बने बात

– रमेश सर्राफ धमोरा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयास से पटना में 15 विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक हो चुकी है। इसमें शामिल नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए अगला लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने की बात कही है। बैठक में शामिल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्राप्त है, जबकि जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव), झारखंड मुक्ति मोर्चा, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, द्रुमक, भाकपा, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, भाकपा (माले) अपने-अपने प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।

पटना की बैठक में शामिल 15 दलों की देश के 11 प्रदेशों में सरकार है। पिछले नौ साल में पहली बार यह दल एक मंच पर आए हैं। पटना में जुटे 15 दलों के लोकसभा में 142 सदस्य हैं। यह कुल लोकसभा सदस्यों का 26 प्रतिशत है। राज्यसभा में इन दलों के 94 सदस्य हैं। यह 38 प्रतिशत है। राज्यों की विधानसभाओं की कुल 4123 सीटों में से 1717 इन 15 दलों के पास है। यह कुल विधानसभा सदस्यों का 42 प्रतिशत है।


कांग्रेस की देश के चार प्रदेशों राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक में सरकार है। कांग्रेस के पास लोकसभा में 49, राज्यसभा में 29 व विभिन्न प्रदेशों की विधानसभाओं में 725 सदस्य हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 11 करोड़ 94 लाख 95 हजार 214 वोट मिले थे। विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी को नेता प्रोजेक्ट किया जाए। राजद नेता लालू यादव व तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राहुल गांधी के पक्ष में खड़े हैं। ममता बनर्जी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल सामूहिक नेतृत्व की बात कर रहे हैं।

पटना मीटिंग में शामिल इन नेताओं के हाथ तो जरूर मिले मगर अभी तक दिल नहीं मिल पाए हैं। अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के खिलाफ लाए गए अध्यादेश के खिलाफ राज्यसभा में कांग्रेस को उनका समर्थन करने की बात कही। इस पर कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे व अरविंद केजरीवाल में बहस भी हुई। खड़गे ने कहा कि हम ऐसा कोई वादा नहीं कर सकते हैं। हमारी पार्टी के मंच पर इस बाबत चर्चा करके फैसला लिया जाएगा। केजरीवाल ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि राज्यसभा में कांग्रेस उनकी सरकार के खिलाफ लाए गए अध्यादेश के खिलाफ मतदान नहीं करेगी तो भविष्य में वह किसी भी विपक्षी गठबंधन की बैठक में शामिल नहीं होंगे।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस द्वारा उनकी सरकार के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन को लेकर नाराजगी जताई। ममता का कहना है कि पश्चिम बंगाल में उनकी सरकार अच्छा काम कर रही है। कांग्रेस जानबूझकर उनको बदनाम करने के लिए लगातार आंदोलन कर सरकार की छवि खराब कर रही है। कांग्रेस को अपने प्रादेशिक नेताओं को उनकी सरकार के खिलाफ आंदोलन करने से रोकना होगा। वहीं पश्चिम बंगाल में माकपा व भाकपा भी तृणमूल कांग्रेस की सरकार के खिलाफ सक्रिय है।

पिछला विधानसभा चुनाव कांग्रेस, माकपा व भाकपा ने मिलकर लड़ा था। उसके बावजूद उनका खाता भी नहीं खुल सका था। इससे तीन दलों के नेताओं को ममता बनर्जी से खासी नाराजगी है। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों की सरकार को हटाकर सत्ता में आई थीं। कभी वामपंथ का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में आज वामपंथी दलों का एक भी विधायक या सांसद नहीं है। इसके लिए वामपंथी दलों के नेता ममता बनर्जी को जिम्मेदार मानते हैं। इसीलिए उनके खिलाफ लगातार हमलावर रहते हैं।

जम्मू-कश्मीर में कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी एक दूसरे की जानी दुश्मन होती थी। मगर दोनों ही दल अब सत्ता से बाहर हैं। इसलिए आपस में हाथ मिला रहे हैं। पीडीपी के पास तो एक भी जनप्रतिनिधि नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में पीडीपी का खाता नहीं खुला। जम्मू-कश्मीर में अभी विधानसभा चुनाव होने हैं। पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने घोषणा कर रखी है कि जब तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा वह चुनाव नहीं लड़ेगी।

महाराष्ट्र में शिवसेना उद्धव ठाकरे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी एकजुट होकर काम कर रही है। बिहार में जदयू, राजद, कांग्रेस, भाकपा माले, माकपा व भाकपा की मिली जुली सरकार चल रही है। बिहार सरकार में शामिल हम पार्टी के नेता जीतन राम मांझी ने पटना बैठक से एक दिन पूर्व बिहार सरकार से अलग होकर अपनी पार्टी का समर्थन वापस ले लिया। यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए एक झटके से कम नहीं था। वह एक तरफ तो विपक्षी दलों को एक करने में लगे हैं। वहीं उनकी सरकार में शामिल पार्टी उनको छोड़कर भाजपा नीत एनडीए में शामिल हो जाती है। इससे नीतीश कुमार की मुहिम कमजोर पड़ती है।

पटना बैठक में बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, भारत राष्ट्र समिति, अन्ना दु्रमक, तुलुगु देशम पार्टी, अकाली दल, जनता दल सेक्यूलर, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन, आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, मुस्लिम लीग सहित बहुत से ऐसे छोटे राजनीतिक दल जो कांग्रेस व भाजपा से समान दूरी रखकर चल रहे हैं। उनके नेता भी बैठक में शामिल नहीं हुए। इससे लगता है कि नीतीश कुमार की मुहिम अभी अधूरी है। जब तक भाजपा विरोधी छोटे-बड़े सभी राजनीतिक दल एक साझा मंच पर एकत्रित नहीं होंगे तब तक प्रधानमंत्री मोदी को हरा पाना संभव नहीं होगा।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अगले लोकसभा चुनाव में कई प्रदेशों में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने भी अकेले ही चुनाव लड़ने की बात कही है। ओडिशा में बीजू जनता दल, तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का आज भी पूरा प्रभाव नजर आ रहा है। ऐसे में 15 दलों का यह गठबंधन कैसे मुकाबला कर पाएगा। चुनाव में भाजपा के साथ इनको अन्य विपक्षी राजनीतिक दलों का भी मुकाबला करने पड़ेगा। इससे विपक्ष की एकता कमजोर होगी।

पटना मीटिंग में जिस तरह से नेताओं ने हाथ मिलाते हुए फोटो खिंचवाई है। यदि उसी तरह से उनके दिल भी मिल जाएं तो विपक्षी एकता सार्थक होगी। वरना तो भाजपा को हरा पाना मुश्किल ही होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 23 करोड़ वोट लेकर 303 सीटे जीती थीं। यह 15 दल भी उतने ही वोट लेकर 142 सीट ही जीत पाए थे। बराबर वोट लेकर भी आधी से भी कम सीटें जीतने का मुख्य कारण था विपक्षी वोटों का आपस में ही लड़कर बिखर जाना। इसीलिए विपक्षी वोटों का संगठित होना बहुत जरूरी है। विपक्षी दलों की एकता कितनी सिरे चढ़ पाती है। इस बात का पता तो चुनाव में ही चल पाएगा।

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