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महक रही अफीम की फसल, चौबीस घंटे निगरानी कर रहे किसान

रतलाम (Ratlam)। मध्य प्रदेश (MP) के रतलाम और मंदसौर (Ratlam and Mandsaur) जिलों में काले सोने के नाम से ख्यात अफीम फसल (Apheem phasal) इस समय फूल-फल के साथ महक रही है। सैलाना क्षेत्र (tourist area) में फसल पकने पर किसानों द्वारा डोडा में चीरा लगाकर दूध संग्रहण (अफीम लेने ) का श्री गणेश कर दिया गया है।

चाक-चौबंद सुरक्षा घेरे में -प्राकृतिक आपदा, वन्य प्राणी व पक्षियों से बचाने के लिए क्रमश: फसल के किनारे-किनारे मक्का की फसल, घोड़ारोज से बचाने के लिए लोहे के तार की बागड़ व पक्षियों से बचाने के लिए तोता जाली उसके बाद अन्य सुरक्षा के मद्देनजर चौबीस घंटे किसान की पहरेदारी।

पूर्व के वर्षो में जिले में कुछ खेतों से अफीम फसलों से डोडे चोरी होने की घटनाएं भी हुई हैं। इसी को देखते हुए किसान अपने खेतों की सुरक्षा में मुस्तैद हैं, चूंकि अब अफीम फसल पर डोडे आ चुके हैं जिससे किसानों की जिम्मेदारी भी बढ गई है। मंदसौर जिले में इस साल नियमित एवं सीपीएस के पट्टे मिलाकर करीब 17 हजार किसान अफीम की खेती कर रहे हैं।

किसानों के अनुसार सबसे ज्यादा लागत अफीम की फसल में ही होती है। दस आरी के पट्टे में खाद, बीज, दवाई सहित अन्य खर्च मिलाकर करीब 30 हजार से ज्यादा का खर्च होता है।

जांच के बाद होती है चीरा लगाने की शुरुआत

विभाग द्वारा फसल की बहार के एक पखवाड़े पूर्व संबंधित किसान के खेत पर खड़ी फसल की जांच की जाती है तब ही किसान चीरा लगा सकता है। कृषक नंद किशोर पाटीदार बताते है कि फसल के क्षेत्रफल में इंच-इंच भूमि की जांच की जाती है। किसान दीपक (दुर्गेश) पाटीदार बताते है कि विभाग द्वारा दस आरी (आधा बीघा ) क्षेत्र की फसल पात्रता पर 6.600 किलो ग्राम अफीम मात्रा नियत है उससे कम उत्पादन देने पर विभागीय मानदंड के तहत पट्टा निरस्त कर दिया जाता है, हालांकि इस दौरान किसान फसल की बिगड़ी हालत को देखते हुए चीरा लगाने से पूर्व विभाग को इत्तला देकर विभागीय उपस्थिति में नियत दिनांक को फसल नष्ट कर पट्टे को बचा भी सकता है।

जैसा नाम वैसा काम

काले सोने के नाम से ख्यात अफीम फसल अपने नाम को वर्तमान मे पूर्णत: चरितार्थ करती भी दिख रही है आज जिन किसानो के पास पट्टा है उन्हें नियमानुसार अफीम के मूल्य के साथ वर्तमान मे 1.50 लाख प्रति क्विंटल बिकने वाले पोस्त दाने (खसखस )का भाव भी फायदा पहुंचा रहा है। तीन दशक में महज दस फीसदी किसान ही रह गए पात्र -वर्ष 1990मे गांव के करीब 90किसानो के पास अफीम पट्टे थे जो वर्तमान मे आकड़ा महज 9 किसान तक सिमित हो गया है।



आधे से ज्यादा सीपीएस

वर्तमान मे जिन किसानों को अफीम कास्त की अनुमति मिली हुई है उनमे आधे से ज्यादा सीपीएस श्रेणी मे है जिसके चलते सभी किसान पोस्त दाने का लाभ जरूर लेंगे किन्तु अफीम (चीरा )महज चार किसान ही संग्रहण कर सकते है।

सीपीएस की श्रेणी के मायने

वर्ष 2021-22मे जिन किसानो को पट्टे मिले वह सीपीएस की श्रेणी मे आते है यह वो किसान थे जिनके पट्टे विभागीय मानदंड के चलते रोके हुए थे उन्हें नियम शिथिलता का लाभ देकर पात्रता दी गईं।ये किसान महज पोस्त दाने का लाभ ले सकेंगे। एजेंसी/हिस

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