- कलेक्टर से मिलने पहुंचे पीडि़तों ने जताया आक्रोश
- एक महिला बोली- मुझे एक प्लॉट नहीं मिला और अध्यक्ष ने आधा दर्जन डकार लिए
इंदौर। जमीनी जादूगरों (Ground magicians) के चंगुल में फंसी गृह निर्माण संस्थाओं के पीडि़तों के फजीते कम नहीं हो रहे हैं। दो साल पहले तो अभियान चलाकर भूखंड दिलवाए भी गए, मगर उसके बाद जैसे ही अभियान ठंडा पड़ा भूमाफिया फिर सक्रिय हो गए। देवी अहिल्या श्रमिक कामगार संस्था (Devi Ahilya Shramik Workers Association) की चर्चित कॉलोनी अयोध्यापुरी (Ayodhyapuri) के भी पीडि़त सहकारिता से लेकर पुलिस प्रशासन के चक्कर काट रहे हैं। कल भी इन पीडि़तों ने कलेक्टर (Collector) आशीष सिंह से मुलाकात की और कहा कि वरीयता सूची भी जारी नहीं की जा रही है और इस मामले में अब संबंधित अधिकारियों द्वारा नित नए बहाने बनाए जा रहे हैं, जिसमें 18 साल से संस्था का ऑडिट न होने से लेकर नक्शा मंजूर न होने और जमीन का भू-उपयोग आवासीय न होने सहित अन्य बातें कही जा रही है, जबकि तत्कालीन कलेक्टर ने ही 2022 में प्रथम सूची का प्रकाशन करवाते हुए दावे-आपत्तियां बुलवाईं और उनका निराकरण कर अंतिम सूची के प्रकाशन का वायदा भी किया था।
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपने कार्यकाल में तीन बार ऑपरेशन भूमाफिया इंदौर सहित प्रदेशभर में चलाया, जिसके चलते इंदौर में ही कई चर्चित भूमाफियाओं को जहां जेल भेजा गया, तो उनके कब्जों में फंसी जमीनों को छुड़वाकर पीडि़तों को भूखंड उपलब्ध कराए गए। तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने पुष्प विहार सहित अयोध्यापुरी के पीडि़तों का भी कब्जा मौके पर करवाया। मगर अब अयोध्यापुरी के ये पीडि़त फिर से परेशान हो रहे हैं। कल गौरीशंकर लाखोटिया, एक भूखंड पीडि़त महिला नीलम मंत्री, देवी अहिल्या के अध्यक्ष विमल अजमेरा, सहकारिता उपायुक्त मदन गजभिये और जांच अधिकारी एसडीएम निधि वर्मा भी इस दौरान मौजूद रहीं। कलेक्टर आशीष सिंह ने सभी का पक्ष जाना, जिसमें निधि वर्मा ने नई बात कहते हुए कहा कि अभी तक अंतिम सूची इसलिए प्रकाशित नहीं की जा सकी, क्योंकि कॉलोनी का भू-उपयोग पीएसपी है और 18 साल से ऑडिट नहीं हुआ। डायवर्शन के अलावा नक्शा भी मंजूर नहीं है। जबकि पीडि़तों का कहना था कि ये सारी समस्याएं तो वर्षों पुरानी यानी शुरू से ही है और तत्कालीन कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने 2022 में प्रथम सूची का प्रकाशन करवाते हुए जांच टीम भी गठित की और दावे-आपत्तियों का निराकरण करते हुए अंतिम सूची का प्रकाशन करने को भी कहा। मगर अब सहकारिता विभाग से लेकर प्रशासनिक अधिकारी वरीयता सूची जारी करने के मामले में टालमटोली कर रहे हैं। कलेक्टर के सामने ही पीडि़ता महिला निलम मंत्री ने आरोप लगाया कि हम सदस्य होने के बावजूद एक भूखंड भी हासिल नहीं कर सके और संस्था अध्यक्ष अजमेरा ने 6-6 भूखंड अपने और परिवार के नाम पर अलॉट करवा लिए हैं। मेरा खुद का 72 नम्बर का भूखंड है, जिस पर रूपाली मनीष गोधा के नाम की रजिस्ट्री है। इसी तरह अन्य अपात्रों ने भी 5-5 भूखंड हड़प रखे हैं और अब उपायुक्त सहकारिता मदन गजभिये द्वारा भी अड़ंगेबाजी की जा रही है, तो निधि वर्मा जानबूझकर अन्य नियम बताकर गुमराह कर रही है। कलेक्टर श्री सिंह ने दोनों पक्षों की बात ध्यान से सुनी और जल्द ही समस्या के निराकरण का आश्वासन पीडि़तों को दिया। दरअसल कलेक्टर ने पीडि़तों की बात सुनने के बाद अध्यक्ष विमल अजमेरा और अधिकारियों से भी इस संबंध में जानकारी ली। इन पीडि़तों का आरोप है कि जमीनी जादूगरों ने अफसरों के साथ भी सांठगांठ कर ली है और अध्यक्ष की भी नियत साफ नहीं है और वे भी नहीं चाहते हैं कि वरीयता सूची बने, क्योंकि फिर उन्हें भी अवैध भूखंड सरेंडर करना पड़ेंगे। जबकि हाईकोर्ट के निर्देश पर ही प्रशासन ने वरीयता सूची तैयार करवाने की प्रक्रियादो साल पहले शुरू की थी और अभी भी जांच कमेटी द्वारा जो अंतिम सूची तैयार की जाएगी उसके बाद भी अगर किसी को परेशानी हुई तो वह धारा 64 में आवेदन लगाएगा, जिसमें डीआर कोर्ट अपना निर्णय भी देगी। अभी जो बहाने बनाए जा रहे हैं वो तो उस वक्त भी थे जब खुद प्रशासन ने ही प्रथम सूची का प्रकाशन करवाते हुए दावे-आपत्तियां आमंत्रित की थी। आज जो नियम सहकारिता और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बताए जा रहे हैं तो उस वक्त इन नियमों की याद क्यों नहीं आई जब प्रथम सूची का प्रकाशन करवाया गया, जिसके आधार पर प्राप्त दावे-आपत्तियों के मुताबिक अलग-अलग सूचियां भी बनीं, जिनकी जांच के पश्चात अब अंतिम यानी वरीयता सूची तैयार करना है। उलटा वरीयता सूची के बाद ही अन्य नियमों के निराकरण का भी रास्ता आसान हो सकेगा।
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