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आर्टिकल 370 हटाने से सच में शांत हो गया जम्मू-कश्मीर? चार साल में क्या-क्या बदला जान लीजिए

नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को वो कर दिया, जिसकी कल्पना करना भी आसान नहीं था। सरकार ने चार साल पहले जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बना दिया। तब कश्मीरी नेताओं और कुछ विपक्षी दलों ने इस कदम को मोदी सरकार का जम्मू-कश्मीर की जनता के साथ किया गया अन्याय और विश्वासघात करार दिया था। वहीं, देश के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि धारा 370 की आड़ में भ्रष्टाचारियों और अलगाववादियों को संरक्षण मिल रहा था, इसलिए इसे समाप्त करना जम्मू-कश्मीर को आतंकवाद मुक्त करने की दिशा में बहुत जरूरी था। चार साल का समय यह जानने के लिए पर्याप्त है कि आर्टिकल 370 हटाए जाने पर इसके विरोधियों का दावा सही साबित हुआ या फिर सरकार का। तो आइए जानते हैं कि अभी कश्मीर में क्या-क्या बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

पत्थरबाजी से आतंकवाद तक, कई बड़े बदलाव
घाटी में भारी संख्या में सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण पत्थरबाजी की घटनाएं लगभग शून्य हो गई हैं। ऊपर से एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसियों के कठोर कदमों से आतंकवाद की कमर टूट गई। गृह मंत्रालय के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2021 के जनवरी से जुलाई तक कश्मीर में 76 पत्थरबाजी की घटनाएं रिकॉर्ड हुईं, जो 2020 की इसी अवधि में 222 और 2019 की इसी अवधि में हुईं 618 घटनाओं के मुकाबले काफी कम हैं। इन घटनाओं में सुरक्षा बलों के घायल होने की संख्या भी गिरावट दर्ज की गई है।

वर्ष 2019 में जनवरी से जुलाई महीने के बीच सुरक्षा बलों के 64 जवान पत्थरबाजी और आतंकवाद की घटनाओं में घायल हुए थे। लेकिन, वर्ष 2021 की इसी अवधि में यह आंकड़ा घटकर 10 हो गया। गृह मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 के जनवरी से जुलाई महीने में 339 नागरिकों को पैलट गन और लाठीचार्ज के कारण चोटें आई थीं, जबकि 2021 की इस अवधि में यह आंकड़ा 25 तक आ गिरा। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 2022 से कानून-व्यवस्था को लेकर ओवरऑल डेटा संग्रह का काम शुरू किया है। इसमें पत्थरबाजी समेत कानून-व्यवस्था भंग होने की सभी घटनाएं शामिल हैं। इस डेटा के अनुसार, 2022 में जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 20 बार कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश हुई थी।


आतंकवादियों पर कसी नकेल
आतंकवादियों के ओवर-ग्राउंड वर्करों की गिरफ्तारियों में भारी वृद्धि हुई। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 (जनवरी-जुलाई) में 82 गिरफ्तारियों के मुकाबले 2021 (जनवरी-जुलाई) में 178 गिरफ्तारियां हुईं। 5 अगस्त, 2019 से 6 जून, 2022 तक के 10 महीनों में हुई आतंकी घटनाओं के आंकड़ों की तुलना उसके पिछले 10 से करें तो इसमें 32% की गिरावट देखी गई है। इसी तरह, आतंकी घटनाओं में भारतीय सुरक्षा बलों की शहादत 52% और नागरिकों की मृत्यु 14% कम हो गई। इसी दौरान आतंकवादियों की भर्तियों में भी 14% की कमी दर्ज हुई है।

घाटी शांत, लेकिन जम्मू पर बढ़ा खतरा
लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू दुखदायी है। घाटी में कश्मीरी हिंदुओं और गैर-कश्मीरियों की हत्याओं की सिलसिलेवार घटनाओं से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। 5 अगस्त, 2019 के बाद हुई मारे गए कुल आम नागरिकों में 50% से अधिक की हत्याएं पिछले आठ महीने में हुईं। इन हत्याओं पाकिस्तान से सीमाई इलाकों में ड्रोनों से भेजे गए छोटे हथियारों का इस्तेमाल हुआ है। पाकिस्तानी हैंडलर्स अब भी पार्ट-टाइम बेसिस पर आतंकवादियों की भर्तियां कर रहे हैं जो आम नागरिकों को निशाना बनाते हैं।

आतंकियों के निशाने पर हिंदू बहुल इलाके
जम्मू में हिंदू बहुल इलाकों को निशाना बनाने की भी कोशिशें हुईं जैसा कि वर्ष 2000 के आसपास हुआ करता था। 2021 में पुलिस ने लगभग 20 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया और कई IEDs की बरामदगी हुई जिनका इस्तेमाल हिंदू इलाकों में किया जाना था। वर्षों बाद पिछले साल 2022 की शुरुआत ही जम्मू में हिंदू नागरिकों की हत्याओं के साथ हुई। वहीं, जम्मू में लागातार घुसपैठ की घटनाओं में भी वृद्धि हुई। आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों के दर्जनभर से ज्यादा जवानों पर अचानक हमला कर शहीद कर दिया और भाग निकले। कई मामलों में हमलावर सुरक्षा बलों के हाथ नहीं लग पाए।

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