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ब्रिटेन की महारानी के ताज तक कैसे पंहुचा भारत का कोहिनूर, यहाँ जानिए सबकुछ

लन्दन: ब्रिटेन (Britain) के राज परिवार की जब भी बात होती है, तब कोहिनूर (kohinoor) का जिक्र जरूर आता है. अक्सर इस हीरे को भारत (India) वापस लाने की मांग उठती रही है. लेकिन कोहिनूर वापस नहीं आया. ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth 2) के साथ इस बेशकीमती हीरे का सफर सात दशक तक रहा. क्वीन एलिजाबेथ ने गुरुवार को 96 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. महारानी के निधन के बाद से एक बार फिर से कोहिनूर को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.

आखिर क्यों भारत में बार-बार कोहिनूर (Kohinoor Diamond) को वापस लाने की मांग उठती रहती है? इसे समझने के लिए हमें इसके इतिहास में 800 साल पीछे जाना होगा. सैकड़ों साल में इस बेशकीमती हीरे ने बहुत कुछ देखा. जंग देखी, खूनखराबा देखा. एक देश से दूसरे देश की यात्रा की. शायद बहुत ही कम लोग ये जानते होंगे कि कभी कोहिनूर मां भद्रकाली की आंख में सजा हुआ था. लेकिन लुटेरों की नजर लग गई और इसे नोच डाला.

माना जाता है कि साल 1310 में कोहिनूर आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में खातिया वंश के राज के दौरान खुदाई में मिला था. वारंगल में इसे एक मंदिर में मां भद्रकाली की एक आंख के रूप में लगाया गया था. बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण में लूटपाट मचाई और मां भद्रकाली की आंख से हीरे को नोच लिया. वह इस हीरे को अपने साथ ले गया. साल 1526 में यह कोहिनूर खिलजी वंश के पास चला गया. मुगल शासक बाबर ने इब्राहिम लोधी को पानीपत के प्रथम युद्ध में हराया. कोहिनूर इस ढंग से बाबर के पास आ गया. इसका जिक्र उन्होंने बाबरनामा में भी किया है. बाद में बाबर ने यह हीरा अपने बेटे हुमायूं को दे दिया.


साल 1658 में हुमायूं से यह हीरा शाहजहां को मिला. इस मुगल शासक ने कोहिनूर को अपने मोरनुमा ताज में लगा लिया. जब औरंगजेब ने शाहजहां को कैद किया तो वह अपनी खिड़की से इसी हीरे के जरिए ताजमहल को निहारा करते थे. इसके बाद फारसी सम्राट नादिर शाह ने 1739 में मुगलों पर हमला किया और कोहिनूर को कब्जा लिया. मगर 1747 में उसकी हत्या कर दी गई और कोहिनूर अफगानिस्तान के अमीर अहमद शाह दुर्रानी के पास आ गया. 1830 में अहमद शाह दुर्रानी का उत्तराधिकारी सुजाह शाह दुर्रानी कोहिनूर को लेकर अफगानिस्तान से लाहौर भाग आया.

लाहौर से सिख महाराजा रणजीत सिंह इस हीरे को अपने साथ ले आए. इस तरह यह हीरा पंजाब आ गया. वह चाहते थे कि इस हीरे को ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के चरणों में चढ़ाया जाए. मगर उनके निधन के बाद 1839 में अंग्रेजों ने इसे कब्जा लिया. साल 1850 में लॉर्ड डलहौजी ने महाराजा रणजीत सिंह के छोटे बेटे दलीप सिंह को सलाह दी कि वह कोहिनूर को क्वीन विक्टोरिया को भेंट कर दे. इसके बाद दलीप सिंह कलकत्ता गए.

कलकत्ता (अब कोलकाता) से यह हीरा बॉम्बे (अब मुंबई) पहुंचा और यहां से एक लोहे के बॉक्स में बंद कर इसे पानी के जहाज से इंग्लैंड भेज दिया गया. लेकिन यह सफर बहुत मुश्किल रहा था. 1 जुलाई, 1850 को यह हीरा पोर्ट्समाउथ पहुंचा और यहां से इसे लंदन भेजा गया. 3 जुलाई को क्वीन विक्टोरिया को यह भेंट किया गया.

क्वीन विक्टोरिया के बाद यह हीरा क्वीन एलेक्सेंड्रा के पास चला गया. उनके निधन के बाद यह हीरा क्वीन मैरी के ताज की शान बना. इसके बाद कोहिनूर क्वीन एलिजाबेथ-2 के सिर पर सजा. कोहिनूर का सबसे लंबा सफर महारानी एलिजाबेथ के साथ ही रहा. यह साथ 70 साल से ज्यादा का रहा. अब यह हीरा किंग चार्ल्स-3 की पत्नी कैमिला को मिलेगा. यह महारानी के ताज में सजाया गया और अब यह टॉवर ऑफ लंदन में है.

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