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बंगाल: ममता और राज्यपाल के कैसे हैं रिश्ते, धनखड़ ने बताई सच्चाई

कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Governor Jagdeep Dhankhar) ने शुक्रवार को कहा कि वह एक सक्रिय राज्यपाल नहीं हैं, बल्कि एक कॉपीबुक गवर्नर (copybook governor) हैं और वह कभी भी संविधान का उल्लंघन नहीं करेंगे। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamata Banerjee) के साथ अपने संबंधों को भी साझा किया और कहा कि वे दोनों एक भाई और बहन की तरह है।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस महान देश का नागरिक होने और एक राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के नाते मैं संविधान से ही अपना आदेश लेता हूं, मुझे किसी और से आदेश नहीं मिलता है। मेरा काम रक्षा करना, संरक्षित करना है।” धनखड़ ने कहा, मीडिया मुझे प्रोएक्टिव गवर्नर (proactive governor) कहती है, जो मैं नहीं हूं। मैं एक कॉपीबुक गवर्नर हूं। मैं कानून के शासन में विश्वास करता हूं। मेरा मानना ​​है कि कानून की रूपरेखा काम कर रही है और मैं किसी के भी कहने पर किसी भी परिस्थिति में संवैधानिक गरिमा का उल्लंघन नहीं करूंगा।

धनखड़ ने यह बात राज्य विधानसभा (state assembly) में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) द्वारा लोकतंत्र को आगे बढ़ाने में राज्यपालों और विधायकों (Governors and Legislators) की भूमिका पर एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। जगदीप धनखड़ ने उन मौकों का भी जिक्र किया जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनका विवाद हुआ था। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उनसे गहरा रिश्ता है, एक भाई और बहन की तरह, और उनका संवाद जारी है।


उन्होंने कहा कि संविधान राज्यपाल के प्रति मुख्यमंत्री के कर्तव्यों का उल्लेख करता है, जो उन्हें राज्यपाल के कार्यालय द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य करता है। लेकिन पिछले ढाई साल से इस सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई है। राज्यपाल ने कहा कि उनके मन में बहुत दर्द और चिंता है, और वह यह भी सोचते हैं कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल सार्वजनिक रूप से कैसे लड़ सकते हैं? उन्होंने कहा, “मेरा अथक प्रयास रहा है कि राज्यपाल के रूप में मेरी मुख्य जिम्मेदारी सरकार का समर्थन करना है लेकिन यह एक हाथ से संभव नहीं है। मैंने सीएम (बनर्जी) से बात की है कि आप देश के जाने-माने नेता हैं।

केंद्र मुझे जो भी सुझाव देगा, मैं उसे गंभीरता से लूंगा और मेरा मन होगा कि संवैधानिक व्यवस्था न होने पर उसी के अनुसार काम किया जाए। इसी तरह, यदि आप कुछ सुझाते हैं, तो उसका प्रभाव भी मुझ पर उतना ही होगा। लेकिन जिस दिन केंद्र के लोग या आप आश्वस्त होंगे कि मैं वही करूंगा जो आप कहेंगे, तो कोई दूसरा व्यक्ति इस कुर्सी पर बैठेगा, मैं करूंगा सिर्फ बैठूंगा नहीं।” राज्यपाल को संवैधानिक दायित्वों के अलावा कोई भी ऐसा कार्य नहीं दिया जाना चाहिए, जिससे राज्य सरकार के साथ टकराव की स्थिति पैदा हो।

कुलपति की नियुक्ति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘जब मेरे पास नियुक्ति का मामला आता है तो मैं अपनी बुद्धि से काम करता हूं। लेकिन जब सीएम का सुझाव आता है तो मैं अपना दिमाग नहीं लगाता। मैं उस नाम पर सहमत हो जाता हूं इसके बावजूद, इस राज्यपाल को भुगतना पड़ा – मेरी जानकारी, स्वीकृति और प्राधिकरण के बिना 25 कुलपति नियुक्त किए गए हैं। धनखड़ ने कहा कि राज्यपाल और विधायक संसदीय लोकतंत्र को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और संविधान का अनुच्छेद 164 यह स्पष्ट करता है कि राज्यपाल और विधायकों के विशिष्ट कर्तव्य हैं। वर्तमान में राज्यपाल और विधायक को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो चिंता का विषय है।

राज्यपाल और विधायकों के कर्तव्यों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि विधायक संविधान के दायरे में काम करने की शपथ लेते हैं और राज्यपाल संविधान की रक्षा करने की शपथ लेते हैं। राज्यपाल के पास संविधान की गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है। भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ही सर्वोपरि हैं।

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