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कोरोना वायरस फेफड़ों की कोशिकाओं को कैसे कुछ ही घंटे में क्षति पहुंचाता है, वैज्ञानिकों ने पता लगाया


बोस्टन । वैज्ञानिकों ने विषाणु संक्रमण की शुरुआत में फेफड़ों की हजारों कोशिकाओं के भीतर होने वाली आणविक गतिविधियों के बारे में अबतक तैयार किए गए अनुसंधानों से एक व्यापक खाका तैयार किया है जिससे कोविड-19 से निपटने वाली नई दवाई के विकास में मदद मिल सकती है। अमेरिका के बोस्टन विश्वविद्यालय समेत कई वैज्ञानिकों ने अपने विश्लेषण में पाया कि अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एडीए) द्वारा मंजूर की गई 18 मौजूदा दवाओं का इस्तेमाल कोविड-19 के खिलाफ किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इनमें से पांच दवाइयां मानव फेफड़ों की कोशिकाओं में कोरोना वायरस का प्रसार 90 फीसदी तक कम कर सकती हैं।


यह अनुसंधान ”मोलेक्युलर सेल” नाम की पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इस अनुसंधान में शामिल वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में विकसित किए गए मानव फफड़ों की हजारों कोशिकाओं को एक साथ संक्रमित किया और इनकी गतिविधियों को देखा। उन्होंने कहा कि ये कोशिकाएं शरीर की कोशिकाओं से एकदम समान नहीं होती लेकिन उनसे मिलती जुलती होती हैं।

बोस्टन विश्वविद्यालय में वायरस वैज्ञानिक एवं अनुसंधान के सह लेखक एल्के मुहलबर्गर ने कहा कि इस अनुसंधान में विषाणु के फेफड़ों की कोशिकाओं को संक्रमित करने के एक घंटे बाद से नजर रखी गई। उन्होंने कहा कि यह देखना काफी डरावना था कि संक्रमण के शुरुआत में ही विषाणु ने कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया।

विषाणु अपनी प्रतिलिपियां नहीं बना सकता है तो वह कोशिकाओं के तंत्र के जरिए अपनी आनुवंशिक सामग्री की प्रतियां बनाता है। अनुसंधान में वैज्ञानिकों ने पाया कि जब एसएआरएस-सीओवी-2 संक्रमण होता है तो यह कोशिका की ‘मेटाबोलिक’ प्रक्रिया को पूरा तरह से बदल देता है। विषाणु संक्रमण के तीन से छह घंटे में ही कोशिका की आणविक झिल्ली (मेम्ब्रेंस) को भी क्षतिग्रस्त कर देता है।

मुहलबर्गर ने बताया कि इसके विपरीत घातक इबोला विषाणु से संक्रमित कोशिकाओं में शुरुआत में कोई ढांचागत बदलाव नहीं दिखा है। उन्होंने बताया कि साथ ही संक्रमण के बाद के चरण में आणविक झिल्ली (मेम्ब्रेंस) सही सलामत रही।

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