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महामारी में यूरोपियन यूनियन से मिला पैसा लौटाना होगा, जानें क्‍यों?

ब्रसेल्स। कोरोना महामारी(Corona Pandemic) के दौरान राहत देने में यूरोपियन यूनियन European Union (EU) ने जो उदारता दिखाई, अब उसकी कीमत आखिरकार उसके सदस्य देशों के नागरिकों को ही चुकानी पड़ सकती है। यूरोपियन यूनियन (EU) में अब इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि पिछले जुलाई के बाद अरबों यूरो के जो कर्ज सदस्य देशों को दिए गए, उसकी भरपाई कैसे हो। उस कर्ज की रकम को सदस्य देश कैसे खर्च कर रहे हैं, उसका ब्योरा देने की समयसीमा इसी सप्‍ताह पूरी हो रही है। इसके साथ ही कर्ज वापसी के तरीकों पर चर्चा शुरू हो गई है। खबरों के मुताबिक इस मकसद से यूरोपीय आयोग ने कई तरह के शुल्क लगाने का एक प्रस्ताव तैयार किया है।



यूरोपियन यूनियन (EU) ने महामारी (Pandemic) और लॉकडाउन(Lockdown) के बीच 800 अरब यूरो के ईयू रिकवरी पैकेज (800 billion euro EU recovery package) को मंजूरी दी थी। इसके तहत सदस्य देशों को कर्ज दिए गए। जानकारों का कहना है कि अब उनकी भरपाई के लिए टैक्स के जिस ढांचे को यूरोपीय आयोग ने मंजूरी दी है, उसे लागू करना आसान नहीं होगा। ईयू के बजट कमिशनर जोहानेस हान ने वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू से कहा- ‘सभी सदस्य देशों के अलग-अलग विचार हैं। इसलिए टैक्स प्रस्तावों को संतुलित रखना होगा, ताकि वह सभी देशों को मंजूर हो सके।’
अगर कुछ देश अपने नागरिकों पर नए टैक्स लगाने के लिए तैयार नहीं हुए, तो यूरोपीय आयोग ईयू से मिलने वाले उनके बजट में कटौती का प्रस्ताव रख सकता है। लेकिन जानकारों के मुताबिक इस पर सहमति बनाना भी आसान नहीं होगा। गौरतलब है कि ईयू देशों के नेताओं ने अपनी पिछली बैठक में यूरोपीय आयोग (The European Commission) से कर्ज चुकाने के लिए राजस्व के नए स्रोतों का प्रस्ताव करने को कहा था।
लेकिन यूरोपीय आयोग की राय है कि रिकवरी पैकेज के तहत दिए गए 400 अरब डॉलर के कर्ज को चुकाने का सबसे आसान रास्ता यही है कि आयोग को पूरे ईयू क्षेत्र पर एक जैसा टैक्स लगाने का अधिकार दिया जाए। बाकी रकम अलग-अलग देश अपने खजाने से चुका सकते हैं। आयोग के कमिशनर हान ने कहा है कि इस साल से ही 15 अरब डॉलर के कर्ज की वापसी हो, तभी 2058 तक सारी रकम को ईयू देश चुका पाएंगे। खबरों के मुताबिक आयोग तीन प्रकार के टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखने वाला है, जिसका पूरा ब्योरा जून में ईयू देशों को सौंप दिया जाएगा।
ईयू इस बात पर अड़ा हुआ है कि नए टैक्स से जो आमदनी होगी, वह सीधे ईयू के खजाने में जानी चाहिए। लेकिन इस बात पर बहुत से सदस्य देश सहमत नहीं हैँ। उनकी दलील है कि ईयू को सीधे टैक्स वसूलने की इजाजत देने का मतलब उसके अधिकार में ऐसी बढ़ोतरी होगा, जिससे वह एक पूर्ण सरकार के रूप में काम करने लगेगा। इसका मतलब वित्तीय मामलों में ईयू के सदस्य देशों के अधिकारों में और कटौती होगा।
अब ईयू का बजट सदस्य देशों के बीच आम सहमति से तय होता है। उसकी आमदनी का सबसे बड़ा हिस्सा सदस्य देशों के अनुदान से आता है। इसके अलावा कस्टम और वैट से ईयू को आमदनी होती है।

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