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बीते पांच सालों में देशद्रोह में 472 तो UAPA में 7,243 लोग अरेस्‍ट, 3 प्रतिशत को ही सजा

नई दिल्ली। दिल्ली दंगों (Delhi Riots) से जुड़े मामलों में आरोपी शरजील इमाम (Sharjeel Imam) पर कोर्ट ने देशद्रोह और यूएपीए की धारा भी जोड़ने का आदेश (Order to add section of sedition and UAPA also) दिया है. ये धाराएं एंटी-सीएए प्रदर्शन (Anti-CAA Demonstration) के दौरान दिए गए भाषणों की वजह से शरजील इमाम (Sharjeel Imam) पर लगाई जाएंगी. शरजील इमाम (Sharjeel Imam) पर कथित तौर पर असम को देश से अलग करने का आरोप है.
देशद्रोह (धारा 124ए) और यूएपीए यानी अनलॉफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्ट, इन दोनों ही कानूनों के इस्तेमाल पर अक्सर सवाल भी उठते रहे हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने देशद्रोह का कानून खत्म करने की वकालत की थी. उन्होंने कहा था कि ये औपनिवेशिक प्रवृत्ति का है और देश के संविधान में इसके लिए कोई जगह नहीं है.



वहीं, यूएपीए को लेकर भी अक्सर विवाद होते रहे हैं. अगस्त 2019 में जब सरकार ने इस कानून में संशोधन किया था, तब जमकर बवाल किया था. संशोधन के बाद सरकार किसी संगठन या संस्था को नहीं बल्कि किसी व्यक्ति विशेष को भी ‘आतंकवादी’ करार दे सकती है.
इन कानूनों पर सवाल उठाने वाले दावा करते हैं सरकार जल्दबाजी में देशद्रोह और यूएपीए के तहत केस दर्ज कर लेती है, लेकिन अदालतों में आरोप साबित नहीं कर पाती. जानकार कहते हैं कि देश में पहले टाडा और पोटा जैसे कानून था, जिनका कन्विक्शन रेट भी कम था. बाद में इन कानूनों को निरस्त कर दिया. इस समय आतंकवाद के लिए देश में इकलौता यूएपीए कानून ही है और इसका कन्विक्शन रेट भी काफी कम है.

क्या कहते हैं आंकड़े?
देशद्रोह : 2014 से 2020 तक 5 सालों में देशद्रोह के 322 मामले दर्ज हुए. इनमें 472 लोगों को गिरफ्तार किया गया. देशद्रोह के आरोप में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनमें से महज 12 लोगों को ही सजा मिली.

यूएपीए : 2014 से 2020 तक 5 साल में यूएपीए के तहत 5,027 मामले दर्ज हुए. इनमें 7,243 लोगों को गिरफ्तार किया गया. हालांकि, इनमें से सिर्फ 212 लोगों पर ही आरोप साबित हो सका और इन्हें ही सजा मिल सकी.

क्या है इन दोनों कानूनों का इतिहास?

देशद्रोह : 17वीं इंग्लैंड में ये कानून लाया गया था. यही कानून अंग्रेजों के जरिए भारत आया. 1860 में जब इंडियन पीनल कोड यानी आईपीसी लागू हुई, तब देशद्रोह का कानून उसमें नहीं था. 1870 में आईपीसी में संशोधन कर धारा 124A को जोड़ा गया था. इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी से लेकर भगत सिंह तक पर हुआ था. आजादी के बाद जब भारत का अपना संविधान आया तो उसमें भी ये धारा जारी रही. इसके तहत उम्रकैद या तीन साल तक की कैद हो सकती है.

यूएपीए : आतंकवादी और देश की अखंडता-संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली ताकतों को रोकने के लिए ये कानून लाया गया था. ये कानून संसद में 1967 में पास हुआ था और उसके बाद से इसमें कई संशोधन हो चुके हैं. इसके तहत आरोपी को कम से कम 7 साल तक की कैद हो सकती है. आखिरी बार अगस्त 2019 में इस कानून में संशोधन हुआ था. संशोधन के मुताबिक, अब संगठन या संस्था के अलावा व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है.

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