ब्‍लॉगर

भारत को पहले रखने और विकास से जोड़ने की बात

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को हमेशा पहले रखने का मंत्र दिया है। भारत जोड़ो आंदोलन चलाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि इसे राजनीतिक आंदोलन मानने की जरूरत नहीं है बल्कि इसे जनता का आंदोलन बनाया जाना चाहिए। उन्होंने इसके लिए महात्मा गांधी के अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन का हवाला दिया है। समवेत और नवोन्मेषी विकास से भारत को जोड़ने की नसीहत दी है।

प्रधानमंत्री 79 बार रेडियो पर अपने मन की बात कर चुके हैं। भारत के अन्य किसी भी प्रधानमंत्री ने रेडियो पर इतनी बार अपने मन की बात नहीं की है। यह और बात है कि प्रधानमंत्री ने जब भी अपने मन की बात की है, उस पर राजनीति जरूर हुई है। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। राजनीतिक दलों का अक्सर यही आरोप होता है कि प्रधानमंत्री अपने मन की बात तो करते हैं लेकिन देश के मन की बात नहीं करते। हर बार ऐसे ही आरोप लगने लगें तो स्पष्टीकरण जरूरी हो जाता है।

यह अच्छा तो नहीं कि प्रधानमंत्री से हर बात पर सफाई की अपेक्षा की जाए लेकिन देश की राजनीति में इन दिनों हर बात पर सीधे प्रधानमंत्री से ही जवाब मांगने का चलन विकसित हो गया है। गोया, प्रधानमंत्री न हुआ, जवाब देने की मशीन हो गया। प्रधानमंत्री ने तो इस बार तो यह बताने की भी कोशिश की कि उनकी मन की बात निजी बिल्कुल भी नहीं है। उसमें देश भर के 35 साल से कम आयु-वय के 75 प्रतिशत युवाओं के सुझाव शामिल होते हैं। लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की कटाक्षपरक प्रतिक्रिया से ऐसा नहीं लगा कि उन्हें प्रधानमंत्री के इस दिलासे पर भरोसा भी है। राहुल गांधी को लगता है कि प्रधानमंत्री देश के मन की बात नहीं समझते अन्यथा देश में टीकाकरण के ऐसे हालात नहीं होते। जबकि प्रियंका वाड्रा का आरोप है कि प्रधानमंत्री खरबपति मित्रों के चश्मे से देखते और किसानों का अपमान करते हैं। किसी के मन को समझना कठिन है। राहुल और प्रियंका क्या चाहते हैं, क्या सोचते हैं, यह आजतक कांग्रेसी भी नहीं समझ पाए।

प्रधानमंत्री को बार-बार राष्ट्रप्रेम, भारत प्रथम या भारत सबसे पहले जैसी भावना के विकास की बात क्यों करनी पड़ रही है। भारत जोड़ो अभियान चलाने की बात क्यों करनी पड़ रही है? जाहिर सी बात है कि आजादी के बाद ही अगर नेहरू-गांधी परिवार ने देश प्रथम की भावना से काम किया होता तो चीन को देश का बहुत बड़ा भूभाग ऊसर- बंजर और बेकार कहकर सौंप न दिया गया होता। हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा न होता। सरदार बल्लभ भाई पटेल ने भौगोलिक स्तर पर तो देश को जोड़ दिया लेकिन जाति-भाषा, धर्म और संस्कृति के स्तर पर यह देश कभी एक हो नहीं पाया। यह काम करेगा तो कोई प्रधानमंत्री ही।

सच तो यह है कि अनेकता में एकता की बात करने वाले राजनीतिक दल आजादी के 74 साल बाद भी देश को उसकी एक अदद राष्ट्रभाषा तक नहीं दे पाए। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं अपने ही देश में कामकाज की भाषा नहीं बन पा रही हैं। बड़ी अदालतों में न तो हिंदी या अन्य भारतीय भषाओं में वाद स्वीकृत हो रहे, न उनमें बहस या जिरह हो रही और न ही फैसले आ रहे। फिर देश जुड़ेगा कैसे? यह अपने आप में बड़ा सवाल है। जुड़ने के लिए तो दिल का मिलना, मन का मिलना जरूरी है। मन तो तभी मिलता है, जब यह स्पष्ट हो कि सामने वाला क्या कह रहा है? यह एक राष्ट्र-एक भाषा होने पर ही संभव है। कम से कम देश में एक ऐसी भाषा तो हो जिसे सब समझ सकें। भारत जोड़ो अभियान का मतलब है- देश से खुद को जोड़ो। अपने को देश का समझो। देश को अपना समझो।जो भी काम करो, यह विचार कर करो कि क्या यह देश के व्यापक हित में है?

जिस तरह बूंद-बूंद से महासागर बनता है।उसी तरह व्यक्ति-व्यक्ति के मेल से देश बनता है। व्यक्ति को जोड़ने का काम भाषा करती है। हमारे सत्कर्म ही देश को विकासगामी बनाते हैं। देश को आगे ले जाना केवल सरकारों का काम नहीं है, यह हर व्यक्ति का नैतिक दायित्व है। हमने जिस देश का अन्न-जल ग्रहण किया है। यहां से वायु प्राप्त की है। जहां हम पले-बढ़े हैं। जहां से हमने ज्ञान पाया है, जहां के वस्त्र पहने हैं, उस देश के लिए हम क्या कुछ कर रहे हैं, यह तो कभी हम सोचते ही नहीं।

प्रधानमंत्री का इशारा है कि हम जो भी काम करते हैं, उसमें नवोन्मेष तलाशें। उसे गुणवत्तापूर्वक पूरी ईमानदारी से करें। कुछ चिंतकों का मानना है कि युवाओं को भाषण की नहीं, काम की जरूरत है। देश में काम की नहीं, काम करने वालों की कमी है। सरकारी विभागों में कार्यरत लोग कितना काम करते हैं और कैसे करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। कुछ राजनीतिक दल जनता को मुफ्त पानी,मुफ्त बिजली,मुफ्त राशन और मुफ्त सुविधाएं देने की वकालत करते हैं, लेकिन हमें सोचना होगा कि मुफ्त कुछ भी नहीं मिलता। उसकी कीमत हमें चुकानी पड़ती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की राह पर चलने और उनके सपनों का देश बनाने की बात कर रहे हैं। हमें सोचना होगा कि हमारा सपना आजादी के दीवानों के सपनों से कितना मेल खाता है और अगर नहीं तो क्यों? परस्पर स्नेह और सहकार इस देश की ताकत रही है।आज हम इससे वंचित क्यों हैं? प्रधानमंत्री अगर लखीमपुर के केले के बेकार तने के रेशे से फाइबर निर्माण की सराहना करते हैं तो मणिपुर में सेब की खेती की सराहना करना भी नहीं भूलते। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज और हर मंडल में सैनिक स्कूल खोलने की बात हो रही है। ऐसा हर प्रदेश में होना चाहिए। टीकाकरण और ऑक्सीजन पर राजनीति करने वाले दलों ने अगर वाकई चिकित्सा नेटवर्क मजबूत करने की दिशा में काम किया होता तो क्या देश के आज यही हालात होते।

प्रधानमंत्री अगर मन की बात भी करते हैं तो सोच-समझकर करते हैं इसलिए उनकी भावनाओं को समझा जाना चाहिए। विरोध करना आसान है लेकिन विरोध भी सोच-समझ कर हो तभी उसकी अहमियत है। होश में रहकर किया काम ही इस देश को आगे ले जा सकता है। होश और जोश दोनों की युति बनें तभी भ्रष्टाचारमुक्त सार्थक विकास हो सकता है। अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम देकर ,सबका साथ,सबका विकास की भावना को महत्व देकर ही हम एक दूसरे के दिलों में जगह बना सकते हैं। प्रधानमंत्री स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की बात कर रहे हैं। अच्छा होता कि राजनीतिक दल मन की बात के निहितार्थ समझ पाते।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)

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