- कई सीटों पर महिलाओं के मतदान का प्रतिशत भले ही अधिक रहा, मगर सभी 230 सीटों पर असर नहीं, कहीं धर्म और जाति, तो उम्मीदवारों के साथ स्थानीय विरोध ने भी दिखाया असर
इंदौर (Indore)। भाजपा की ताकत इस चुनाव में लाडली बहना रही और उसे भरोसा भी है कि सत्ता भी लाडली बहना दिलवा देगी। हालांकि कांग्रेस ने इसके जवाब में नारी शक्ति योजना घोषित की, लेकिन उससे बड़ा तोड़ पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वायदा रहा है। तमाम जानकारों का कहना है कि अभी हुए मतदान में लाडली बहना का तोड़ वरिष्ठ पेंशन योजना रही है, जिसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। वहीं अभी तक युवा मतदाताओं का पूरा रुझान भाजपा की ओर रहता आया। मगर इस बार युवा मतदाताओं ने भी टर्न लिया है। रोजगार से लेकर पटवारी भर्ती व अन्य परीक्षाओं में जो धांधलियां हुईं उसके चलते युवा वर्ग सरकार से नाराज भी रहा है। कांग्रेस का मानना है कि ओपीएस के साथ-साथ युवा वर्ग का वोट उसे अधिक मिला है, जिसके चलते लाडली बहना व अन्य भाजपाई योनजाओं का उतना असर चुनाव परिणामों पर नहीं दिखेगा और सरकार बनाने में भी आसानी रहेगी।
इस बार प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जहां लाडली बहना तो एक बड़ा फेक्टर रहा ही और भाजपा ने उसे गेम चेंजर भी माना और यहां तक कि चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में मोदीजी को भी इस योजना की तारीफ करना पड़ी। अभी पूरा मीडिया भी इसी विश्लेषण में जुटा है कि लाडली बहना वाकई कितनी असरदार रही। हालांकि कई सीटों पर उसका असर दिख भी रहा है। दूसरी तरफ चम्बल, ग्वालियर, भिंड-मुरैना जैसे क्षेत्रों में लाडली बहना या अन्य योजनाओं की बजाय जाति का आधार ही महत्वपूर्ण रहा और इस बार भी जानकारों का कहना है कि जाति का कार्ड ही सबसे अधिक चला है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने सरकारी कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल करने का चुनावी वायदा किया, जिससे 5 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी लाभान्वित होंगे और कई वरिष्ठ अधिकारियों का भी मानना है कि चूंकि इस पेंशन से पूरे परिवार पर असर पड़ता है।
लिहाजा एक कर्मचारी के पीछे परिवार से जुड़े लोग यानी उतने ही वोटर भी जुड़ते हैं। लिहाजा लाडली बहना का जो फायदा भाजपा को मिला उसकी प्रतिपूर्ति कांग्रेस की ओर से इस ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस के जरिए हो गई है। यानी लाडली बहना का घाटा पेंशन स्कीम ने पूरा कर दिया है। इसके अलावा इस बार कांग्रेस को युवा मतदाताओं से भी भारी उम्मीद है। पूर्व के चुनावों में, खासकर मोदी जी के कारण अधिकांश युवा वर्ग भाजपा से जुड़ गया था, लेकिन इस चुनाव में युवा वर्ग का भी मौजूदा सत्ता के प्रति मोह भंग हुआ। खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं में लगातार धांधली, पेपर आउट होना, विज्ञापनों और परीक्षाओं के बावजूद परिणामों की घोषणाएं ना होने से लेकर पटवारी भर्ती परीक्षा घोटाला और अन्य इस तरह की घटनाएं जो प्रदेश में हुई उससे भी युवा वर्ग नाराज हुआ और उसका वोट भाजपा की बजाय टर्न होकर कांग्रेस के पक्ष में जाना बताया जा रहा है। अब हालांकि ये तो 3 दिसम्बर को ही पता लगेगा कि लाडली बहना गेम चेंजर साबित हुई या उसका तोड़ ओल्ड पेंशन स्कीम के साथ युवाओं का यूटर्न लेना बना। अभी प्रदेशभर में पिछले चुनाव की तुलना में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। मगर यह भी देखने वाली बात है कि जहां कुछ सीटों पर महिला मतदान का प्रतिशत बढ़ा, तो उससे अधिक सीटों पर पुरुष मतदान का प्रतिशत भी बढ़ा है। इसके अलावा 50 से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां पर इस बार मतदान के प्रतिशत में कुछ कमी भी आई है और इनमें कई मंत्रियों के साथ-साथ अधिकांश भाजपा विधायकों के क्षेत्र बताए जा रहे हैं। दरअसल इस बार भाजपा से ज्यादा नाराजगी उसके विधायकों-मंत्रियों के प्रति जनता में अधिक रही। वहीं कार्यकर्ताओं में भी आक्रोश देखा गया। यही कारण है कि टिकट वितरण से लेकर मतदान तक कांग्रेस की तुलना में भाजपाई खेमे में असंतोष अधिक नजर आता रहा।
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