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जानें कितनी तेजी से बढ़ रही है देश की आबादी? कितना बड़ा है जनसंख्या का ‘धर्म’ संकट

नई दिल्ली: बढ़ती आबादी पर चिंता करना और उस पर राजनीति करना, दो अलग बातें हैं. लेकिन, भारत जैसे देश में बढ़ती आबादी पर चिंता भी बिना राजनीतिक मुद्दा बने नहीं रहती. विश्व जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि किसी एक वर्ग की आबादी बढ़ने से अराजकता फैलने लगती है. वहीं केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत है, ताकि 8-8, 10-10 बच्चे पैदा करने वाली विकृत मानसिकता पर रोक लगे.

भारत में जनसंख्या नियंत्रण पर कानून की मांग होती रही है. 2019 में 15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जनसंख्या नियंत्रण की बात कही थी. जनसंख्या नियंत्रण पर ये बहस ऐसे समय शुरू हुई है, जब संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि अगले साल तक भारत सबसे ज्यादा आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा.

अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 18वीं सदी में आबादी 12 करोड़ के आसपास रही होगी. 1820 में भारत की आबादी 13.40 करोड़ के आसपास थी. 19वीं सदी तक भारत की आबादी ने 23 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया. 2001 में भारत की आबादी 100 करोड़ के पार चली गई. अभी भारत की आबादी 140 करोड़ के आसपास है. 2050 तक भारत की आबादी 166 करोड़ के आसपास होगी.


किस धर्म की आबादी कितनी तेजी से बढ़ रही?

  • 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी 121 करोड़ से ज्यादा है. इसमें 96.63 करोड़ हिंदू और 17.22 करोड़ मुस्लिम हैं. भारत की कुल आबादी में 79.8% हिंदू और 14.2% मुस्लिम हैं. इनके बाद ईसाई 2.78 करोड़ (2.3%) और सिख 2.08 करोड़ (1.7%) हैं. बाकी बौद्ध और जैन धर्म को मानने वालों की आबादी 1% से भी कम है.
  • 2001 की तुलना में 2011 में भारत की आबादी 17.7% तक बढ़ गई थी. इस दौरान मुस्लिमों की आबादी सबसे ज्यादा करीब 25% तक बढ़ी थी. जबकि, हिंदू 17% से कम बढ़े थे. इसी तरह ईसाइयों की आबादी 15.5%, सिख 8.4%, बौद्ध 6.1% और जैन 5.4% बढ़े थे.
  • 2001 के मुकाबले 2011 में आबादी बढ़ने की ग्रोथ रेट में काफी गिरावट आई थी. 1991 से 2001 के बीच जहां भारत की आबादी 22% से ज्यादा बढ़ी थी, तो वहीं 2001 से 2011 के बीच इसमें 18% से भी कम बढ़ोतरी हुई.
  • इसी तरह, 1991 से 2001 के बीच हिंदुओं की आबादी 20% बढ़ी थी. इसी दौरान मुस्लिमों की आबादी 36% से ज्यादा बढ़ गई थी. ईसाइयों की 23% से ज्यादा, सिखों की 18% से ज्यादा, बौद्धों की 24% और जैन धर्म को मानने वालों की 26% आबादी बढ़ी थी.

फैमिली प्लानिंग में कौन आगे?

  • आबादी बढ़ने का सीधा-सीधा संबंध फर्टिलिटी रेट से होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, टोटल फर्टिलिटी रेट यानी, एक महिला अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म दे रही है या जन्म दे सकती है.
  • केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 30 साल में हर समुदाय में फर्टिलिटी कम हुई है. हालांकि, फैमिली प्लानिंग में मुस्लिम महिलाएं, हिंदू महिलाओं से थोड़ा आगे हैं. 1992-93 में पहला नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) हुआ था. उस समय हिंदू महिलाओं में फर्टिलिटी रेट 3.3, जबकि मुस्लिम महिलाओं में 4.4 था. यानी, उस समय एक हिंदू महिला अपने जीवनकाल में औसतन 3 बच्चे पैदा कर रही थी, जबकि मुस्लिम महिलाओं में ये दर 4 से ज्यादा थी.
  • पिछले साल नवंबर में NFHS 5 की रिपोर्ट आई है. इसके मुताबिक, अब हिंदू महिलाओं में फर्टिलिटी रेट 1.9 और मुस्लिम महिलाओं में 2.3 है. अभी भी हिंदू महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाएं ज्यादा बच्चे पैदा कर रही हैं. लेकिन 30 साल में मुस्लिम महिलाओं की फर्टिलिटी रेट में 47% से ज्यादा कमी आई है, जबकि हिंदू महिलाओं में 42%.

2050 तक सबसे ज्यादा मुस्लिम भारत में होंगे

  • 2015 में अमेरिकी रिसर्च फर्म Pew Research की एक स्टडी आई थी. इस स्टडी में अनुमान लगाया गया था कि 2050 तक दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी भारत में होगी. इस स्टडी में अनुमान लगाया गया था कि 2050 तक भारत में हिंदू आबादी 1.3 अरब होगी, जबकि 31 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम आबादी होगी. दुनिया में उस समय तक जितनी मुस्लिम आबादी होगी, उसमें से 11% अकेले भारत में होगी.
  • अभी दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है. लेकिन 2050 तक भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी होगी. 2050 तक भारत की आबादी 166 करोड़ के आसपास होने का अनुमान है. अगर Pew Research का अनुमान सही बैठा तो उस समय तक भारत में 78% हिंदू और 18% मुस्लिम होंगे.

क्या भारत बढ़ती आबादी का बोझ झेल पाएगा? क्योंकि…

खाने की कमी अभी भीः फूड सिक्योरिटी पर आई संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत में अभी भी 97 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जो हेल्दी डाइट नहीं ले रहे हैं. यानी, भारत की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी अभी भी हेल्दी डाइट से दूर है. इसी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में अभी भी 22 करोड़ से ज्यादा लोग कुपोषित हैं. यानी, दुनियाभर में जितने कुपोषित हैं, उनमें से 32% अकेले भारतीय हैं.

पीने को पानी नहीं 2018 में आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि 60 करोड़ भारतीय पानी के गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं. यानी, इनके पास पीने का पर्याप्त पानी तक नहीं है. वॉटर क्वालिटी इंडेक्स में 122 देशों की लिस्ट में भारत 120वें नंबर पर है. नीति आयोग के मुताबिक, 2030 तक पानी की आपूर्ति से दोगुनी ज्यादा मांग होगी, जिस कारण लाखों लोग गंभीर पानी के संकट से जूझेंगे. इतना ही नहीं, 2030 तक 40% भारतीयों के पास पीने का पानी तक नहीं होगा.

खेती की जमीन भी कम पड़ेगीः दुनिया का सिर्फ 2.4% जमीनी हिस्सा भारत के पास है. लेकिन यहां की लगभग 60 फीसदी जमीन खेती के लायक है. हालांकि, आबादी बढ़ने से हर व्यक्ति के पास खेती की जमीन कम पड़ती जा रही है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 2001 में हर भारतीय के हिस्से में 0.15 हेक्टेयर खेती की जमीन थी, जो 2018 में घटकर 0.12 हेक्टेयर हो गई.

रोजगार भी नहीं रहेगा इतनाः संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 2050 तक विकसित देशों में हर साल 1.5 करोड़ युवा लेबर फोर्स से जुड़ जाएंगे. यानी, हर दिन 33 हजार लोग ऐसे होंगे, जिन्हें नौकरी की जरूरत होगी. पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, भारत में हर साल युवाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट बढ़ रहा है. 2017-18 में युवाओं का पार्टिसिपेशन रेट 38.2% था, जो 2020-21 में बढ़कर 41.4% पर आ गया. इस दौरान बेरोजगारी दर में भी कमी आई है. 2017-18 में युवाओं में बेरोजगारी दर 17.8% थी, जो 2020-21 में घटकर 12.9% से हो गई. हालांकि, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक, 45 लाख भारतीय ऐसे भी हैं, जिन्होंने अब काम की तलाश करना छोड़ दिया है.

अस्पतालों में जगह नहीं होगीः नवंबर 2021 तक भारत में 13 लाख से ज्यादा एलोपैथिक और 5.65 लाख आयुर्वेदिक डॉक्टर थे. इस हिसाब से हर 834 लोगों पर एक डॉक्टर था. जबकि, 2011 में 608 लोगों पर एक डॉक्टर था. यानी, आबादी बढ़ते ही डॉक्टरों पर बोझ भी बढ़ गया. 2019-20 के आर्थिक सर्वे में केंद्र सरकार ने माना था कि अगर आबादी ऐसी ही बढ़ती रही, तो आने वाले समय में मरीजों के लिए अस्पताल में बेड कम हो जाएंगे.

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