नई दिल्ली । नेता प्रतिपक्ष आतिशी (Leader of Opposition Atishi) ने विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को पत्र लिखकर (By writing a letter to Assembly Speaker Vijendra Gupta) गहरी नाराजगी जताई (Expressed her deep Displeasure) । उन्होंने आरोप लगाया कि सत्र के दौरान विपक्ष के साथ अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक व्यवहार किया गया, जो संसदीय परंपराओं और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है।
आतिशी ने पत्र में उल्लेख किया कि 25 फरवरी को उपराज्यपाल के अभिभाषण के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के विधायकों ने नारेबाजी की थी। जहां विपक्ष ने ‘जय भीम’ के नारे लगाए, वहीं सत्ता पक्ष ने ‘मोदी, मोदी’ के नारे लगाए, लेकिन कार्रवाई केवल विपक्षी विधायकों पर हुई और सभी को सदन से बाहर कर दिया गया, जबकि सत्ता पक्ष के किसी भी विधायक पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब विपक्ष के विधायकों को निलंबित किया गया, तो उन्हें विधानसभा परिसर में प्रवेश करने से भी रोक दिया गया, जो संसदीय नियमों के खिलाफ है। आतिशी ने कहा कि संसद और विधानसभा में विपक्षी दलों को लॉन में शांतिपूर्ण विरोध करने की अनुमति दी जाती रही है, लेकिन इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि पूरे परिसर से विपक्षी विधायकों को बाहर कर दिया गया।
पत्र में उन्होंने विधानसभा में बोलने के समय के असमान बंटवारे पर भी सवाल उठाए। 3 मार्च को सीएजी रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष को 190 मिनट दिए गए, जबकि विपक्ष को सिर्फ 33 मिनट मिले। विपक्षी विधायकों को बोलते समय बार-बार टोका गया, जबकि सत्ता पक्ष के विधायकों को बिना किसी बाधा के लंबा समय दिया गया।
आतिशी ने स्पीकर विजेंद्र गुप्ता पर आरोप लगाया कि उन्होंने सत्ता पक्ष के विधायकों के लिए अलग और विपक्ष के लिए अलग मापदंड अपनाए। सत्ता पक्ष के विधायकों को अनुचित भाषा इस्तेमाल करने की छूट दी गई, जबकि विपक्षी विधायकों की आवाज दबाने के लिए माइक तक बंद कर दिया गया।
आतिशी ने पत्र में तीन मुख्य मांगें रखीं हैं, जिनके मुताबिक निलंबित विधायकों को विधानसभा परिसर में प्रवेश की अनुमति दी जाए और उन्हें शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार मिले। सदन में बोलने का समय विधायकों की संख्या के अनुपात में तय किया जाए और सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों के लिए समान नियम लागू किए जाएं और निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। उन्होंने स्पीकर से आग्रह किया कि आगामी बजट सत्र में निष्पक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि सदन की गरिमा बनी रहे।
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