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फैक्ट्री में काम करते थे लियोनेल मेसी के पिता, गंभीर बीमारी से जूझ रहा लड़का ऐसे बना दिग्‍गज फुटबॉलर

नई दिल्ली। लियोनेल मेसी (Lionel Messi) का सबसे बड़ा सपना पूरा हो गया है. फीफा वर्ल्ड कप 2022 के फाइनल में फ्रांस को हराकर अर्जेंटीना (Argentina) ने तीसरी बार वर्ल्ड कप जीत लिया है. इस चमत्कार के लेखक लियोनेल मेसी हैं, जिन्होंने अपने दमपर टीम को चैम्पियन बनाया और 36 साल के बाद अर्जेंटीना का सपना पूरा कर दिया. साउथ अमेरिका (South America) के सबसे दक्षिणी हिस्से में करीब 5 करोड़ की आबादी वाला देश अर्जेंटीना आज खुशी से झूम रहा है. दुनिया का सबसे ज्यादा देखे जाने वाला खेल फुटबॉल, जिसका वर्ल्ड कप (world cup) जीत अर्जेंटीना ने इतिहास रच दिया है. अर्जेंटीना का हर नागरिक एक शख्स के साथ खड़ा है, जिसने उनके सपने को फिर से जिया है, जो दुनिया में उस देश की सबसे बड़ी पहचान है जिसने एक बिखरे हुए देश को नई उम्मीद दी. नाम है लियोनेल मेसी.

अर्जेंटीना के इतिहास (History) को उठाकर देखेंगे तो यह देश हमेशा ही राजनीतिक और आर्थिक मुश्किलों से जूझता रहा है. साल 1983 में अर्जेंटीना में सही तरह से लोकतंत्र आया, उससे पहले करीब 6 बार ऐसा हुआ कि सरकार बनी, लेकिन सेना ने तख्तापलट कर दिया और सत्ता को अपने कब्जे में कर लिया. 1983 में अर्जेंटीना में लोकतंत्र आया, जो बरकरार रहा.

1983 के बाद जब अर्जेंटीना पुराने जख्मों को भुलाकर आगे बढ़ रहा था, इसी के कुछ वक्त बाद 24 जून 1987 को यहां एक बच्चे का जन्म हुआ. रोजारियो के मिडिल क्लास परिवार में जन्मे Lionel Andrés Messi यानी लियोनेल मेसी. जिन्हें दुनिया मौजूदा वक्त का सबसे बेहतरीन फुटबॉलर करार देती है. मिडिल क्लास परिवार से निकले मेसी ने कैसे फुटबॉल की दुनिया पर अपना सिक्का जमाया इसकी भी अपनी एक पूरी कहानी है, इस कहानी में खोने का वक्त आ गया है…


लियोनेल मेसी के पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे, जबकि मां सफाई का काम करती थीं. हालांकि, फुटबॉल का माहौल घर में था क्योंकि पिता भी एक क्लब को कोचिंग देते थे. ऐसे में लियोनेल मेसी खुद 5 साल की उम्र में एक क्लब के साथ जुड़ गए, जहां उन्होंने इस खेल के बेसिक्स को सीखा. 8 साल की उम्र में मेसी ने अपना क्लब चेंज किया और न्यूवैल ओल्ड बॉयज़ क्लब से जुड़े. लेकिन कुछ वक्त बाद एक ऐसी घटना घटी, जिससे हर कोई हैरान रह गया.

11 साल की उम्र में लियोनेल मेसी को एक बीमारी का पता चला, जिसका नाम ग्रोथ हार्मोन डेफिसिएंसी था. इस बीमारी का असर अगर मेसी पर होता तो शायद दुनिया एक शानदार फुटबॉलर से मिल नहीं पाती. इस बीमारी में किसी भी शख्स की प्रगति रुक जाती है, 11 साल की उम्र में अगर मेसी इसकी चपेट में आते तो वह बौने रह जाते. तब परिवार के पास इतना पैसा भी नहीं था कि इसका खर्चा उठा सके.

इस बीच लियोनेल मेसी की बतौर फुटबॉलर ग्रोथ जारी थी, रिवर प्लेट ने मेसी को अपने साथ रखने की बात कही. लेकिन वह मेसी की दवाइयों का खर्च नहीं उठा सकता था, इस बीच मेसी की किस्मत बदली. फुटबॉल क्लब बार्सिलोना उस वक्त छोटे बच्चों पर नज़र रख रहा था, जो फुटबॉल में कमाल कर रहे थे. टैलेंट हंट के तहत छोटे शहरों, स्कूल, कॉलेज और अलग-अलग क्लब में ऐसा किया जाता है.

बार्सिलोना फुटबॉल क्लब के स्पोर्टिंग डायरेक्टर कार्ल्स रैज़ैक को लियोनेल मेसी के बारे में पता लगा, क्लब ने उन्हें साइन कर लिया. साथ ही बीमारी की दवाइयों और इलाज का पूरा खर्चा देने की बात कही. बस शर्त इतनी थी कि मेसी को अर्जेंटीना छोड़ बार्सिलोना शिफ्ट होना था. परिवार इसपर राजी हो गया है और इस तरह लियोनेल मेसी के प्रोफेशनल फुटबॉल करियर की शुरुआत हुई.

2001-2002 का वक्त लियोनेल मेसी को यूरोप में सेटल होने, क्लब ट्रांसफर की औपचारिकताएं पूरी करने में ही निकल गया. लेकिन वह बार्सिलोना-बी टीम में चुने गए, इस दौरान उन्होंने लगभग हर मैच में एक ना एक गोल तो किया ही. ऐसे में सीजन में उन्होंने 30 मैच में कुल 35 गोल कर दिए. 14 साल की उम्र में लियोनेल मेसी इस टीम का हिस्सा रहे और आगे बढ़ते गए. मेसी छोटी लीग में नाम कमा रहे थे और बेहतर होते जा रहे थे.

करीब 17 साल की उम्र में लियोनेल मेसी ने 2004-05 में बार्सिलोना क्लब के लिए अपना डेब्यू कर दिया. वह तीसरे सबसे युवा खिलाड़ी बने, जिन्होंने बार्सिलोना के लिए फुटबॉल खेला. 1 मई 2005 को लियोनेल मेसी ने सीनियर टीम के लिए अपना पहला गोल दागा, 24 जून को लियोनेल मेसी ने बतौर सीनियर प्लेयर बार्सिलोना के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट साइन किया और उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है.

मेसी है तो मुमकिन है…
रविवार को फ्रांस को हराकर अर्जेंटीना के लियोनेल मेसी का नाम पेले और डिएगो माराडोना (diego maradona) जैसे महानतम खिलाड़ियों की सूची में दर्ज हो गया. इस बहस पर भी विराम लग जाएगा कि माराडोना और मेसी में से कौन महानतम है. देश के लिए खिताब नहीं जीत पाने के मेसी के हर घाव पर भी मरहम लग जाएगा.

सात बार बलोन डिओर, रिकॉर्ड छह बार यूरोपीय गोल्डन शूज, बार्सिलोना के साथ रिकॉर्ड 35 खिताब, ला लिगा में 474 गोल, एक क्लब (बार्सिलोना) के लिए सर्वाधिक 672 गोल कर चुके मेसी को विश्व कप नहीं जीत पाने की टीस हमेशा से रही है. उन्हें पता है कि यह उनके पास आखिरी मौका है और इसे यादगार बनाने में वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.

अर्जेंटीना ने जब आखिरी बार 1986 में विश्व कप जीता तब माराडोना देश के लिए खुदा बन गए. उनके आसपास पहुंचने वाले सिर्फ मेसी थे, लेकिन विश्व कप नहीं जीत पाने से उनकी महानता पर उंगलियां गाहे बगाहे उठती रहीं. उंगली तब भी उठी जब 2014 में फाइनल में जर्मनी ने अर्जेंटीना को एक गोल से हरा दिया था. सवाल तब भी उठे जब इस विश्व कप के पहले ही मैच में सऊदी अरब ने मेसी की टीम पर अप्रत्याशित जीत दर्ज की.

उस हार ने मानो अर्जेंटीना और मेसी के लिए किसी संजीवनी का काम किया. मैच दर मैच दोनों के प्रदर्शन में निखार आता गया और पिछली उपविजेता क्रोएशिया को एकतरफा सेमीमुकाबले में हराकर वह फुटबॉल के सबसे बड़े समर के फाइनल में पहुंच गए. इस जीत के सूत्रधार भी मेसी ही रहे, जिन्होंने 34वें मिनट में पेनल्टी पर पहला गोल दागा और फिर जूलियन अल्वारेज के दोनों गोल में सूत्रधार की भूमिका निभाई. आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहे अपने देशवासियों के लिए मसीहा बन गए मेसी और पूरे अर्जेंटीना को जीत के जश्न में सराबोर कर दिया.

वर्ल्ड कप और मेसी…
मेसी का विश्व कप का सफर 2006 में शुरू हुआ और अब तक वह सबसे ज्यादा 25 मैच खेल चुके हैं. विश्व कप के इतिहास में अर्जेंटीना के लिए सर्वाधिक 11 गोल कर चुके हैं. उम्र को धता बताकर इस विश्व कप में चार गोल, दो में सूत्रधार की भूमिका निभाने के बाद तीन ‘मोस्ट वैल्यूएबल प्लेयर’ के पुरस्कार जीत चुके हैं.

रोसारियो में 1987 में एक फुटबॉल प्रेमी परिवार में जन्मे मेसी ने पहली बार घर के आंगन में अपने भाइयों के साथ जब फुटबॉल खेला तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन दुनिया के महानतम खिलाड़ियों में उनका नाम शुमार होगा. बार्सिलोना के लिए लगभग सारे खिताब जीत चुके पेरिस सेंट जर्मेन के इस स्टार स्ट्राइकर ने 2004 में बार्सिलोना के साथ अपने क्लब करियर की शुरुआत 17 वर्ष की उम्र में की. उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में पहला बलोन डिओर जीता. अगस्त 2021 में बार्सिलोना से विदा लेने से पहले वह क्लब फुटबॉल के लगभग तमाम रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके थे.

मेसी ने विश्व कप में पदार्पण 2006 में जर्मनी में सर्बिया और मोंटेनीग्रो के खिलाफ ग्रुप मैच में किया, जिसे देखने के लिए माराडोना भी मैदान में मौजूद थे. 18 वर्ष के मेस्सी 75वें मिनट में सब्स्टीट्यूट के तौर पर मैदान पर उतरे थे.

बीजिंग ओलंपिक 2008 में अर्जेंटीना ने फुटबॉल का स्वर्ण पदक जीता तो 2010 विश्व कप में मेसी से अपेक्षाएं बढ़ गईं. अर्जेंटीना को क्वार्टर फाइनल में जर्मनी ने हराया और पांच मैचों में मेसी एक भी गोल नहीं कर सके. चार साल बाद ब्राजील में अकेले दम पर टीम को फाइनल में ले जाने वाले मेसी अपने आंसू नहीं रोक सके जब उनकी टीम एक गोल से हार गई.

इसके बाद 2018 में रूस में पहले नॉकआउट मैच में अर्जेंटीना को फ्रांस ने 4-3 से हरा दिया और तीन में से दो गोल मेसी के नाम थे. पिछले चार साल में इस महान खिलाड़ी ने एक ही सपना देखा- विश्व कप जीतने का. क्वार्टर फाइनल में मिली जीत के बाद खुद मेसी ने कहा था, ‘डिएगो आसमान से हमें देख रहे हैं और विश्व कप जीतने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उम्मीद है कि आखिरी मैच तक वह ऐसा ही करते रहेंगे.’

लियोनेल मेसी ने अपना और अपने मुल्क का सबसे बड़ा सपना पूरा कर दिया है. अर्जेंटीना खुशी में झूम रहा है, भारत में भी लियोनेल मेसी के करोड़ों फैन्स झूम रहे हैं. लियोनेल मेसी अब वर्ल्ड चैम्पियन हैं.

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