- पिछले विधानसभा चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा सीटें जीतवाकर सरकार बनाने में निभाई थी मुख्य भूमिका, इस बार कई समर्थक हारे, मगर कांग्रेस में रहते तो ज्यादा फायदा करवाते और भविष्य के भी नेता साबित होते
इन्दौर (Indore)। पिछले विधानसभा चुनाव में किसानों की नाराजगी के साथ कुछ जन आक्रोश भी था। वहीं कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी पूरा साथ मिला। नतीजे में दो दर्जन से अधिक सिंधिया के प्रभाव वाली सीटे कांग्रेस ने जीती थी और फिर तख्ता पलट के बाद ये सारे जीते हुए विधायक ही भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि इस बार सिंधिया के भी इनमें से कई समर्थक चुनाव हार गए मगर सबसे ज्यादा नुकसान दिग्गी को हुआ। और उनके सगे भाई सहित कई करीबी समर्थकों को हार का मुंह का देखना पडा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच पुरानी लड़ाई चलती रही मगर कांग्रेस को इसका फायदा इसलिए मिलता रहा कि इन दोनों दिग्गजों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार हर चुनाव में जीतते रहे। मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ। और सिंधिया ने भी दिग्विजय सिंह के करीबी समर्थकों को हराने में अपनी ताकत झौंकी। नतीजतन दिग्गी के भाई लक्षमण सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह, केपी सिंह, प्रियवृत सिंह सहित अन्य को हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं दिग्गी पुत्र जयवर्धन सिंह भी बड़ी मुश्किल से अपना चुनाव जीत सके।
हालांकि सिंधिया के भी कई समर्थकों को चुनाव हारना पड़ा, जिसमें माया सिंह, सुरेश धाकड़, महेन्द्रसिंह सिसौदिया, रघु राज कंसाना, इमरती देवी, कमलेश जाटव, जजपाल जज्जी व अन्य शामिल रहे। बावजूद इसके भाजपा को सिंधिया के होने का लाभ मिला और ग्वालियर चंबल, शिवपुरी सहित अन्य क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए प्रचार के चलते कई सीटें भी मिली और कांग्रेस को ये सीटें हारना पड़ी। कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों चूकि 75 साल की उम्र पार कर चुके है और एक तरह से यह विधानसभा चुनाव उनका आखिरी था।
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