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मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब, तमिलनाडु को 5600 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश

 

नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में पारित एक आदेश में केंद्र सरकार (central government) से जनसंख्या के कारण राज्यों की स्थिति में होने वाले भेदभाव को लेकर जवाब तलब किया है।

हाईकोर्ट (High Court) ने जनसंख्या नियंत्रण को बेहतरीन तरीके लागू करने वाले तमिलनाडु (Tamilnadu) और आंध्र प्रदेश (Andra Pradesh) जैसे राज्यों के मुकाबले आबादी विस्फोट से गुजर रहे उत्तर प्रदेश (UttarPradesh), बिहार (Bihar), राजस्थान (rajasthan) और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) जैसे राज्यों को संसद में ज्यादा सीटें मिलने को लेकर स्पष्टीकरण तलब किया है। साथ ही तमिलनाडु को 5600 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश केंद्र सरकार को दिया है।

जस्टिस एन. किरुबकरन और जस्टिस बी. पुगालेंधी की पीठ ने केंद्र सरकार से यह जवाब 17 अगस्त को पारित आदेश में मांगा। यह जस्टिस किरुबकरन का अपने पद से सेवानिवृत्त होने से पहले आखिरी आदेश था।

पीठ ने कहा, जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को लागू करने में विफल रहे हैं, वे आबादी काबू में करने वाले राज्यों खासतौर पर दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश से संसद में उन राज्यों से ज्यादा प्रतिनिधित्व पाने में सफल हो रहे हैं।

आदेश में कहा गया कि पिछले 14 आम चुनावों में तमिलनाडु को कम सीटों पर प्रतिनिधित्व पाने के लिए मुआवजे मिलना चाहिए। पीठ ने अपने अनुमान के आधार पर यह मुआवजा 5600 करोड़ रुपये के बराबर तय किया है और इसका भुगतान केंद्र सरकार को करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने कहा कि जनसंख्या के आधार पर राजनीतिक प्रतिनिधियों की संख्या घटने में राज्य का कोई दोष नहीं था। इसलिए लोकसभा में सीट कम होने के लिए राज्यसभा में उसकी हिस्सेदारी बढ़ाया जाना चाहिए। यह तमिलनाडु के सफल जन्म दर नियंत्रण कार्यक्त्रस्म के लिए इनाम भी होगा।


पीठ ने यह आदेश अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित तेनकासी संसदीय क्षेत्र को आरक्षण से बाहर करने की गुहार वाली याचिका पर सुनवाई में दिया। पीठ ने यह याचिका खारिज करते हुए आरक्षण के 2026 में अगले परिसीमन तक बरकरार रहने का आदेश जारी कर दिया।

अटल सरकार का हवाला देकर कहा हर वोट है कीमती
हाईकोर्ट ने कहा कि 1962 तक तमिलनाडु के लोकसभा में 41 प्रतिनिधि होते थे। राज्य की तरफ से अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण किए जाने के कारण लोकसभा क्षेत्रों की संख्या बाद में घटकर 39 रह गई। पीठ ने 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हवाला दिया और कहा कि यह महज दो सीट की बात नहीं है, बल्कि हर वोट मायने रखता है।

क्या कहा अदालत ने
जनसंख्या नियंत्रण संसद में राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधियों की संख्या तय करने का आधार नहीं हो सकता। राज्य पुनर्गठन अधिनियम-1956 के हिसाब से राज्य भाषाई आधार पर पुनर्गठित होते रहे हैं। भारत एक बहुधर्मी, बहुजातीय और बहुभाषीय देश है। इसलिए शक्ति वितरण समान होना चाहिए और शक्ति संतुलन बना रहना चाहिए।
– मद्रास हाईकोर्ट

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