प्रयागराज। प्रयागराज के महाकुंभ (Maha Kumbh 2025) में पुरुष नागाओं (Male Nagas) के साथ महिला साध्वियों का भी विजया संस्कार (Vijaya Sanskar) करा कर उनको संन्यासी जीवन की दीक्षा दी गई। रविवार को जूना अखाड़े में सौ से भी ज्यादा महिलाओं ने विजया संस्कार में हिस्सा लेकर पूरे विधि विधान के साथ अपने गुरु से संन्यास की दीक्षा ली। दीक्षा लेने वाली सभी महिलाओं ने अपने परिवार सहित खुद का भी पिण्डान किया यानि आज से उनका सामाजिक जीवन समाप्त हो गया और अब जो भी जीवन है वो सिर्फ प्रभु के लिए रहेगा।
विजया संस्कार में पहले सभी साध्वी बनने वाली महिलाओं को एक कतार में बैठा कर उनको चंदन लगाया गया। इसके बाद सभी लोगों ने गुरु द्वारा बताये गए मंत्रो का जाप किया फिर महिला सन्यासियों को गंगा में डुबकी लगवा कर शुद्धि की गई और गुरु ने संन्यास की दीक्षा दी। इस दौरान अखाड़े की महिला कोतवाल उन पर पूरी नर रख रही थी और सभी संस्कार ठीक से किया जा रहा या नहीं इसका भी वो ध्यान रख रही थीं।
निरंजनी अखाड़े ने दी नागा बनने की दीक्षा
निरंजनी अखाड़े ने सैकड़ों लोगों को नागा बनने की गुरु दीक्षा दी। निरंजनी अखाड़े के महंत और महामंडलेश्वर की देख-रेख में गंगा किनारे विजया संस्कार किया गया। सबसे पहले नागा संन्यासी बनने वाले लोगों को कतार में बैठा कर उनकी शुद्धि कराई गई फिर उनके माथे पर चंदन लगा कर उनको जनेयु धारण करा कर गंगा स्नान कराया गया। इसके बाद सभी से उनके परिवार और उनका खुद का पिण्डादान करा कर उनको गुरु ने सन्यास की दीक्षा दी। अब से ये सभी लोग नागा संन्यासी कहलायेंगे।
परिवार समाज सबका त्याग जरूरी
निरंजनी अखाड़े के महंत और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी रविंद्र गिरी ने बताया की नागा बनने की प्रक्रिया इतनी कठिन है कि उनको परिवार और समाज सब का त्याग करके इस रास्ते पर आना होता है। इसीलिए इन्हें शिव की सेना कहा जाता है।
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नागा साधु की दीक्षा से पहले होती है जांच-पड़ताल
किसी भी व्यक्ति को नागा साधु या साध्वी की दीक्षा से देने पहले अखाड़े के पदाधिकरी उस शख्स की बारीकी से पड़ताल करते है। इन दौरान यह पता किया जाता है कि कोई व्यक्ति आखिर संन्यास के रास्ते पर क्यों चलना चाहता है। यहां तक की उसके परिवार और उसके अन्य कामों की भी जानकारी लेकर पूरी जांच पड़ताल की जाती है। इसके बाद ही उन्हें सन्यासी जीवन की दीक्षा दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में काफी दिन लगते हैं फिर कुम्भ या अर्ध कुम्भ में उनके दीक्षा देकर उन्हें साधु बनाया जाता है।
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