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    एक तीर से कई निशाने साधने जा रहे शरद पवार, चला “बाला साहेब” जैसा दांव

  • May 03, 2023

    मुंबई (Mumbai) । महाराष्ट्र (Maharashtra) के दिग्गज नेता शरद पवार (Sharad Pawar) ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा (Resignation) दे दिया है, जिसका असर महाविकास अघाड़ी पर पड़ सकता है. पवार के इस्तीफे के ऐलान के बाद कई पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं ने रोते-बिलखते पवार से इस्तीफा वापस लेने की अपील की, उसके बाद शरद पवार ने अपने इस्तीफे पर विचार करने के लिए दो तीन दिन का समय मांगा है. शाम होते होते सुप्रिया सुले को NCP की कमान सौंपने की खबरें आईं. जानकारों का कहना है कि शरद पवार ने ये दांव बहुत सोच समझकर चला है, जिसके जरिए वो एक तीर से कई निशाने साधने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि उन्होंने बाला साहेब ठाकरे जैसा दांव चला है.

    ये तो सब जानते हैं कि शरद पवार को क्रिकेट बहुत पसंद है. लेकिन कम लोगों को पता है शरद पवार के ससुर एक लेग स्पिनर थे. मगर उन्हें इतनी शौहरत नहीं मिली. लेकिन शरद पवार की सियासी गुगली बहुत ज्यादा मशहूर है. इसीलिए जब शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो हर किसी ने यही कहा कि ये शरद पवार का दांव हो. आखिर पवार ने इस्तीफा क्यों दिया? इसकी इनसाइड स्टोरी हमने जुटाने की कोशिश की है, जिसे देखकर आप यही कहेंगे, पिक्चर तो अभी बाकी है.


    PM मोदी ने कहा था- सियासी मौसम वैज्ञानिक हैं शरद…
    तारीख-10 दिसंबर 2015. मौका था नई दिल्ली में शरद पवार की आत्मकथा के विमोचन का, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शरद पवार की खूब तारीफ की थी. पीएम ने कहा था- ‘जब हम छोटे थे तो सुना करते थे. पूरे शब्द तो याद नहीं हैं, पर सुनते थे कि अमल करो, ऐसा मन में जहां से गुजरी तुम्हारी नजरें, वहां से तुम्हें सलाम आए. आज शरद राव जी का जीवन देखते हुए लगता है कि जहां भी उनकी नजर गुजरेगी, सब ओर से उनको सलाम आएगा.

    ‘राजनीति की हवा किस ओर चलेगी…’
    लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अपना भाषण खत्म होने से पहले शरद पवार के बारे में सबसे अहम बात कहते है. बताते हैं कि उनसे बड़ा सियासी मौसम वैज्ञानिक देश में कोई दूसरा नहीं है. पीएम मोदी ने कहा- शरद राव में किसान वाली क्वालिटी भी है. किसान को मौसम का अंदाज जल्दी हो जाता है. शरद राव ने इस गुण का राजनीति में भरपूर उपयोग किया है. राजनीति की हवा किस ओर चलेगी, ये आपको जानना है तो शरद राव के साथ बैठिए.

    पवार के फैसले से NCP में गम और गुस्सा
    प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों कहा, इसका थोड़ा बहुत अंदाजा देश को 2 मई 2023 को लगता है, जब शरद पवार एक बड़ा राजनीतिक विस्फोट करते हैं. चंद मिनट के बयान में पवार NCP अध्यक्ष की अपनी 24 साल की पारी के खात्मे का ऐलान कर देते हैं और ये तारीख NCP के इतिहास का सबसे बड़ा दिन बन जाती है. पवार के इस्तीफे से हर कोई हैरान रह जाता है. कार्यकर्ता नारेबाजी करके फैसले का विरोध करते हैं. नारेबाजी से अफरातफरी का माहौल हो जाता है.

    सीनियर लीडर जयंत पाटिल, अनिल देशमुख, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, हसन मुश्रीफ, जितेंद्र अवध, धनंजय मुंडे समेत हर NCP नेता भावुक हो जाता है. शरद पवार के बगल में बैठे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल की आंखों में आंसू छलक आते हैं. बाकी पार्टी सांसद-विधायक भी भावुक होते हुए पवार से अपना फैसला वापस लेने की अपील करते हैं.

    ‘इस्तीफे की टाइमिंग को लेकर सवाल’
    शरद पवार ने जो आज किया, उससे जुड़ा सबसे बड़ा सवाल उसकी टाइमिंग का है. सवाल ये है कि शरद पवार ने अभी ही इस्तीफा क्यों दिया? क्या उन्होंने वाकई में इस्तीफा दिया है या फिर ये सबकुछ पहले से तय था? कम से कम NCP नेता प्रफुल्ल पटेल इसका जवाब ना में देते हैं. लेकिन शरद पवार अगर कुछ करें और उसका कोई मतलब न हो. ऐसा हो ही नहीं सकता. इस सवाल की सबसे बड़ी वजह को समझने के लिए आपको उन बयानों के बारे में बताते हैं. जो सबसे पहले आपको जानना चाहिए.

    ‘पवार के राजनीतिक वारिसों को पहले से पता था?’
    17 अप्रैल, 2023 को शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा कि 15 दिन में महाराष्ट्र की राजनीति में 2 बड़े विस्फोट होंगे. इसके ठीक 10 दिन बाद यानी 27 अप्रैल को शरद पवार ने कहा कि रोटी सही समय पर ना पलटे तो कड़वी हो जाती है. रोटी पलटने का वक्त आ गया है. ये दोनों बयान जिस तरफ संकेत दे रहे थे, वो आज हो गया. सबसे बड़ी बात शरद पवार के बाद जिस तरह से सुप्रिया सुले और अजित पवार हॉल में सभी को शांत कराते नजर आए, उससे साफ पता चलता है कि शरद पवार के दोनों राजनीतिक वारिसों को इस बारे में पहले से पता था. अजित पवार ने कहा- नए चेहरों को आगे लाना NCP की परंपरा रही है.

    लेकिन क्या कहानी सिर्फ इतनी है, क्योंकि यहां बात शरद पवार की हो रही है. जिनसे जुड़ा इतिहास हमें बताता है कि उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता उतनी ठोस नहीं है. उन पर यकीन नहीं किया जा सकता है. इसीलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या शरद पवार ने इस्तीफे की स्क्रिप्ट पहले से तैयार कर रखी थी और सबकुछ पहले से तय था. क्या पवार जानते थे कि आगे क्या होने वाला है…

    ‘पहले इस्तीफे का ऐलान, फिर विचार करने का आश्वासन’
    तो क्या महाराष्ट्र के इस चाणक्य ने सोच समझकर अपनी किताब का विमोचन करने के लिए अपने करीबी नेताओं, समर्थकों और कार्यकर्ताओं को मुंबई बुलाया. NCP का छोटे से लेकर बड़ा नेता इस कार्यक्रम में मौजूद था. वो चाहे बेटी-भतीजा हो या फिर छगन भुजबल, अनिल देशमुख जैसे नेता. शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार भी उनके साथ यहां मौजूद थीं. जैसे ही कार्यक्रम खत्म होता है- शरद पवार अचानक से इस्तीफे का मास्टर स्ट्रोक खेल देते हैं और पार्टी के नेता-कार्यकर्ता भावुक हो जाते हैं. यही नहीं अपने फैसले को फाइनल बताने वाले शरद पवार भी सुर बदल लेते हैं और इस्तीफा देने के 6 घंटे बाद ही शरद पवार से जुड़ी 2 बड़ी खबरें एक के बाद एक आती हैं.

    ‘सुप्रिया को मिल सकती है पार्टी की कमान’
    शाम 6 बजे के करीब NCP की तरफ से बताया जाता है कि रोहित पवार, छगन भुजबल और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात के बाद पवार इस्तीफे पर दोबारा विचार के लिए 2-3 दिन का वक्त मांगते हैं….और कार्यकर्ताओं से तुरंत प्रदर्शन रोकने के कहते हैं. लेकिन इसके घंटे भर बाद ही NCP के सूत्र बताते हैं कि अगर शरद पवार नहीं मानते हैं तो फिर सुप्रिया सुले को पार्टी की कमान मिल सकती है.

    ‘एकजुटता के लिए इमोशनल कार्ड तो नहीं चला?’
    अब सवाल ये है कि शरद पवार ने बेटी को पार्टी की कमान सौंपने के लिए इस्तीफा दिया है, ताकि 82 साल के हो चुके शरद पवार अपने सामने पार्टी को नए नेता के साथ जमते हुए देख सकें. या फिर ये भतीजे अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने की अटकलों का नतीजा है, ताकि इस्तीफे का इमोशनल कार्ड चलकर अपने पीछे पार्टी को एकजुट किया जा सके. सवाल कई हैं और जवाब सिर्फ शरद पवार के पास है. जिनकी बात पर यकीन करने का भरोसा कम से कम इतिहास तो नहीं देता.

    ‘8 साल पहले देखने को मिला था पवार का पावर’
    हिंदुस्तान की सियासत का ऐसा कोई बड़ा खिलाड़ी नहीं है, जो पवार की पावर का हिस्सा ना हो. 8 साल पहले जब शरद पवार की आत्मकथा को लॉन्च किया गया था, तब कार्यक्रम में हर बड़ी पार्टी का सर्वोच्च नेता एक छत के नीचे पहुंचा था. ये काम सिर्फ पवार ही कर सकते हैं. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव, प्रकाश सिंह बादल, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, नीतीश कुमार का नाम शामिल था.

    ‘2019 में जुझारुपन देखकर हर कोई हुआ था प्रभावित’
    इसलिए जब इतने बड़े नेता को महाराष्ट्र और सतारा के लोगों ने मूसलमाधार बारिश में 2019 के चुनाव में पार्टी का प्रचार करते हुए देखा तो वो पवार के जुझारुपन और आखिर तक डटे रहने की क्षमता के कायल हो गए. इसका नतीजा ये हुआ कि NCP ने पिछले विधानसभा चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करते हुए सीटों के आंकड़े को 41 से 54 पर पहुंचा दिया.

    ‘अजित की नाराजगी आ रही थी सामने’
    लेकिन क्या पवार की इस सियासी विरासत को खतरा है और क्या इसीलिए उन्होंने इस्तीफा देने का दांव चला. इस सवाल की वजह अजित पवार हैं. जिन्होंने पवार के इस्तीफा देने के फैसले को बार-बार सही ठहराया. अजित पवार को लेकर पिछले महीने खबर आई थी कि वो 10 से 15 विधायकों के साथ बीजेपी में जा सकते हैं. इसी बीच अजित पवार ने अपने ट्विटर बायो से NCP का चुनाव चिह्न हटा लिया. 21 अप्रैल को NCP ने कर्नाटक चुनाव के लिए अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी की, लेकिन इसमें वरिष्ठ नेता अजित पवार का नाम नहीं था, इसी दिन अजित मुंबई में NCP की एक बैठक में भी शामिल नहीं हुए.

    ‘सरकार बनाने के लिए NCP विधायकों की होगी जरूरत’
    बता दें कि अगर सुप्रीम कोर्ट शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य करार देती है तो सरकार बचाने के लिए NCP विधायकों की जरूरत भी होगी. ऐसा भी कहा जा रहा है कि अगर सुप्रिया सुले को पवार ने पार्टी की कमान सौंपीं तो नाराज अजित पवार बीजेपी की तरफ जा सकते हैं. लेकिन पवार की वजह से बीजेपी भी कुछ नहीं कह पा रही है. बीजेपी भी जानती है कि पवार की बिना सहमति के अजित पार्टी नहीं तोड़ सकते. 2019 में ऐसा हो चुका है.

    ‘अब अजित विरोध करते हैं तो टूट-फूट का खतरा नहीं?’
    माना जा रहा है कि शरद पवार सुप्रिया सुले को NCP का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने पहले इमोशनल दांव चलकर पार्टी को एकजुट किया और अब सुप्रिया को कमान सौंपने की बात सामने आ रही है. मौजूदा हालात में अगर अजित पवार इस फैसले का विरोध भी करते हैं तो पार्टी में ज्यादा टूटफूट का खतरा नहीं होगा. ये फिलहाल भले ही कयास हों लेकिन शरद पवार के काम करने के स्टाइल को देखते हुए इसे खारिज नहीं किया जा सकता.

    ‘पवार ने भी बाला साहेब जैसा दांव चला?’
    शरद पवार शुरुआत से अपनी मन की करने वाले नेता रहे हैं. जो 1980 में इंदिरा गांधी से बगावत करने से नहीं चूकते. साल 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर काग्रेस तोड़ देते हैं और फिर सोनिया गांधी के नेतृत्व में ही 10 सालों तक काम करने से भी नहीं हिचकते. ऐसा भी कहा जा रहा है कि पार्टी को एकजुट करने के लिए पवार ने बाला साहेब ठाकरे जैसा इस्तीफे का दांव चला है.

    ‘एक दांव से मजबूती से उभरे थे बाला साहेब’
    ये बात साल 1992 की है. जब बाला साहेब ठाकरे उद्धव ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे की पार्टी के मामले में दखलंदाजी से नाराज थे. इसके जवाब में उन्होंने सामना में एक लेख के जरिए परिवार समेत शिवसेना पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया. जैसे ही ये बात सामने आई, शिवसैनिक घरों से निकलकर प्रदर्शन करने लगे और बाला साहेब ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में पहले से ज्यादा मजबूत बनकर उभरे. तो क्या बाला साहेब ठाकरे की तरह शरद पवार भी अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान कर अपनी ताकत को परखना चाहते हैं? क्या वो ये देखना चाहते हैं कि जिस पार्टी को उन्होंने बनाया, आज उसमें उनके साथ कितने लोग खड़े हैं?

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