इंदौर न्यूज़ (Indore News)

मेघदूत पार्क टेंडर घोटाला: किस्मतवाला रहा ठेकेदार, पहले भी जेल जाने से बचा और अब भी

इंदौर (Indore)। मेघदूत पार्क के टेंडर घोटाले (meghdoot park tender scam) में फंसे नगर निगम के पूर्व एमआईसी मेंबर व पार्षद सूरज कैरो (MIC member and councilor Suraj Kairo) व दो पूर्व पार्षद सहित 9 मुलजिम कल विशेष अदालत में भ्रष्टाचार के जुर्म में आखिर नप ही गए। उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई, किंतु अपील की मियाद के चलते सभी मुजरिम जमानत पर छूट गए। इनमें सबसे ज्यादा किस्मतवाला ठेकेदार रहा, जिसे पहले भी जेल नहीं जाना पड़ा था और अभी भी, जबकि शेष आठ मुजरिम पहले जेल की हवा खा चुके हैं।

सूत्रों के अनुसार टेंडर घोटाले में लोकायुक्त पुलिस ने 22 जून 2015 को विशेष अदालत (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) में भाजपा के तत्कालीन पार्षद सूरज कैरो निवासी स्कीम नं. 74, पूर्व पार्षद राजेंद्र सोनी निवासी लोधीपुरा व कैलाश यादव निवासी मुराई मोहल्ला, जूूनी इंदौर के अलावा नगर निगम के तत्कालीन नगर शिल्पज्ञ जगदीश डगांवकर निवासी साउथ तुकोगंज, कार्यपालन यंत्री अशोक बैजल निवासी रानड़े कंपाउंड, उद्यान अधीक्षक अमानुल्लाह खान निवासी परिचारिका नगर, सहायक संचालक स्थानीय निधि संपरीक्षा ऋषिप्रसाद गौतम व ऑडिटर विद्यानिधि श्रीवास्तव निवासी सुदामानगर व ठेकेदार केशव पंडित उर्फ केशव तिवारी निवासी बख्तावरराम नगर के खिलाफ भ्रष्टाचार, दस्तावेजों में गड़बड़, सरकार को हानि पहुंचाने व उसकी साजिश रचने के इल्जाम में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व आईपीसी की धारा 120 बी, 248, 468, 474 के तहत चालान पेश किया था। कैरो सहित 10 मुलजिमों पर ठेकेदार केशव पंडित उर्फ केशव तिवारी से मिलकर निगम को 33 लाख से ज्यादा का घाटा पहुंचाने का इल्जाम था।


इल्जाम था कि नगर निगम ने मेघदूत पार्क की देखरेख के लिए टेंडर बुलाए गए थे, जिसमें निगम को हर माह छह लाख की आय होने की दशा में भी अफसरों व नेताओं ने मिलीभगत कर महज 1 लाख 60 हजार की बोलीवाले टेंडर को पास किया, जबकि उससे ज्यादा ऊंची बोली लगाने वाले को टेंडर नहीं दिया। यही नहीं, शर्तों को ताक पर रखकर बैकडेट में टेंडर को लागू किया गया। कैरो ने जहां वसूली लेनदारियां ठेकेदार से नहीं वसूली, वहीं राजेंद्र सोनी ने 21,54,548 रुपए का बिल ऑडिट हेतु किया। विद्यानिधि ने केशव की नोटशीट पर आपत्ति नहीं ली। नतीजतन ठेकेदार ने 17 माह 17 दिन काम किया। इस दौरान 5,66,771 रुपए की लेनदारी वसूली जाना थी, किंतु 27,93,551 रुपए का भुगतान किया गया, जिससे निगम को 33,69,322 रुपए का आर्थिक नुकसान पहुंचा था। पार्क में हुए विकास कार्यों में घटिया निर्माण की भी शिकायतें मिली थीं। इस मामले में तत्कालीन कांग्रेस पार्षद छोटू शुक्ला ने लोकायुक्त पुलिस को शिकायत की थी, जिसमें सालों चली जांच के बाद चालान पेश किया था, जिसमें कल सभी 9 मुलजिमों को तीन साल की सजा सुनाई गई। हालांकि वे हाईकोर्ट में अपील कर सकें, इस कारण जेल जाने की बजाय जमानत पर छूटने में कामयाब रहे। इनमें ठेकेदार को छोडक़र सभी मुलजिम चालान पेश होते वक्त भी लोकसेवक होने के नाते पहले जेल जा चुके थे, क्योंकि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार एक्ट में केस दर्ज हुआ था, जबकि ठेकेदार इस एक्ट के दायरे में नहीं आता था, इसलिये बच निकला था, वहीं मामले में केस चलने के दौरान एक मुलजिम अशोक बैजल की मौत हो चुकी थी।

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