इंदौर न्यूज़ (Indore News)

मालवा और कल्याण मिल की 74 एकड़ जमीन बची, तो स्वदेशी की बिक गई, नक्शे भी मंजूर, शासन ने खुलवाई फाइलें


कन्वेंशन सेंटर के लिए 25 एकड़ जमीन भी नहीं ले सका प्राधिकरण, अब प्रशासन करवा रहा है जांच, एडीएम सहित राजस्व निरीक्षक पहुंचे

इंदौर। अधिकांश मिलों को बंद हुए 30 साल से ज्यादा हो गए, तब से ही इनकी जमीनों (Land) को लेकर विवाद चलता रहा है और आज तक शासन हुकुमचंद से लेकर मालवा, कल्याण, स्वदेशी सहित अन्य जमीनों पर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाया। अब शासन ने पिछले दिनों एक पत्र भेजकर इन मिलों की जमीनों की जांच कर जानकारी भेजने के कलेक्टर को निर्देश दिए, जिसके चलते कल एडीएम और राजस्व निरीक्षकों की टीम ने तीन मिलों की जमीनों का मौका-मुआयना किया। स्वदेशी मिल की जमीन तो सालों पहले ही एनटीसी ने बेच डाली, जिस पर तमाम अड़चनों के बाद नगर तथा ग्राम निवेश से लेकर निगम ने नक्शे मंजूर कर दिए। अलबत्ता मालवा मिल की 41 और कल्याण मिल की 33, इस तरह 74 एकड़ जमीन मौके पर उपलब्ध है। वहीं प्राधिकरण भी कन्वेंशन सेंटर के लिए मालवा मिल की 25 एकड़ जमीन हासिल नहीं कर सका।
अग्निबाण विगत कई वर्षों से मिलों की जमीनों में होने वाले घोटालों से लेकर शासन-प्रशासन और नगर निगम द्वाराा लिए जाने वाले निर्णयों का खुलासा करता रहा है। दरअसल मिलों की जमीनों को लेकर शुरू से ही कई विवाद रहे हैं। शासन, निगम, राजस्व से लेकर नेशनल टैक्सटाइल कार्पोरेशन यानी एनटीसी इन जमीनों पर अपना हक जताते रहे हैं। हालांकि केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले नेशनल टैक्सटाइल कार्पोरेशन (National Textile Corporation) को ही अधिकांश मिलों की जमीनें दी गई और उसी ने स्वदेशी मिल की 15.62 एकड़ जमीन 2007 में ही बेच डाली थी। अभी शासन की नींद फिर खुली। दरअसल उसने लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन विभाग का गठन कुछ समय पहले किया है, जिसमें राजस्व से लेकर अन्य विभागों की अनुपयोगी जमीनों की जानकारी एकत्रित करवाकर उन्हें ऑनलाइन टेंडर के जरिए बेचा जा रहा है। इंदौर में ही गाडराखेड़ी, तलावलीचांदा, पिपल्याराव, पिपल्याहाना, निपानिया से लेकर कई अन्य जमीनों की बिक्री या तो हो चुकी है अथवा टेंडर की प्रक्रिया में चल रही है। इसमें मालवा मिल, पाटनीपुरा स्थित रोडवेेज की जमीन भी शामिल है। वहीं अब मिलों की जमीनों की जानकारी भी शासन ने प्रशासन से बुलवाई है। लिहाजा कलेक्टर मनीष सिंह के निर्देश पर कल्याण मिल, स्वदेशी और मालवा मिल की जमीनों की जानकारी जुटाई जा रही है और वर्षों पुरानी फाइलें फिर से जांच के लिए खंगाली जा रही है। कल एडीएम अजय देव शर्मा, राजस्व निरीक्षक राहुल गायकवाड़, मनीष भार्गव सहित अन्य ने स्वदेशी, मालवा और कल्याण मिल की जमीनों का मौका मुआयना भी किया। एडीएम श्री शर्मा के मुताबिक कल्याण मिल की 33 एकड़ और मालवा मिल की 41 एकड़ जमीन राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक है, जबकि स्वदेशी मिल की 32 एकड़ जमीन एनटीसी द्वारा कई साल पहले ही बेची जा चुकी है। लिहाजा मालवा और कल्याण मिल की 74 एकड़ जमीन की जानकारी तैयार कर शासन को भिजवाई जाएगी। दूसरी तरफ मालवा मिल की 25 एकड़ जमीन जमीन पर सालों पहले प्राधिकरण ने कन्वेंशन सेंटर बनाने की योजना भी बनाई थी। यहां तक कि प्राधिकरण बोर्ड में भी सैद्धांतिक मंजूरी कर प्रस्ताव शासन को भेज दिया था और ये भी दावे किए कि मेला ग्राउंड की तर्ज पर बड़ी-बड़ी प्रदर्शनियों और आयोजनों के लिए ये आधुनिक कन्वेंशन सेंटर निर्मित किया जाएगा। मगर ना शासन ने मंजूरी दी और ना प्राधिकरण जमीन हासिल कर सका। दूसरी तरफ मिलों की जमीनों को लेकर गतिरोध जारी रहा। स्वदेशी मिल के मामले में ही बड़ा खेल हुआ, जिसमें भोपाल में बैठे नेता-अफसर सभी शामिल रहे। पिछले दिनों शासन द्वारा बनाए लोक परिसम्पत्ति प्रबंधन विभाग ने उज्जैन सहित कई जिलों की बंद पड़ी मिलों की जमीनों की ऑनलाइन की भी है। मगर इंदौर की मिलों की जमीनों के मामले एनटीसी से लेकर मुंबई की डीआरटी कोर्ट में चल रहे हैं।


जमीन बेचने वाली माँ – खरीददार बेटा…अग्निबाण ने किया था भंडाफोड़

जब स्वदेशी मिल की 15.62 एकड़ जमीन एनटीसी ने 2007 में 96.51 करोड़ में सोफिया रियल इस्टेट उर्फ इंडिया बुल्स को बेची, तब इस मामले में हुए बड़े फर्जीवाड़े को अग्निबाण ने उजागर किया था। एनटीसी ने यह जमीन उस वक्त बेची, जब उसकी चेयरमैन की कुर्सी पर श्रीमतीकृष्ण गहलोत बैठी थीं, जो कि इंडिया बुल्स के चेयरमैन समीर गहलोत की माता जी हैं। यानी स्वदेशी मिल की जमीन बेचने वाली माँ और खरीदने वाला उसका बेटा था, जिसके कारण बेशकीमती जमीन सस्ते में बिक गई।

शासन धारा 431 का इस्तेमाल ही नहीं कर सका आज तक

मिलों की जमीनों को लेकर अदालती लड़ाई सालों से चलती रही है। निचली अदालत, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ये मामले गए। दूसरी तरफ प्रशासन, उद्योग विभाग और नगर निगम भी इन जमीनों पर अपना दावा जताता रहा, जिसका उदाहरण हुकुमचंद मिल का मामला है। स्वदेशी मिल के मामले में कैबिनेट निर्णय भी हुआ, जबकि शासन को खुद धारा 431 में अधिकार है कि वह नगर निगम या महापौर परिषद् द्वारा मंजूर किसी भी संकल्प को निरस्त कर सकता है, मगर स्वदेशी मिल के मामले में शासन ने इस धारा का इस्तेमाल नहीं किया।

हुकुमचंद मिल के मजदूर ही सालों से खा रहे हैं इधर से उधर टल्ले

हुकुमचंद मिल की 42 एकड़ जमीन को लेकर भी सालों से विवाद चल रहा है और पचासों मर्तबा हाईकोर्ट में सुनवाई हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया। बेचारे मिल मजदूर अपनी जमा पूंजी हासिल करने के लिए सालों से इधर से उधर टल्ले खा रहे हैं। मुंबई डीआरटी मिल की जमीन पर कब्जा करके बैठी है और जमीन का भू-उपयोग परिवर्तन करवा लेने के बावजूद उसकी आधी कीमत भी नहीं आंकी गई और बेशर्मी से हाईकोर्ट में भी यह जवाब दे दिया कि जमीन की सही कीमत आंकी है।

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